औषधीय गुणों से भरपूर नीम एक चमत्कारी पेड़ है। भले ही यह स्वाद में कड़वा होता है लेकिन इसकी तासीर ठंडी होती है। इस पेड़ की पत्तियां, फल, फूल, तना, छाल सभी कुछ सदियों से भारतीय चिकित्सा का हिस्सा रही हैं। यही वजह है कि इसे सर्व रोग निवारणी भी कहा जाता है।
यह सच है कि भारत में नीम के पेड़ का उपयोग इसके परजीवी, एंटी-बैक्टीरियल और एंटीवायरल गुणों के लिए हजारों वर्षों से किया जाता रहा है। इसकी छाल के अर्क ने मलेरिया, पेट और आंतों के अल्सर, त्वचा रोगों और कई अन्य बीमारियों के इलाज में मदद की है।
लेकिन अब अंतरष्ट्रीय स्तर पर वैज्ञानिक भी इसके गुणों को पहचानने लगे हैं। ऐसा ही कुछ हाल ही में यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च, कोलकाता के वैज्ञानिक शोध में भी निकल कर आया है।
जिसके अनुसार नीम की छाल में मौजूद घटक वायरल प्रोटीन की एक विस्तृत श्रृंखला को लक्षित कर सकते हैं, जो कोरोनावायरस के उभरते वेरिएंट के खिलाफ एक एंटीवायरल एजेंट के रूप में काम कर सकते हैं। वैज्ञानिकों की मानें तो इस पेड़ की छाल का अर्क कोरोनावायरस के इलाज और प्रसार को कम करने में मदद कर सकता है। यह शोध जर्नल वायरोलॉजी में प्रकाशित हुआ है।
इस बारे में कोलोराडो स्कूल ऑफ मेडिसिन और अध्ययन से जुड़ी शोधकर्ता मारिया नागेल का कहना है कि हमें उम्मीद है कि वैज्ञानिकों को हर बार कोरोनावायरस (सार्स-कॉव-2) का नया वैरिएंट सामने आने पर लगातार नए उपचार नहीं विकसित करने होंगे। उनके अनुसार जैसे हम गले में खराश के लिए पेनिसिलिन लेते हैं, वैसे ही कोविड-19 के लिए नीम आधारित दवाओं के उपयोग की कल्पना करते हैं। जिनकी मदद से अस्पताल में भर्ती होने और मृत्यु के खतरे को कम करके सहज जीवन जी सकते हैं।
सार्स-कॉव-2 के इलाज और प्रसार को रोकने में कारगर था नीम का अर्क
क्या नीम की छाल से बना अर्क कोरोनावायरस पर काम करता है इसे समझने के लिए वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में इसकी जांच की है। भारतीय शोधकर्ताओं ने जानवरों पर इसका परिक्षण किया है। जिसमें सामने आया है कि इसमें कोरोनावायरस के खिलाफ एंटीवायरल गुण थे। वैज्ञानिकों ने इसके लिए कंप्यूटर मॉडलिंग का भी उपयोग किया है, जिससे पता चला है कि नीम की छाल का अर्क विभिन्न स्थानों पर सार्स-कॉव-2 स्पाइक प्रोटीन से जुड़ सकता है, जिसकी मदद से वायरस को मेजबान कोशिकाओं में प्रवेश से रोका जा सकता है।
वहीं यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो में नागेल की प्रयोगशाला में मानव फेफड़ों में सार्स-कॉव-2 पर नीम की छाल के अर्क का परिक्षण किया गया, जहां यह संक्रमण को दूर करने में प्रभावी साबित हुआ था। अध्ययन में देखा गया कि इसके उपयोग से संक्रमण के बाद वायरस में आने वाले बदलावों और प्रसार में कमी आई थी।
इस बारे में नागेल का कहना है कि उनके शोध का अगला कदम नीम की छाल में मौजूद उन विशिष्ट घटकों की पहचान करना है जो एंटीवायरल गुण रखते हैं। उनके अनुसार चूंकि यह घटक सार्स-कॉव-2 के अलग-अलग हिस्सों से जुड़ सकता है, ऐसे में उनका मानना है कि यह स्पाइक म्यूटेशन के साथ उभरते वेरिएंट पर भी प्रभावी होगा।
शोधकर्ताओं को भरोसा है कि इसकी मदद से कोरोनावायरस के खिलाफ एंटीवायरल दवा का निर्माण किया जा सकता है। शोध से जुड़े वैज्ञानिकों का दावा है यह कोरोनावायरस के अलग-अलग वैरिएंट से निपट सकता है, जिससे भविष्य में इस महामारी से निपटने के लिए एंटीवायरल उपचार का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।
भारत को कहा जाता है नीम के पेड़ों की भूमि
वर्ल्ड नीम आर्गेनाईजेशन (डब्लूएनओ) के अनुसार, भारत में नीम के करीब 2.5 करोड़ पेड़ हैं। उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की शुष्क, उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में लगभग 80 फीसदी नीम के पेड़ प्राकृतिक वनस्पति के रूप में उगते हैं। यही वजह है कि भारत को नीम के पेड़ों की भूमि भी कहा जाता है।