भारत में बच्चों के जीवन के लिए बड़ा खतरा हैं प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और जंक फूड

बच्चों के विकास सम्बन्धी चाइल्ड फ्लोरीशिंग इंडेक्स में भारत ने 180 देशों में 131 वां स्थान हासिल किया है
Photo: Vikas Choudhary
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बच्चे जो हमारा भविष्य हैं, जिन पर हमारी उमीदें टिकी हैं। आज उनका ही भविष्य सुरक्षित नहीं है। बढ़ता प्रदूषण, जलवायु में आ रहा बदलाव, पलायन, संघर्ष, असमानता, जंक फ़ूड बच्चों के स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा बनते जा रहे हैं। पिछले दो दशकों में बच्चों के स्वास्थ्य की दिशा में काबिले तारीफ प्रगति हुई है लेकिन प्रदूषण, क्लाइमेट चेंज, जंक फूड जैसे कारणों के चलते वो प्रभावित हो रही है। डब्ल्यूएचओ-यूनिसेफ-लांसेट आयोग ने आज बच्चों के स्वास्थ से जुडी एक नयी रिपोर्ट प्रकाशित की है। जो बच्चों के स्वास्थ्य से जुड़े इन्ही खतरों पर प्रकाश डालती है।

इस रिपोर्ट सतत विकास के लक्ष्यों को ध्यान में रखकर बच्चों के स्वास्थ्य से जुडी उच्च-स्तरीय सिफारिशें भी की गई हैं । आयोग ने इसके साथ ही बच्चों के विकास सम्बन्धी सूचकांक (चाइल्ड फ्लोरीशिंग इंडेक्स) को भी प्रस्तुत किया है। जिसमें दुनिया के 180 देशों में बच्चों के स्वास्थ्य, विकास और पर्यावरण से जुड़े मुद्दों का विश्लेषण किया गया है। और इसके आधार पर देशों को रेंक दिया गया है। इस इंडेक्स में भारत को 180 देशों में 131 वां स्थान दिया गया है। साथ ही, सूचकांक के अनुसार दुनिया का कोई भी देश उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा है। 

रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण के चलते हर साल करीब 38 लाख लोगों की मौत हो जाती है। 2016 के आंकड़ों के अनुसार दुनिया में करीब 300 करोड़ लोग खाना बनाने के स्वच्छ ईंधन और तकनीकों से दूर हैं। इनमें से करीब 190 करोड़ एशिया में और 85 करोड़ अफ्रीका में हैं। हालांकि दुनिया भर में बिजली से वंचित लोगों की संख्या 2000 में 170 करोड़ से घटकर 2016 में 110 करोड़ हो गयी थी। पर अभी भी दुनिया में 37 फीसदी ऊर्जा कोयले से प्राप्त की जाती है। जिसमें भारत और चीन की बड़ी हिस्सेदारी है। इससे होने वाला प्रदूषण सीधे तौर पर बच्चों के स्वास्थ्य पर असर डाल रहा है।

भारत में नवजातों के स्वास्थ सम्बन्धी सुधार के विषय में बताते हुए रिपोर्ट में दिया गया है कि करीब 10 लाख स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की मदद से नवजात मृत्यु दर में 31 फीसदी की कमी करने में कामयाबी हासिल की है। रिपोर्ट में 2014 के स्वच्छता मिशन का भी जिक्र किया है, जिसकी मदद से साफ पानी और स्वच्छता पर ध्यान दिया गया है। जिससे अतिसार या डायरिया जैसी बीमारियों की रोकथाम में मदद मिली है और खुले में शौच जैसी बीमारी को दूर किया जा सका है| जिसने बच्चों के स्वास्थ्य की दिशा में उल्लेखनीय वृद्धि की है।

इसके साथ ही यह रिपोर्ट सरकार और समाज की भागीदारी से बच्चों के लिए साफ पानी और स्वच्छता पर बल देती है। जिसकी मदद से माहवारी के कारण स्कूल न जाने वाली बच्चियां भी पढ़ने जा सकें। अध्ययन दिखाता है कि भारत में माहवारी के कारण 12 साल से कम उम्र की 13 फीसदी बच्चियां स्कूल जाना छोड़ देती हैं। रिपोर्ट के अनुसार यदि भारत सरकार अपनी जीडीपी का 5 फीसदी हिस्सा स्वास्थ्य पर खर्च करना शुरू कर दे तो वो अपने घरेलू सरकारी स्वास्थ्य खर्च में चार गुना की वृद्धि कर सकता है। इसके साथ ही यदि वो तम्बाकू, चीनी, शराब जैसे हानिकारक खाद्य पदार्थों पर टैक्स बढ़ा दे तो वो इसकी मदद से इन पदार्थों के उपभोग में कमीं करने के साथ-साथ अपने स्वास्थ्य राजस्व में भी बढ़ोतरी कर सकता है। साथ ही इस रिपोर्ट में अप्रैल 2005 में शुरू किये गए नेशनल रूरल हेल्थ मिशन के लाभों को भी उजागर किया गया है।

अफ्रीका में बच्चों पर मंडरा रहा है सबसे ज्यादा खतरा

अफ्रीका के चाड (179), सोमालिया (178), बुरुंडी (156), सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक (180), नाइजर (177), माली (176), गिनी (175), नाइजीरिया (174), साउथ सूडान (173), सिएरा लियॉन (172) जैसे देश जो इस इंडेक्स में सबसे खराब प्रदर्शन कर रहे हैं। वो संघर्ष और खाद्य सुरक्षा जैसे अन्य मानवीय संकटों से घिरे हुए हैं, जिसका मूल कारण जलवायु में आ रहा बदलाव ही है। यदि अमीर और गरीब देशों के बच्चों को देखें तो रिपोर्ट के अनुसार गरीब देशों को बच्चों के स्वास्थ्य को बनाये रखने के लिए अभी भी काफी ज्यादा काम करने की जरुरत है, वहां अभी भी स्वास्थ्य क्षेत्र की स्थिति अच्छी नहीं है। जबकि ओमान, क़तर, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका जैसे अमीर देश आज भी जिस तेजी से कार्बन उत्सर्जन कर रहे हैं, उसके चलते वहां बच्चों का भविष्य खतरे में पड़ गया है।

रिपोर्ट के अनुसार बच्चों के स्वास्थ्य, शिक्षा, विकास पर किया गया निवेश ने केवल उनके स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से लाभदायक है बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों और समाज के लिए भी फायदेमंद है। यह रिपोर्ट सरकार की जिम्मेदारी पर भी प्रकाश डालती है। जिसके अनुसार यह सरकार की जिम्मेदार है वो कि बच्चों के लिए स्वास्थ्य, पोषण, साफ पानी, साफ हवा जैसी बुनियादी जरुरतों को पूरा करे, जिससे उनका समुचित विकास संभव हो सके। साथ ही उन्हें आवास, ऊर्जा, ट्रांसपोर्ट, कृषि जैसे मुद्दों पर भी ध्यान देने की जरुरत है, जिससे उनके स्वास्थ्य और विकास पर पड़ने वाले जोखिम को सीमित किया जा सके।

यह बच्चों के स्वास्थ्य के दृश्टिकोण से हानिकारक पदार्थों के व्यापर विनियमन पर भी जोर देती है जिससे बढ़ते हुए जंक फ़ूड, तंबाकू और अन्य हानिकारक पदार्थों के व्यापर को सीमित किया जा सके और बच्चों के स्वास्थ्य की रक्षा की जा सके। साथ ही रिपोर्ट प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन से बच्चों के स्वास्थ्य पर पड़ रहे असर के बारे में भी आगाह करती है। और राष्ट्रीय स्तर पर उससे निपटने पर जोर देती है।

दुनिया भर में धरती का वातावरण तेजी से बदल रहा है। और इससे पहले बहुत देर हो जाये, हमें उससे निपटने की दिशा में सार्थक कदम उठाने की जरुरत है। रिपोर्ट के अनुसार बच्चों के स्वास्थ्य की दिशा में उठाया गया कदम आने वाली पीढ़ियों का भविष्य सवांर सकता है। आज जिस तरह से बच्चे जलवायु परिवर्तन के खतरे के बारे में अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं, वो निश्चय ही हमारे लिए एक नयी आशा लाएं हैं।

आज बच्चे पहले की तुलना में अपने पर्यावरण को लेकर कहीं ज्यादा संजीदा हो गए हैं और वो आशा करते हैं कि प्रशासन, नीति निर्माता और वैश्विक समाज उनकी बात गंभीरता से सुनेगा। साथ ही उस दिशा में प्रभावी कदम भी उठाएगा। जलवायु परिवर्तन जीवन के हर पहलु पर अपना असर डाल रहा है। इन बच्चों में ही हमारा भविष्य है। अब हम इनके और अपने पर्यावरण के स्वास्थ्य के साथ समझौता नहीं कर सकते। यह समय न तो हार मानने का है न ही बहाना बनाने का। यदि हम मिलकर काम करें तो अभी भी इस दुनिया को बदला जा सकता है।

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