यूपी में 2 लाख से ज्यादा आरटी-पीसीआर नमूनों की जांच है पेंडिंग,संदिग्ध मरीज हताश होकर सीटी स्कैन के लिए विवश

प्रदेश में (28 अप्रैल-07 मई) के आरटी-पीसीआर आंकड़े यह बताते हैं कि इनकी पेडेंसी 2.30 लाख तक हो सकती है, जिसके कारण कोरोना संक्रमितों की वास्तविक संख्या हम नहीं जानते हैं।
फोटो: विकास चौधरी
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"बुखार है, खांसी आ रही है और बहुत कमजोरी लग रही है। 01 मई को जिला चिकित्सालय बहराइच में मैंने अपना आरटी-पीसीआर सैंपल दिया था। आज 07 मई को मुझे फोन से बताया गया है कि मैं कोरोना संक्रमित हूं और ऑक्सीमीटर खरीदने की सलाह भी दी गई है। यह तो अच्छा हुआ कि 01 मई को ही लक्षण आने के कारण मैंने निजी चिकित्सक की सलाह पर सीटी स्कैन कराया था, जिसमें संक्रमण की पुष्टि हो गई थी। उस दिन से मैं दवा ले रहा हूं लेकिन अभी तक कोई फायदा नहीं हुआ है। न ही घर पर कोई प्रशासन की तरफ से आया है और न ही मुझे किसी तरह की किट अभी तक दी गई है।" 

उत्तर प्रदेश के ग्रामीण जनपद बहराइच मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर कैसरगंज में 28 वर्षीय अमर कुमार सोनी यह आप बीती डाउन टू अर्थ से बताते हैं। उन्होंने बताया कि वे जिला चिकित्सालय की आरटी-पीसीआर रिपोर्ट के चक्कर में रहते तो शायद अब तक उनके साथ बहुत बुरा हो गया था।

अमर बताते हैं कि उनके 43 वर्षीय बड़े भाई अवधेश कुमार सोनी भी 06 मई को  कोरोना संक्रमण के बाद ऑक्सीजन लेवल गिरने के कारण अस्पताल में भर्ती हुए हैं। इतना ही नहीं सैंपल लेने और टेस्ट रिपोर्ट देने में कागजों में फ्रॉड भी चल रहा है। अमर ने अपना नमूना 01 मई को दिया लेकिन कागज में सैंपल लेने की तारीख 3 मई चढ़ाई गई।  

यह स्थिति सिर्फ उत्तर प्रदेश के एक जिले की नहीं है। डाउन टू अर्थ ने ऐसे ही कई जिलों में स्थितियों को खंगाला जहां संक्रमित तक रिपोर्ट सात दिन से ज्यादा की भी देरी से पहुंच रही है। सरकार का कहना है कि अधिकतम 24 से 48 घंटों के भीतर आरटीपीसीआर रिपोर्ट संबंधित व्यक्ति को मिल जानी चाहिए। 

उत्तर प्रदेश का दावा है कि देश में सर्वाधिक (4.3 करोड़) कोविड जांच की गई है। इसमें आरटी-पीसीआर के नमूने भी शामिल हैं। हालांकि, सरकार आरटी-पीसीआर के नमूनों के एकत्र करने और उन्हें जांचने की स्पष्ट तस्वीर नहीं पेश कर रही है।   

नाम न छापने की शर्त पर सरकार के सूत्रों ने ही डाउन टू अर्थ को बताया कि प्रदेश की कोविड प्रयोगशालाओं में करीब 2 लाख सैंपल अभी लंबित हैं। हालांकि, लंबित सैंपल की संख्या इससे भी अधिक हो सकती है। इस तथ्य की पुष्टि के लिए डाउन टू अर्थ ने प्रदेश के अपर मुख्य सचिव से भी बातचीत की। 

अपर मुख्य सचिव अमित मोहन प्रसाद डाउन टू अर्थ से बताते हैं "मुझे तत्काल यह जानकारी नहीं है कि प्रयोगशालाओं में कितने आरटीपीसीआर नमूने लंबित हैं लेकिन अभी तीन-चार दिन पहले ही प्रयोगशालाओं की जांच क्षमता को 75000 प्रतिदिन से बढ़ाकर 105000 प्रतिदिन तक पहुंचाया गया है। कुछ प्रयोगशालाओं में जांच करने वालों के बीच संक्रमण के कारण सैंपल लंबित हो, तो नहीं कह सकते, हां यह जरूर है कि अगले एक-दो दिन में जो भी लंबित नमूने होंगे उन्हें क्लीयर कर दिया जाएगा।"

उत्तर प्रदेश सरकार के बीते दस दिनों ( 28 अप्रैल से 07 मई ) के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में कुल 23 लाख से अधिक कोविड जांचे की गईं। इसमें करीब 11 लाख आऱटी-पीसीआर जांच नमूने एकत्र किए गए हैं।

एकत्र नमूनों और  प्रयोगशालाओं की जांच क्षमता के हिसाब से विश्लेषण करें तो परेशान करने वाले आंकड़े सामने आते हैं। 

आधिकारिक बयान के मुताबिक यदि देखें तो प्रदेश में 28 अप्रैल, 2021 से 03 मई, 2021 तक कुल छह दिनों में 75000 प्रतिदिन आरटी-पीसीआर जांच क्षमता के हिसाब से प्रयोगशालाओं ने कुल 4.50 लाख सैंपल निपटाए होंगे। वहीं, 04 मई से 07 मई तक कुल 4 दिनों में 105000 प्रतिदिन की क्षमता से कोविड प्रयोगशालाओं ने कुल 4.20 लाख सैंपल जांचे गए होंगे। यानी 10 दिनों में एकत्र किए गए कुल 11 लाख आरटी-पीसीआर सैंपल से महज 8.70 लाख सैंपल ही निपटाए जा सके हैं। करीब 2.30 लाख सैंपल अब भी कोविड प्रयोगशालाओं में लंबित हैं। 

उत्तर प्रदेश में 104 निजी प्रयोगशालाएं और 125 सार्वजनिक प्रयोगशालाएं कोविड की जांच कर रही हैं। इसका मतलब है कि प्रदेश में अभी प्रतिदिन कोविड मरीजों की संख्या का आंकड़ा जो हम जानते हैं वह भ्रामक हो सकता है। 

30 अप्रैल, 2021 को प्रदेश में सर्वाधिक 36 हजार कोविड संक्रमण के मामले सामने आए थे। 07 मई को बताया गया कि प्रदेश में रोजाना मिलने वाले कोविड संक्रमितों की संख्या घटकर 28,076 पहुंच गई। यदि प्रयोगशालाओं में लंबित आरटीपीसीआर की जांच को क्लीयर किया जाए तो यह आंकड़े बढ़ सकते हैं।  परेशानी ग्रामीण जनपदों में बनी हुई है। साथ ही इससे टेस्ट, ट्रेस और ट्रीट पर अमल भी नहीं हो पा रहा है। 

झांसी के डीएम आंद्रा वाम्सी ने डाउन टू अर्थ को बताया कि आरटी-पीसीआर की प्रक्रिया में पूरे तीन दिन लग जाते हैं। एक दिन कलेक्शन, एक दिन लैब में डिलेवरी और तीसरे दिन जांच में निकल जाता है। यह तीन दिन (72 घंटे या उससे ज्यादा) की प्रक्रिया बन जाता है क्योंकि संक्रमण दर काफी ज्यादा है। इस कारण से हमारे यहां करीब 2.5 हजार की पेडेंसी है।

वाम्सी कहते हैं कि एंटीजन की तरह आरटी-पीसीआर टेस्ट को हल्के में नहीं लिया जा सकता है। दरअसल इसे एकत्र करना और लैब में पहुंचाना एक बड़ी प्रक्रिया है। इसे एकत्र करने के बाद प्रयोगशाला पहुंचने में 24 घंटे का वक्त लग जाता है। जो भी आरटी-पीसीआर सैंपल हमारे एकत्र होकर आते हैं उन्हें कार्यालय से वायरल टेस्ट मशीन बॉक्स में रखते हैं। फिर वीएसएल-3 लैब में इसे रजिस्टर्ड करके सौंप दिया जाता है।

टेस्ट प्रक्रिया में सैंपल की जांच को कई हिस्सों में तोड़ा जाता है। कोल्ड कंडीशन में मशीनें चलती रहती हैं। फिर वायरल लोड ज्यादा होने पर सैंपल में वायरस की खोज करना एक जटिल प्रक्रिया है। इस दौरान मशीनों को भी आराम चाहिए होता है। ऐसे में यह जल्दी की प्रक्रिया नहीं बन सकती है।  

कोविड-19 की दूसरी लहर में जानलेवा लक्षण सामने आ रहे हैं, संक्रमित मरीज या संदिग्ध मरीज आरटी-पीसीआर की इस देरी से परेशान होकर सीटी स्कैन की तरफ चले जाते हैं। इससे ग्रामीण जनता को मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है।

महोबा के मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय ने डाउन टू अर्थ को जानकारी दी कि उनके पास 3 मई को आरटी-पीसीआर नमूनों की पेडेंसी करीब 1800 थी। इस पेडेंसी को खत्म करने के लिए उन्हें अपने सैंपल झांसी भेजने को कहा गया है। इसी तरह की परेशानी आजमगढ़ के मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने भी डाउन टू अर्थ को बताई।   

यह देरी सिर्फ इन्हीं जिलों में नहीं है बल्कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद गोरखपुर में भी है। गोरखपुर के चिकित्सा अधिकारी आलोक कुमार पांडेय ने डाउन टू अर्थ से बताते हैं कि इन दिनों बीआरडी मेडिकल कॉलेज की कोविड लैब में जांच करने वाले संक्रमित हो गए हैं। साथ ही वायरल लोड भी काफी ज्यादा है ऐसे में आरटी-पीसीआर की रिपोर्ट मिलने में काफी देरी हो रही है।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में आरटी-पीसीआर टेस्ट के आंकड़े ही 12 अप्रैल के बाद से नहीं जारी किए गए। आंकड़ों की यह आंख-मिचौली सरकार के प्रयासों और महामारी के कमजोर होने की तस्वीर को धुंधला बनाती है।  

ज्यादातर प्रयोगशालाएं अब भी बड़े शहरों में हैं, इसकी वजह से कई जिलों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। सुल्तानपुर के मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने डाउन टू अर्थ से बताया कि आरटी-पीसीआर टेस्ट की संख्या को बढा दिया गया है। सभी नमूने लखनऊ केजीएमयू भेजे जाते हैं ऐसे में सात दिन के टाइम पर रिपोर्ट हमें मिल रही है। 

 798,800,000 रुपए आपदा निधि के कोविड-19 अस्पताल और प्रयोगशालाओं को बेहतर बनाने के लिए 22 अप्रैल को प्रदेश में राज्यपाल ने स्वीकृत किया है। इस फंड का इस्तेमाल हो रहा है लेकिन परिणाम बहुत धीरे हैं। महामारी के दौर में यह धीमापन कई जिंदगियां समाप्त कर रहा है।  

आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में कुल 42500649 सैंपल आजतक जांचे गए हैं। इनमें 1453679 पॉजिटिव और 41046970 निगेटिव पाए गए हैं। 

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