मुझे चीन में एक रहस्यमयी वायरस के तेजी से फैलने की खबर मिली, जिसके बाद 24 जनवरी 2020 को मैं वुहान से भारत आ गई। मैं वुहान विश्वविद्यालय में एमबीबीएस की पढ़ाई कर रही थी और सेमेस्टर की छुट्टियां बस शुरू ही हुई थीं। घर आने के दो दिन बाद मुझे सूखी खांसी होने लगी। मेरा परिवार मुझे तुरंत त्रिशूर के सरकारी अस्पताल ले गया, जहां डॉक्टरों ने मुझे अस्पताल मे भर्ती होने को कहा और तुरंत ही मेरे स्वैब का नमूना ले लिया गया।
अस्पताल में मेरे कमरे में एक टीवी था। 30 जनवरी को मैंने टीवी पर एक ब्रेकिंग न्यूज देखी, जिससे मुझे पता चला कि कोरोना वायरस का पहला केस मेरे पैतृक शहर त्रिशूर में सामने आया है। उस वक्त शाम के 4 बज रहे थे। सूखी खांसी के अलावा मेरे अंदर कोई और लक्षण नहीं थे, इसलिए मुझे बिल्कुल नहीं लगा कि ये खबर मेरे बारे में है। लेकिन मेरे पॉजिटिव होने की बात सुनकर मेरे परिवार वाले काफी डर गए। जैसे ही मामले की पुष्टि हुई, बाकी मरीजों ने डर से अस्पताल खाली कर दिया। मेरे पिता सहित मेरे नजदीकी संपर्क में आए लगभग 14 लोगों को क्वारंटाइन किया गया और उनका भी परीक्षण हुआ। हालांकि, वे सभी निगेटिव पाए गए।
कोविड के इतिहास में अपना नाम दर्ज कराने के लगभग दो साल बाद मैं अब तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री केके शैलजा और त्रिशूर के तत्कालीन जिलाधिकारी एस शनावास की ओर से मुहैया कराई गई मदद को याद करती हूं। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि मुझे मेडिकल कॉलेज के विशेष कोविड केयर सेंटर में बढ़िया दवाएं, अच्छा भोजन और पर्याप्त कपड़े उपलब्ध हो सकें। केयर सेंटर में मुझे बेहद उम्दा और विश्व स्तरीय सुविधाएं मिलीं। डॉक्टरों, नर्सों और अस्पताल के कर्मचारियों ने भी मेरा अच्छी तरह खयाल रखा।
मुझे नहीं मालूम कि मैं कब वुहान लौट पाऊंगी और अपना कोर्स पूरा कर सकूंगी। फिलहाल मेरा ध्यान ऑनलाइन क्लासेज पर है। मेरे लिए मेरी क्लासेज जरूरी हैं और मुझे निजता पसंद है, इसलिए मैं मीडिया में आने से बचती हूं। महामारी आने के बाद वुहान से केरल लौटे बाकी मेडिकल छात्रों के साथ भी ऐसा ही है। जैसे ही मेरे कोविड पॉजिटिव होने की पुष्टि हुई, मैंने साथ यात्रा करने वाले अपने सभी दोस्तों को फोन किया और उन्हें संबंधित स्वास्थ्य अधिकारियों से संपर्क करने को कहा। इसके साथ ही मैंने उनके नंबर स्वास्थ्य अधिकारियों को भी दे दिए, ताकि वे फॉलोअप कर सकें। मैं शारीरिक तौर पर एकदम ठीक थी और बदन दर्द जैसी भी कोई दिक्कत महसूस नहीं हो रही थी। ऐसे में मैंने पूरी कोशिश की कि इस चुनौती का सामना सहजता के साथ कर सकूं। स्वास्थ्य मंत्री ने मेरी मां को फोन कर उन्हें ढाढस बंधाया। 20 फरवरी को मुझे अस्पताल से छुट्टी मिल गई। घर लौटने के बाद भी इतने लंबे समय तक के लिए अलग-थलग रहना आसान नहीं था। लेकिन, कुछ काउंसिलर मेरे मानसिक स्वास्थ्य पर लगातार ध्यान देते रहे, फोन करके मुझसे बात करते रहे। इससे मुझे बहुत मदद मिली।
इसी साल 9 जुलाई को पता चला कि मैं फिर से महामारी की शिकार हो गई हूं। हालांकि मुझमें कोई लक्षण नहीं थे, लेकिन आरटीपीसीआर टेस्ट में मैं पॉजिटिव निकली। मुझे किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं हो रही थी, इसलिए मैंने होम क्वारंटाइन में ही रहना ठीक समझा। इस बार मैंने घर के कुछ काम की वजह से दिल्ली जाने के लिए आरटीपीसीआर टेस्ट कराया था। लेकिन, जैसे ही मेरी रिपोर्ट पॉजिटिव आई, मैंने दिल्ली जाने का इरादा छोड़ दिया।
जब दुनियाभर में महामारी फैलने लगी थी, तब मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं भारत की पहली मरीज बनूंगी। वायरस से दोबारा संक्रमित होना मेरे लिए एक झटके जैसा था। मैंने कभी नहीं सोचा था कि यह फिर से परेशान करने आएगा। दूसरी बार भी अधिकारियों ने मुझे चिंता न करने को कहा। उन्होंने मुझे कुछ सामान्य दवाओं के साथ ही होम आइसोलेशन में रहने की सलाह दी। मैंने दो महीने पहले कोविशील्ड वैक्सीन ले ली है और उम्मीद है कि अब अगली लहर में यह वायरस मुझे संक्रमित नहीं करेगा। अपना कोर्स पूरा करने के बाद मैं केरल में जरूरतमंदों के लिए वायरस से संबंधित देखभाल पर काम करना चाहती हूं।
(केए शाजी से बातचीत पर आधारित)