शोधकर्ताओं ने खोजा डायबिटीज का आसान एवं विश्वसनीय शुरुआती जांच का तरीका

शोधकर्ताओं ने अपने निष्कर्ष में कहा कि नई विधि न केवल किफायती है, बल्कि सटीक और विश्वसनीय भी है
फोटो साभार : आईस्टॉक
फोटो साभार : आईस्टॉक
Published on

मधुमेह या डायबिटीज का अक्सर तब तक पता नहीं चलता जब तक कि यह अंगों या तंत्रिकाओं को क्षतिग्रस्त न कर दे। कुछ हद तक इसके पीछे का कारण शुरुआती दौर में जांच समय लेने वाली और कठिन होना है।  

जर्मनी के रुहर यूनिवर्सिटी बोचुम के मेडिसिन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. जोहान्स डिट्रिच के नेतृत्व में शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम मधुमेह की शुरुआती जांच का आसान तरीका विकसित किया है। शोधकर्ताओं ने दिखाया है कि रक्त के नमूने के रूप में लिए गए सिर्फ दो बूंदों के आधार पर गणितीय गणना संभव है।

शोध में कहा गया है कि यह शुरुआती दौर में मधुमेह की विश्वसनीय और किफायती जांच का सबसे बेहतर तरीका है।

मधुमेह का पता अक्सर लंबे समय तक पता नहीं चल पाता है

शोध के हवाले से जोहान्स डिट्रिच बताते हैं, मधुमेह से पीड़ित सभी लोगों में से 30 प्रतिशत की जांच नहीं हो पाती है जिसके कारण उन्हें कोई इलाज नहीं मिल पाता है। इसके पीछे का कारण कुछ हद तक शुरुआती दौर में बीमारी का पता न लग पाना है।

डायट्रिच कहते हैं, मधुमेह धीरे-धीरे शुरू होता है, और हमारे जांच के विकल्प इसका पता लगाने के लिए पर्याप्त संवेदनशील नहीं हैं, इसके अलावा, वे पर्याप्त विशिष्ट नहीं हैं। जिसका अर्थ है कि गलत तरीके से मधुमेह के पॉजिटिव परिणाम भी हो सकते हैं। शोध के निष्कर्ष जर्नल ऑफ डायबिटीज में प्रकाशित किए गए हैं।

डायट्रिच ने जर्मनी, भारत, सिंगापुर और यूके के अपने सहयोगियों के साथ मिलकर मधुमेह का शीघ्र पता लगाने के लिए एक नई विधि पर शोध किया है। यह स्पाइना कार्ब नामक विधि गणितीय मॉडलिंग पर आधारित है।

इसमें बस खून के एक नमूने की जरूरत पड़ती है, जो सुबह मरीज के नाश्ता करने से पहले लिया जाता है। नमूने में मापे गए दो मान प्रासंगिक हैं, पहला इंसुलिन का मान और दूसरा ग्लूकोज का मान।

जोहान्स डिट्रिच बताते हैं, हम इन मानों को एक समीकरण में दर्ज करते हैं जो चीनी चयापचय के लिए शरीर के नियंत्रण लूप का वर्णन करता है और इसे एक निश्चित बदलाव के अनुसार तोड़ देता है। इसके परिणाम एक तथाकथित स्थैतिक स्वभाव सूचकांक (स्पाइना-डीआई) है।

अन्य मार्करों की तुलना में अधिक विश्वसनीय

कंप्यूटर सिमुलेशन में, शोध टीम ने साबित किया कि नया पैरामीटर गतिशील क्षतिपूर्ति के सिद्धांत की पुष्टि करता है। जो इस बात का पूर्वानुमान लगाता है कि चयापचय सिंड्रोम वाले लोगों में इंसुलिन प्रतिरोध की भरपाई किस तरह होगी, जो कि अग्नाशयी बीटा कोशिकाओं द्वारा उनकी गतिविधि को बढ़ाकर की जाती है।

उन्होंने बताया कि अमेरिका, जर्मनी और भारत के स्वयंसेवकों के तीन समूहों के बाद के अध्ययन ने इस धारणा का समर्थन किया। तीनों समूहों में, हमने पाया कि गणना की गई स्पाइना-डीआई चयापचय क्रिया के प्रासंगिक संकेतकों से संबंधित है, जैसे कि ग्लूकोज का सहिष्णुता परीक्षण की प्रतिक्रिया।

इसके अलावा स्पाइना-डीआई ग्लूकोज चयापचय के अन्य गणना किए गए मार्करों की तुलना में अधिक विश्वसनीय साबित हुआ और इसने सटीक तरीके से पता लगाया।

शोधकर्ताओं ने अपने निष्कर्ष में कहा कि नई विधि न केवल किफायती है, बल्कि सटीक और विश्वसनीय भी है। यह मौजूदा विधियों का स्थान लेने के लिए तैयार है।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in