कोरोना से “रिकवरी” का मतलब पूरी तरह ठीक होना नहीं

संक्रमित की रिपोर्ट नेगेटिव आने पर उसे रिकवर मान लिया जाता है और सरकार भी इसका श्रेय लेकर अपनी पीठ थपथपा लेती है। लेकिन क्या रिकवर हुए मरीज वाकई स्वस्थ हैं?
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कोरोनावायरस से रिकवरी का मतलब क्या मरीज का ठीक होना है? चिकित्सीय शब्दावली में संक्रमित की रिपोर्ट नेगेटिव आने पर उसे रिकवर मान लिया जाता है और सरकार भी इसका श्रेय लेकर अपनी पीठ थपथपा लेती है। लेकिन क्या रिकवर हुए मरीज वाकई स्वस्थ हैं? यह जानने के लिए डाउन टू अर्थ ने कुछ रिकवर हुए मरीजों से बात की

चंदन कुमार, 34 साल

दिल्ली के पांडव नगर में रहने वाले 34 साल के चंदन कुमार कोरोनावायरस से संक्रमित होने के बाद चिकित्सीय भाषा में रिकवर तो हो गए लेकिन पूरी तरह ठीक नहीं हुए हैं। चंदन कुमार को जीवन में कभी सिरदर्द नहीं हुआ था लेकिन कोरोनावायरस से संक्रमित होने के बाद असामान्य ढंग से उन्हें अचानक सिर में दर्द होने लगता है। यह दर्द भी एक जगह नहीं बल्कि सिर के अलग-अलग हिस्सों में होता है। चंदन पहले चार से पांच मंजिल तक आसानी से सीढ़ियां चढ़ लेते थे लेकिन अब दूसरी मंजिल तक पहुंचते-पहुंचते उनकी सांस फूलने लगती है। रात को सोने के दौरान भी सांसों के अचानक उतार-चढ़ाव से वह परेशान हो उठते हैं। चंदन बताते हैं,“कभी-कभी चलते वक्त लगता है कि चक्कर खाकर गिर पड‍ूंगा। हमेशा कमजोरी और थकान महसूस होती है।”

चंदन 28 जून को बुखार, सूखी खांसी और सिरदर्द के लक्षणों साथ बीमार हुए थे। 8 जुलाई को उन्होंने कोरोना का टेस्ट कराया और एक बाद आई रिपोर्ट में वह संक्रमित पाए गए। चंदन बताते हैं कि उन्हें कोरोना के हल्के लक्षण थे, लिहाजा डॉक्टर ने घर पर ही आइसोलेशन में रहने की सलाह दी। इस दौरान का बुखार और मल्टीविटामिंस की दवा खाते रहे। 25 जुलाई को फिर से जांच कराई तो रिपोर्ट नेगेटिव आई। चंदन बताते हैं कि कोरोनावायरस के संक्रमण के दौरान उन्हें इतनी परेशानी नहीं हुई, जितनी अब हो रही है। उन्हें उम्मीद है कि एक-दो महीने का वक्त गुजरने के साथ उनकी समस्याएं खत्म हो जाएंगी।

अवनीश चौधरी, 38 साल

एक समाचार चैनल में संवाददाता अवनीश चौधरी को भी चंदन की तरह लगता था कि कोरोनावायरस के कारण उनके शरीर में आई कमजोरी और थकान की समस्या कुछ महीनों बाद दूर हो जाएगी। उन्हें कोरोनावायरस से उबरे दो महीने हो गए हैं लेकिन समस्याएं अब भी बरकरार हैं। अवनीश को भी चलते या सीढ़ियां चढ़ते वक्त सांस फूलने ही समस्या हो रही है। वह डाउन टू अर्थ को बताते हैं कि रात को सोते समय पीठ के बल लेटने पर सांस लेने में अचानक तकलीफ होने लगती है। सांसों का टूटना और जल्दी-जल्दी चलना अब सामान्य होता जा रहा है। वह अब यह मानकर चल रहे हैं कि यह समस्या लंबे समय तक बनी रहेगी। अवनीश ने भी चंदन की तरह रिपोर्ट पॉजिटिव आने पर खुद को घर में क्वारंटाइन कर लिया था। रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद दोनों का डॉक्टर से संपर्क टूट गया।

सुशीला, 38 साल

दिल्ली की 38 वर्षीय शिक्षिका सुशीला भी एक अजीब समस्या से जूझ रही हैं। उन्हें अचानक घबराहट होने लगती है और दिल की धड़कन अप्रत्याशित रूप से तेज हो जाती है। कई बार यह धड़कन इतनी तेज होती है कि उन्हें लगता है कलेजा सीने से बाहर न निकल जाए। सुशीला बताती हैं कि कोरोनावायरस से संक्रमित होने से पहले दिल का इतना तेज धड़कना रेयर था लेकिन संक्रमण के बाद हफ्ते में एकाध बार ऐसा हो जाता है। उन्हें हैरानी तब होती है जब चेक करने पर दिल की धड़कन सामान्य आती है। सुशीला ने 7 जून को अपना कोरोना टेस्ट कराया था। तीन दिन बाद उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई। इसके बाद डॉक्टर ने उन्हें जांच कराने से मना कर दिया और उन्होंने 15 दिन बाद मान लिया कि वह संक्रमण से मुक्त हो गई हैं। उनके परिवार के किसी अन्य सदस्य की भी जांच नहीं हुई।

जुगल किशोर शर्मा, 39 साल

भोपाल में रहने वाले 39 साल के जुगल किशोर शर्मा 3 अप्रैल को कोरोना से संक्रमित हुए और 27 अप्रैल को रिकवर हो गए। तीन महीने से अधिक समय गुजरने के बाद भी जुगल पूरी तरह ठीक नहीं हो पाए हैं। कोरोनावायरस ने उनके फेफड़ों पर हमला किया था। फेफड़ों को पहुंचे नुकसान का ही नतीजा है कि थोड़ा ज्यादा चलने पर वह हांफने लगते हैं। उन्हें आशंका है कि वह भविष्य में अस्थमा का शिकार हो सकते हैं। जुगल ने रिकवर होने के बाद चार बार अपने फेफड़ों का एक्सरे कराया है और हर बार उनके फेफड़ों को पहुंचा नुकसान दिख रहा है। 

पूनम बिष्ट, 35 साल

दिल्ली के मयूर विहार, फेज-3 में रहने वाली 35 वर्षीय पूनम बिष्ट के परिवार के सभी छह सदस्य कोरोनावायरस के संक्रमण से दो महीने मुक्त हुए हैं लेकिन घर के सभी सदस्यों को कोई न कोई समस्या बनी हुई है। पूनम अस्थमा की मरीज हैं। जून के आखिर में कोविड-19 से रिकवर के बाद उन्हें लगा था कि सब ठीक हो गया है लेकिन यह उनका भ्रम था। कुछ समय बाद उन्होंने महसूस किया कि उनकी सूंघने की क्षमता अब भी पूरी तरह से नहीं लौटी है। उन्हें अक्सर थकान महसूस होती है और एसी में रहने पर सांस लेने में तकलीफ होने लगती है। उनके 63 वर्षीय ससुर को अब भी हल्की खांसी है। सास ससुर दोनों कमजोरी महसूस करते हैं।    

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