अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बाइडन की कोविड योजना धीरे-धीरे अब अब अपना आकार ले रही है। क्योंकि इस योजना पर अमेरिका में बड़ी संख्या में शोधकर्ताओं ने न केवल सहमति जताई है बल्कि कोविड जैसी महामारी से निपटने के लिए एक कारगर तारीका भी बताया है। शोधकर्ताओं को इस बात से राहत मिली है कि राष्ट्रपति ने इसके लिए बकायदा कारोनावाय सलाहकार बोर्ड गठन करने की घोषणा की है। इस प्रकार की घोषणाएं आमतौर पर किसी भी महामारी से निपटने के लिए किए जा रहे प्रयासों को और आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। कायदा कहता है कि यही विज्ञान से लाभ पाने का एक सही और संतुलित तारीका भी है।
यही नहीं इस संबंध में नई उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने विस्तार से जानकारी बिना समय गवाएं पूरे देश को दी। ध्यान रहे कि अमेरिकी चुनाव में विजयी घोषित होने के ठीक दो दिन बाद ही भविष्य के राष्ट्रपति जो बाइडन और उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने संक्रामक रोग शोधकर्ताओं और पूर्व सार्वजनिक स्वास्थ्य सलाहकारों के साथ मिलकर कोविड-19 सलाहकार बोर्ड की घोषणा की थी। उन्हें इस बात की पूरी संभावनाएं है कि महामारी से निपटने के लिए इस प्रकार के बोर्ड की बहुत अधिक आवश्यकता है।
इस घोषणा के बाद से अमेरिका के वैज्ञानिकों और डॉक्टरों को उम्मीद है कि अमेरिका इस महामारी के प्रकोप से निपटने के मामले में अब एक सही दिशा में काम कर सकेगा। आखिर पूरे अमेरिका में इस बीमारी को लेकर चिंता भी क्यों न हों। क्योंकि इस महामारी से अब तक 10 मिलियन अमेरिकी संक्रमित हो चुके हैं और 2,40,000 से अधिक की मृत्यु हो चुकी है। इसमें सबसे भयावह बात यह है कि इस संख्या में लगातार वृद्धि जारी है।
बाइडन की कोविड योजना के संबंध में शिकागो कम्युनिटी ट्रस्ट के अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी हेलेन गेल कहते हैं कि मुझे वास्तव में लगता है कि उन्होंने नए प्रशासन को सलाह देने के लिए एक उत्कृष्ट और शानदार टीम का चयन किया है। ध्यान रहे कि सैन फ्रांसिस्को के कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में एक संक्रामक रोग शोधकर्ता एरिक गूसबी और 2014 से 2017 के बीच अमेरिकी सर्जन जनरल के रूप में सेवा देने वाले डॉक्टर विवेक मूर्ति बाइडन द्वारा गठित कोविड-19 सलाहकार बोर्ड के सदस्यों में से एक हैं। पर्यवेक्षकों का कहना है कि बोर्ड के अधिकांश सदस्य अनुभवी और अपने-अपने क्षेत्र के जानेमाने विशेषज्ञ हैं।
एक स्वास्थ्य नीति शोधकर्ता जोशुआ शर्फस्टीन कहते हैं कि यह एक महत्वपूर्ण समूह है और इस महामीर से निपटने के लिए अब तक सबसे अच्छे प्रयासों में से एक है। वह कहते हैं कि इस काम से आम अमेरिकियों ने राहत की सांस ली है। इसके अलावा मैरीलैंड के बाल्टीमोर में जॉन्स हॉपकिंस ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के वाइस डीन कहते हैं कि महासमारी से निपटने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करने वाले ये सभी विशेषज्ञ महानता की श्रेणी में आते है। पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रप की महामारी को रोकने के प्रयास बहुत ही गलत दिशा में चले गए थे। जैसे कि सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की सलाह को लगातार नजरअंदाज किया जाना आदि। नए राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति बाइडन और हैरिस ने अब तक पूरी तरह से विज्ञान का अनुसरण करते हुए विशेषज्ञों से ईमानदारी से व खुले तौर पर संवाद कर एक संगठित प्रक्रिया को आगे बढ़ाया है।
बाइडन व हैरिस की टीम ने कारोनावायरस को अपने द्वारा शुरू किए जाने वाले कार्यों की सूची में सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए कोविड परीक्षण की रणनीति अपनाई है। टीम का कहना है कि देश भर में वायरस के संचरण दर को प्रदर्शित करने के लिए राष्ट्रव्यापी महामारी डैशबोर्ड बनाया जाएगा। टीम का कहना है कि दक्षिण कोरिया जैसे अन्य देशों में डैशबोर्ड है, जहां अधिकारिक तौर पर महामारी व इसके दैनिक मामले की संख्याओं को रिपोर्ट किया जाता है। अमेरिका में सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी बुनियादी ढांचे की दशकों से उपेक्षा के कारण अमेरिका में बीमारी के घटने के आंकड़ों को प्रस्तुत करने में देर हो रही है। गेल कहते हैं कि यहां सबसे महत्वपूर्ण है कि महामारी के आंकड़ों में पारदर्शिता लाने के लिए हम एक राष्ट्रीय निगरानी प्रणाली को बनाए रखें।
बाइडन-हैरिस द्वारा महामारी से निपटने के लिए बनाई गई रणनीति का एक हिस्सा यह भी है कि कोविड से अब तक काले व लेटिन देशों से आए लोग सबसे अधिक प्रभावित हैं और इसके लिए एक टास्क फोर्स बनाने का प्रस्ताव किया गया है। ध्यान रहे कि अमेरिका में ब्लैक, लेटिन और स्वदेशी लोगों की कोविड-19 से हुई मृत्यु दर, श्वेत लोगों की दर से तीन गुना अधिक है। इस संबंध में स्वास्थ्य और नस्लवाद का अध्ययन करने वाले शोधकर्ताओं ने विश्वास जताया है कि इस तरह के एक टास्क फोर्स के गठन से अमेरिका में अल्पसंख्यक समूहों के बीच एक विश्वास का रिश्ता कायम हो सकेगा।