
थार के रेगिस्तान में विरह गीतों का केन्द्र रही कुरजां (डोमइसेल क्रेन) के लिए ये सर्दी पिछले सालों की तरह ही अच्छी नहीं रहीं। अब तक बिजली के तारों में उलझ कर मर रही कुरजां को इस साल बर्ड फ्लू ने अपनी चपेट में लिया है।
जैसलमेर जिले के देगराय ओरण और मोहनगढ़ इलाके में फैले बर्ड फ्लू की वजह से अब तक 33 कुरजां पक्षियों की मौत हो चुकी है। सोमवार को ही देगराय के छोड़िया गांव के पास एक कुरजां मृत मिली। 11 जनवरी से शुरू हुआ पक्षियों के मरने का सिलसिला अभी जारी है। पशुपालन विभाग के अनुसार अभी तक 31 कुरजां यानी डोमेइसेल क्रेन की मौत हो चुकी है।
हालांकि स्थानीय लोगों के मुताबिक 33 कुरजां की मौत हुई है। मृत पक्षियों में एक गिद्ध और कोयल भी शामिल है।पशुपालन विभाग का कहना है कि गिद्ध की मौत बिजली के तारों में उलझ कर हुई थी। गलती से उसे बर्ड फ्लू से हुई मौत वाली लिस्ट में डाल दिया गया था।
गौरतलब है कि चीन, मंगोलिया और कजाकिस्तान जैसे देशों से करीब चार हजार किलोमीटर का सफर तय कर जैसलमेर के लाठी, खेतोलाई, डेलासर, धोलिया, लोहटा, चाचा, देगराय ओरण सहित अन्य जगहों पर कुरजां करीब 6 महीने प्रवास करती हैं।
उड़ते-उड़ते आसमान से गिरे 14 क्रेन, सैंपल भोपाल भेजे, रिपोर्ट का इंतजार
डाउन-टू-अर्थ को मिली जानकारी के अनुसार सबसे पहले 11 जनवरी को जैसलमेर के देगराय ओरण इलाके में कुरजां की मौत होना शुरू हुई। इस दिन 6, 12 और 13 जनवरी को 2-2, 15 जनवरी को तीन और 16 जनवरी को एक कुरजां मृत मिली। इस तरह देगराय में अब तक 14 क्रेन की मौत हो चुकी है।
इसके बाद 17 जनवरी को मोहनगढ़ के बांकलसर गांव में उड़ते-उड़ते 14 कुरजां एक खेत में गिरी और उनकी मौत हो गई। जैसलमेर में पशुपालन विभाग के ज्वाइंट डायरेक्टर डॉ. उमेश व्रंगतिवार ने डाउन-टू-अर्थ को बताया कि बांकलसर में मृत मिले पक्षियों का सैंपल लेकर भोपाल स्थित राष्ट्रीय उच्च सुरक्षा पशुरोग संस्थान (निषाद) लैब में भेजा है। जहां से अभी रिपोर्ट अगले एक-दो दिन में आएगी।
वहीं, देगराय से भेजे सैंपल में बर्ड फ्लू की पुष्टि हुई है। देगराय के लुनेरी तालाब में मिले शवों में एच5एन1 एवियन फ्लू की पुष्टि हुई है। पशुपालन विभाग केन्द्र सरकार की गाइड लाइन के अनुसार रेस्क्यू का काम कर रहा है। वहीं, मृत पक्षियों को पूरे प्रोटोकॉल के साथ दफनाया जा रहा है। वे जोड़ते हैं, “संक्रमित जगहों पर केमिकल का छिड़काव किया जा रहा है ताकि वायरस ना फैले। इसके बाद क्विक रिपॉन्स टीम के साथ ही पशु अस्पताल, चिकित्सा विभाग, वन विभाग और राजस्व विभाग के फील्ड के अधिकारियों को पूरी तरह से चौकस कर दिया गया है।”
वहीं, डाउन-टू-अर्थ ने बर्ड फ्लू से निपटने के लिए वन विभाग की ओर से की जा रही तैयारियों को लेकर जैसलमेर में वन विभाग के डीसीएफ (टैरिटोरियल) आशुतोष ओझा को फोन किया। उन्होंने व्यस्त होने की बात कह फोन काट दिया।
बता दें कि सबसे पहले दिसंबर में फलोदी के पास स्थित खींचन में प्रवासी पक्षियों की मौत हुई थी।राजस्थान में सर्दियों में प्रवास के लिए खींचन में ही सबसे अधिक कुरजां आती हैं। स्थानीय लोग इन्हें मेहमान मानकर इनके लिए खाने का इंतजाम भी करते हैं।
ज्यादा बारिश और खेतों में कीटनाशक का इस्तेमाल मौत की वजह तो नहीं?
पशुपालन और वन विभाग की रिपोर्ट्स में भले ही कुरजां के मरने का कारण बर्ड फ्लू बताया जा रहा हो, लेकिन कई स्थानीय पर्यावरणविद् पक्षियों के मरने का कारण कुछ और भी मानते हैं। पशुपालन विभाग के कुछ अधिकारियों ने नाम ना छापने के शर्त पर बताया कि इस साल जैसलमेर में हुई सामान्य से अधिक बारिश भी मौत का कारण हो सकती है। क्योंकि बारिश से कई नई जगहों पर पानी इकठ्ठा हुआ है। हो सकता है कि यहां मौजूद भोजन में कुछ जहरीला तत्व हो और पक्षियों की मौत हुई हो!
देगराय ओरण क्षेत्र के सांवता गांव के सुमेर सिंह कहते हैं कि अच्छी बारिश के बावजूद पिछले सालों की तुलना में इस साल कम कुरजां यहां आई हैं। हर साल कुरजां किसी न किसी वजह से जनवरी में ही मर रही हैं। इसकी गहन जांच होनी चाहिए। प्रवासी पक्षियों का इस तरह मरना रेगिस्तान के लिए ठीक नहीं है।
वहीं, जैसलमेर में रहने वाले और यहां के पर्यावरणीय बदलाव को बेहद नजदीक से देख रहे पार्थ जगाणी की राय कुछ अलग है।
वे बताते हैं, “ऐसा पहली बार नहीं है कि जनवरी में कुरजां मरी हैं। बीते कुछ सालों में एक पैटर्न बना है कि जनवरी महीने में ही कुरजां की मौत की खबर पूरे जिले से देखने-सुनने को मिल रही हैं। ऐसा शायद इसीलिए भी हो सकता है कि यह समय खेतों में कीटनाशक छिड़कने का है। कुरजां अक्सर चने के खेत में पत्ते चुगने जाती हैं। किसान पत्तों पर ही कीटनाशक छिड़कते हैं। कीटनाशकयुक्त पत्ते खाने से शायद इनकी मौत हो रही हो?”
जगाणी की बात को राधेश्याम पेमानी आगे बढ़ाते हैं। पेमानी पूरे जिले में पर्यावरण संरक्षण का काम करते हैं। वे जोड़ते हैं, “जैसलमेर में खड़ीन खेती होती है यानी पानी को रोककर नमी बनाई जाती है और फिर सरसों, चना जैसी रबी की मुख्य फसल ली जाती हैं। पानी वाली जगह पर ही (डोमइसेल क्रेन) प्रवास करती हैं। इन तालाबों से खेतों की दूरी बेहद कम होती है। मौजूद आकंड़ों के मुताबिक 2024 में 9, 2023 में 11 और 2022 में छह कुरजां की मौत जैसलमेर में हुई थी।”
पेमानी एक सवाल और उठाते हैं। कहते हैं, “बर्ड फ्लू तेजी से फैलने वाला वायरस है। यह बेहद कम समय में बड़ी संख्या में पक्षियों को अपनी चपेट में लेता है, लेकिन जैसलमेर में ऐसा नहीं हो रहा। हर साल कुछ कुरजां मर रही हैं। ऐसा पैटर्न बन गया है। इसीलिए सवाल उठता है कि सिंतबर से मार्च तक राजस्थान में प्रवास करने वाली कुरजां की मौत हर साल जनवरी महीने में ही क्यों हो रही है? इसीलिए हमारी मांग है कि प्रशासन को बर्ड फ्लू के साथ-साथ दूसरे पहलुओं पर भी ध्यान देना चाहिए।इसमें पक्षियों के भोजन, पानी की जांच की जा सकती है।”
इस साल रेगिस्तान में 60% अधिक बारिश हुई
इस साल पूरे राजस्थान में एक जून से एक अक्टूबर तक प्रदेश में औसत से 63 फीसदी ज्यादा बारिश दर्ज की गई है। वहीं, पश्चिमी राजस्थान यानी रेगिस्तानी जिलों में भी असामान्य यानी सामान्य से 60% या अधिक बारिश हुई थी। इनमें बीकानेर, बाड़मेर, जैसलमेर और जोधपुर शामिल हैं। जालोर में इस साल सामान्य यानी औसत बारिश से 20-59% ज्यादा बारिश हुई थी।
गोडावण ब्रीडिंग सेंटर में बाहरी लोगों का प्रवेश बंद
जैसलमेर जिले में फैल रहे बर्ड फ्लू के कारण राजस्थान के राज्य पक्षी गोडावण पर भी संकट गहराया है। इसीलिए वन विभाग की ओर से विशेष एहतियात बरती जा रही है। जैसलमेर में डीसीएफ (डीएनपी) आशीष व्यास ने डाउन-टू-अर्थ को बताया कि हम पशुपालन और राज्य सरकार की ओर से जारी की गई गाइडलाइन का पूरी तरह पालन कर रहे हैं। चूंकि डीएनपी एरिया में कुरजां का मूवमेंट नहीं है, इसीलिए यहां खतरा कम है। फिर भी हमने एहतियातन क्लोजर में बाहरी लोगों के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी है। वहीं, सम और रामदेवरा में गोडावण ब्रीडिंग सेंटर में भी एंट्री बंद कर दी है और स्टाफ को पूरे प्रोटोकॉल के साथ ही अंदर जाने दिया जा रहा है।
क्या है एच5एन1 एवियन ?
जैसलमेर के देगराय में कुरजां में मिले एच5एन1 एवियन इंफ्लूएंजा पक्षियों में आसानी से फैलने वाला वायरस है। यह जूनोटिक यानी जानवरों से इंसानों में फैल सकने वाली बीमारी है। इस वायरस से संक्रमित पक्षियों के संपर्क में आने से इंसानों में संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।
क्या होता है बर्ड फ्लू?
बर्ड फ्लू इंफ्लूएंजा वायरस से होने वाला संक्रमण है। यह आमतौर पर पक्षियों और जानवरों में फैलता है। कई बार यह संक्रमण जानवरों के जरिए इंसानों में भी फैल सकता है। बर्ड फ्लू के कई वेरिएंट काफी घातक होते हैं। हालांकि, एच9एनएन2 के मामले में बहुत गंभीर समस्याएं देखने को नहीं मिली है। इन्फ्लूएंजा वायरस 4 तरह का होता है, इन्फ्लूएंजा ए, बी, सी और डी। इनमें से ज्यादातर एवियन इन्फ्लूएंजा वायरस इंसानों को संक्रमित नहीं करते हैं। हालांकि ए(एच5एन1) और ए (एच7एन9) से इंसानों के संक्रमित होने का खतरा रहता है। अब ए (एच9एन2) नए खतरे के रूप में सामने आया है।