भारत में समुद्र तट पर मिला जानलेवा सुपरबग, कोरोना महामारी में तेजी से फैलने का डर

इस सुपरबग के फैलने का प्रमुख कारण अभी तक ज्ञात नहीं। जलवायु परिवर्तन एक संभावित वजह मानी जाती है। यह शरीर में जख्म को सड़ाकर जहरीला बना सकता है और मृत्यु का कारण बन सकता है।
भारत में समुद्र तट पर मिला जानलेवा सुपरबग, कोरोना महामारी में तेजी से फैलने का डर
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कोरोना महामारी अब भी जारी है। इसी बीच वैज्ञानिकों ने भारत के समुद्री किनारों पर रेत से एक नए सुपरबग की खोज की है जो कि अगली महामारी की वजह बन सकता है। इसका नाम कैंडीडा औरिस (सी-औरिस) नाम दिया गया है। यह बहुऔषधीय प्रतिरोधी जीव है। इसे सुपरबग इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि यह मुख्य एंटी फंगल उपचार का प्रतिरोध कर सकता है। 

इस शोध को 16 मार्च, 2021 को एमबायो जर्नल में प्रकाशित किया गया है। 

यह खबर भारत के लिए इसलिए चिंताजनक हो सकती है क्योंकि हाल ही में 6 फरवरी, 2021 को पैन अमेरिकन हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन और  विश्व स्वा स्थ्य संगठन ने जारी अपने प्रेस रीलीज में अलर्ट जारी किया है। यह सुपरबग बहुत ही आसानी से अस्पतालों के पर्यावरण में रह सकता है और मरीजों में फैल सकता है।

डब्ल्यूएचओ के मुताबिक इस सुपरबग का पहला मामला 2009 में जापान के एक व्यक्ति में मिला था।  

सी-औरिस जख्मों के रास्ते शरीर में प्रवेश कर सकता है और यह त्वचा पर टिका रह सकता है। एक बार यह रक्तधारा में शामिल हुआ तो गंभीर बीमारियां पैदा कर सकता है। इससे सेप्सिस (मवाद युक्त घाव) भी हो सकता है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक इस स्थिति में हर वर्ष वैश्विक स्तर पर 11 लाख लोग मरते हैं। 

भारत में कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी कैंडिडा औरिस के प्रसार के लिए आदर्श स्थितियां तैयार कर सकती है। इस सुपरबग में बुखार और ठंड से पहले कोई लक्षण प्रकट नहीं होते हैं। यह लक्षण दवाओं से भी नहीं जाते हैं और मृत्यु का कारक बन सकते हैं। 

इस सुपरबग की तलाश अंडमान आईसलैंड के किनारे आठ प्राकृतिक स्थलों से लिए गए नमूनों में हुई है। इनमें समुद्र  दिल्ली विश्वविद्यालय की डॉ अनुराधा चौधरी ने इन जगहों से पानी और मिट्टी के 48 नमूने एकत्र किए थे। इनमें रेत के बीच, पत्थर, समुद्र, मैंग्रोव आदि शामिल हैं। 

समुद्रों के किनारे खारे दलदली जगह से लिए गए नमूने और तटों पर से लिए गए नमूनों में सी-औरिस की पुष्टि हुई है। आम तौर पर समुद्री रेतीले तटों पर मानवीय गतिविधियां ज्यादा होती हैं। इसलिए यहां खतरा ज्यादा है।

शोधार्थियों ने कहा कि दलदल में पाया गया एक नमूने में दवा प्रतिरोध नहीं पाया गया। वह अन्य नमूनों के मुकाबले उच्च तापमान में बेहद धीरे-धीरे बढ़ता है। यह सी. औरिस का बेहद खतरनाक स्ट्रेन हो सकता है। हालांकि इसके प्रसार की अहम वजह क्या है, यह अभी एक गुत्थी है।

ऐसा कयास लगाया जा रहा है कि जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में हो रही बढ़ोत्तरी इसके प्रसार की एक वजह हो। 

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि सी-औरिस जख्मों के रास्ते शरीर में प्रवेश कर सकता है और यह त्वचा पर टिका रह सकता है। एक बार यह रक्तधारा में शामिल हुआ तो गंभीर बीमारियां पैदा कर सकता है। इससे सेप्सिस (जहरीला घाव) भी हो सकता है। इस स्थिति में हर वर्ष वैश्विक स्तर पर 11 लाख लोग मरते हैं। 

सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन (सीडीसी) ने कहा है कि यह ऐसे मरीज जिन्हें कैथटर्स या सांसनली की जरूरत होती है उनके लिए ज्यादा मुसीबत पैदा कर सकते हैं।

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