चिकनगुनिया से संक्रमित होने के तीन महीने बाद भी उससे होने वाली जटिलताओं के कारण मृत्यु का खतरा बना रहता है। जर्नल द लैंसेट इन्फेक्शियस डिजीज में प्रकाशित एक नए अध्ययन में इसकी पुष्टि की गई है। गौरतलब है कि डेंगू की तरह ही चिकनगुनिया भी एक वायरल बीमारी है, जो मच्छरों से इंसानों में फैलती है।
इस बीमारी का वायरस अक्सर एडीज एजिप्टी और एडीज एल्बोपिक्टस मच्छरों के काटने से फैलता है। इन मच्छरों से डेंगू, येलो फीवर जैसी बीमारियां भी फैलती हैं। यही वजह है कि इन्हें येलो फीवर या टाइगर मच्छर के नाम से भी जाना जाता है। आमतौर पर इस बीमारी का प्रसार अमेरिका, अफ्रीका और एशिया में कहीं ज्यादा है लेकिन यूरोप के कुछ देशों में यदाकदा इसके मामले सामने आते रहे हैं। इसके मामलों की सबसे पहले पहचान 1952 में दक्षिणी तंजानिया में की गई थी।
गौरतलब है कि वैश्विक स्तर पर बड़ी संख्या में चिकनगुनिया के मामले रिपोर्ट नहीं किए जाते। हालांकि इसके बावजूद 2023 में इसके करीब पांच लाख मामले सामने आए थे। वहीं अनुमान है कि इसकी वजह से दुनिया भर में 400 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। आमतौर पर चिकनगुनिया के ज्यादातर मामलों में मरीज पूरी तरह स्वस्थ हो जाते हैं।
संक्रमण के 90 दिनों बाद भी बना रहता है किडनी और ह्रदय संबंधी बीमारियों का जोखिम
शोधकर्ताओं ने रिसर्च में इस बात की भी पुष्टि की है कि इस वायरस की चपेट में आने के 90 दिनों के बाद भी संक्रमित में किडनी और ह्रदय संबंधी बीमारियों का जोखिम बना रहता है। बता दें कि अपने इस अध्ययन में लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के शोधकर्ताओं ने ब्राजील में चिकनगुनिया से संक्रमित डेढ़ लाख मरीजों से जुड़े आंकड़ों का विश्लेषण किया है।
इस अध्ययन में जो निष्कर्ष सामने आए हैं उनके मुताबिक इस वायरस से संक्रमित मरीज में तीव्र संक्रमण की अवधि समाप्त होने के बाद भी जटिलताओं का खतरा बना रहता है। तीव्र संक्रमण की यह अवधि आमतौर पर लक्षण शुरू होने के बाद 14 दिनों तक रहती है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक पहले सप्ताह के दौरान, संक्रमित व्यक्तियों में मृत्यु का जोखिम उन लोगों की तुलना में आठ गुना अधिक था, जो इस वायरस की चपेट में नहीं आए थे। इसी तरह संक्रमण के तीन महीने बाद भी, उनमें गंभीर जटिलताओं का शिकार होने की आशंका दोगुनी देखी गई।
चिकनगुनिया हड्डियों पर हमला करती है, जिसकी वजह से मरीज की हड्डियों और जोड़ों में तेज दर्द होता है। नतीजन इससे संक्रमित व्यक्ति में चलने फिरने तक में कठिनाई होती है। इसके साथ ही इस बीमारी में बार-बार तेज बुखार, मांसपेशियों में दर्द, सिरदर्द, मतली, थकान, आंखों में कंजंक्टिवाइटिस और त्वचा पर चकत्ते (रैशेज) जैसे लक्षण बेहद आम हैं।
विशेषज्ञों के मुताबिक इससे संक्रमित मरीज संक्रमण के तीन से छह महीने बाद भी जोड़ों में दर्द महसूस कर सकते हैं। आमतौर पर यह लक्षण एक-तिहाई मरीजों में देखे जाते हैं। इस दौरान कुछ मरीजों को दोबारा बुखार भी आ सकता है।
मौजूदा समय में देखें तो चिकनगुनिया के इलाज के लिए कोई टीका या एंटीवायरल दवाएं उपलब्ध नहीं हैं। ऐसे में इसका उपचार केवल संक्रमण से जुड़े लक्षणों पर ही केंद्रित है। हालांकि दुनिया की पहली वैक्सीन को नवंबर 2023 में अमेरिकी के खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) द्वारा स्वीकृति दी गई थी।
बदलती जलवायु के अनुकूल बन रहे मच्छर, नए क्षेत्रों पर भी मंडरा रहा खतरा
शोधकर्ताओं का यह भी कहना है कि जलवायु में आते बदलावों, शहरीकरण और मानव गतिशीलता में वृद्धि के चलते एडीज मच्छरों से होने वाली बीमारियों के फैलने का खतरा भी बढ़ रहा है। यह बीमारियां आज ऐसे क्षेत्रों को भी निशाना बना रहीं हैं, जहां पहले इनसे कोई खतरा नहीं था।
इस बारे में लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन में एसोसिएट प्रोफेसर और अध्ययन से जुड़ी प्रमुख शोधकर्ता डॉक्टर एनी दा पैक्साओ क्रूज का कहना है कि, "चिकनगुनिया का संक्रमण बढ़ने की आशंका के साथ, यह महत्वपूर्ण हो गया है कि स्वास्थ्य सेवाएं उन जोखिमों पर भी विचार करें जो संक्रमण का तीव्र चरण खत्म होने के बाद भी बने रहते हैं।"
उनके मुताबिक चिकनगुनिया वायरस फैलाने वाले मच्छरों के प्रसार को नियंत्रित करने के उपायों को मजबूत करना भी बीमारी से जुड़ी अतिरिक्त मृत्यु दर को कम करने के लिए आवश्यक है।
चूंकि चिकनगुनिया मच्छरों के जरिए फैलने वाली बीमारी है। ऐसे में इससे बचाव के लिए कुछ सामान्य उपाय किए जा सकते हैं, जैसे साफ-सफाई का ध्यान रखना। आसपास पानी एकत्र होने से रोकना ताकि मच्छर न पनप सकें। ऐसे कपड़े पहनना जिनसे मच्छरों से बचा जा सके। साथ ही मच्छरों से बचने के लिए अन्य उपाय करना। यदि लक्षण दिखें तो इलाज के लिए डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।