हाल ही में किए गए एक नए अध्ययन से पता चला है कि जिन इलाकों में वायु प्रदूषण विशेषतौर पर पीएम 2.5 का स्तर ज्यादा है और हरियाली की कमी है वहां यह परिस्थितियां बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकती हैं। इतना ही नहीं इसकी वजह से बच्चों में एडीएचडी यानी अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर के विकसित होने का जोखिम 62 फीसदी तक बढ़ सकता है।
वहीं इसके विपरीत हरे-भरे कम प्रदूषित क्षेत्रों में रहने वाले बच्चों में इस विकार के विकसित होने का खतरा 50 फीसदी तक कम होता है। यह जानकारी बार्सिलोना इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ (आईएस ग्लोबल) के शोधकर्ताओं द्वारा किए अध्ययन में सामने आई है, जोकि जर्नल एनवायरनमेंट इंटरनेशनल में प्रकाशित हुआ है।
क्या होता है अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (एडीएचडी)
अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (एडीएचडी) बचपन में होने वाला सबसे आम मानसिक विकास सम्बन्धी विकार है। इससे ग्रस्त बच्चों या व्यक्तियों के मस्तिष्क के विकास और गतिविधि में अंतर होता है। देखा जाए तो यह विकार बच्चों में ध्यान लगाने, स्थिर बैठने की क्षमता और उनके आत्म-नियंत्रण को प्रभावित करता है।
इतना ही नहीं इसके चलते बच्चों में आवेश को नियंत्रित करने में परेशानी हो सकती है, जिसका मतलब है कि इसके कारण बच्चे बिना सोचे समझे कार्य कर सकते हैं। शोधकर्ताओं द्वारा किए इस अध्ययन का उद्देश्य जीवन के शुरूआती वर्षों में हरियाली, ध्वनि और वायु प्रदूषण, के बीच के संभावित जुड़ाव का अध्ययन करना था। जो एडीएचडी का कारण बन सकता है।
गौरतलब है कि यह मानसिक विकार लगभग 5 से 10 फीसदी बच्चों और किशोरों को प्रभावित करता है। इसे समझने के लिए वैज्ञानिकों ने 2000 से 2001 के बीच कनाडा के वैंकूवर शहर में जन्मे 37,000 बच्चों के स्वास्थ्य से जुड़े आंकड़ों का अध्ययन किया है। इसके लिए उन्होंने अस्पताल के रिकॉर्ड, चिकित्सकों द्वारा लिखे नुस्खों से एडीएचडी सम्बन्धी मामलों के आंकड़ों को प्राप्त किया है।
वहीं बच्चों के घरों के आसपास हरियाली को मापने के लिए उपग्रहों से प्राप्त छवियों और साथ ही नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और पीएम 2.5 एवं ध्वनि प्रदूषण सम्बन्धी आंकड़ों का भी विश्लेषण किया है। साथ ही क्या इन तीन पर्यावरण प्रदूषकों और एडीएचडी के बीच कोई जुड़ाव है इसे समझने के लिए उन्होंने सांख्यिकीय मॉडल का उपयोग किया है।
क्या कुछ निकलकर आया अध्ययन में सामने
शोधकर्ताओं को जो जानकारी मिली है उसके अनुसार एडीएचडी के 1,217 मामले सामने आए थे, जोकि अध्ययन किए गए कुल बच्चों का करीब 4.2 फीसदी था। शोध से जो निष्कर्ष सामने आए हैं उसके अनुसार जिन क्षेत्रों में हरियाली ज्यादा थी वहां बच्चों के बीच एडीएचडी का जोखिम कम था। इतना ही नहीं हरियाली में 12 फीसदी की वृद्धि, एडीएचडी के जोखिम में 10 फीसदी की कमी से सम्बंधित थी।
वहीं वायु प्रदूषण के मामले में इसके विपरीत सम्बन्ध दर्ज किया गया था। जहां पीएम 2.5 का जोखिम ज्यादा था वहां एडीएचडी होने का खतरा भी उतना ज्यादा था। अनुमान है कि पीएम 2.5 के स्तर में हर 2.1 माइक्रोग्राम की वृद्धि एडीएचडी के जोखिम में 11 फीसदी की वृद्धि के लिए जिम्मेवार थी। हालांकि नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ2), ध्वनि प्रदूषण और एडीएचडी के बीच कोई सम्बन्ध नहीं देखा गया था।
हालांकि यह शोध केवल कनाडा के वैंकूवर शहर तक ही सीमित था, लेकिन इससे इतना तो स्पष्ट है कि पीएम 2.5 और हरियाली बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते हैं। ऐसे में दिल्ली और भारत के अन्य शहरों में जहां प्रदूषण का स्तर पहले ही काफी ज्यादा है और हरियाली की कमी है, वहां यह समस्या कहीं ज्यादा गंभीर हो सकती है। इसे देखते हुए यह जरुरी है कि देश में बढ़ते प्रदूषण को कम किया जाए साथ ही शहरों के विकास में पार्क और अन्य हरित क्षेत्रों पर भी विशेष ध्यान दिया जाए।