मां के दूध में मौजूद कोरोनावायरस को पाश्चराइजेशन के जरिए खत्म किया जा सकता है। यह जानकारी हाल ही में किए एक नए शोध में सामने आई है। यह शोध यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू साउथ वेल्स और ऑस्ट्रेलिया की रेड क्रॉस लाइफब्लड मिल्क नामक संस्था द्वारा सम्मिलित रूप से किया गया है। जोकि जर्नल ऑफ पीडियाट्रिक्स एंड चाइल्ड हेल्थ में प्रकाशित हुआ है।
इस शोध के प्रमुख ग्रेग वॉकर ने बताया कि, "हालांकि, इस बात का कोई सबूत नहीं है कि मानव दूध के माध्यम से वायरस फैल सकता है, लेकिन इस बात का जोखिम हमेशा बना रहता है। ऐसे में पाश्चराइजेशन की मदद से इस वायरस को फैलने से रोक सकते हैं।
इसको समझने के लिए वैज्ञानिकों ने दूध के नमूनों को जो कोरोनावायरस से संक्रमित थे उन्हें 30 मिनट के लिए 63 डिग्री सेल्सियस पर गर्म किया गया। जैसा की आमतौर पर मिल्क बैंक्स में किया जाता है। पाश्चराइजेशन के बाद जब इस दूध को टेस्ट किया गया तो उसमें कोरोनावायरस नहीं पाया गया। वॉकर ने बताया कि हमने वायरस की जिस मात्रा पर टेस्ट किये थे वो वास्तविकता में उस महिला के दूध में पाए गए गए वायरस से कहीं ज्यादा थे जो कोविड-19 से संक्रमित थी।
वैज्ञानिकों ने दूध को कोल्ड स्टोरेज में रखकर भी टेस्ट किया है, पर 4 से -30 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर यह वायरस नष्ट नहीं हुआ था। इस तरह यह स्पष्ट है कि कोरोनावायरस को पाश्चराइजेशन के जरिए दूध में से ख़त्म किया जा सकता है।
गौरतलब है कि इस प्रक्रिया में दूध को निर्धारित तापमान पर इतने समय तक गर्म किया जाता है, जिससे उसमें मौजूद सभी तरह के रोगाणु नष्ट हो जाते हैं, इसी प्रक्रिया को पाश्चराइजेशन कहते हैं। आमतौर पर दूध को दूध को 62 डिग्री सेल्सियस तापमान पर 30 मिनट तक गर्म करने से उसमें मौजूद रोगाणु मर जाते हैं।
भारत ही नहीं दुनिया भर में बच्चे को दिए गए दूध को अमृत के समान माना जाता है। इसमें कई ऐसे पोषक तत्त्व होते हैं, जो बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए जरुरी होते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार यदि दुनिया भर में 0 से 23 महीने के सभी बच्चों को जरुरी मां का दूध मिल जाए तो उससे हर साल 820,000 बच्चों की जान बचाई जा सकती है। इससे न केवल उनका मानसिक और बौद्धिक विकास होता है साथ ही भविष्य में उनके बेहतर प्रदर्शन की संभावनाएं भी बढ़ जाती है जो विकास के लिए जरुरी है।
यदि वैश्विक आंकड़ों पर गौर करें तो 2019 में वर्ष से कम आयु के करीब 14.4 करोड़ बच्चे अपनी आयु के मुकाबले अन्य बच्चों से काफी छोटे हैं। जबकि 4.7 करोड़ औसत से कहीं ज्यादा पतले हैं। वहीं 3.83 करोड़ बच्चे सामान्य से भारी और मोटापे से ग्रस्त हैं। इन सभी के लिए पोषण की कमी जिम्मेवार है।
अनुमान है कि हर साल बच्चों की होने वाली कुल मौतों में से 45 फीसदी के लिए पोषण की कमी जिम्मेदार है। जिसे पर्याप्त स्तनपान और पोषण की मदद से टाला जा सकता था। पर दुनिया में हर बच्चा उतना खुशकिस्मत नहीं होता जिसे मां का दूध नसीब हो सके ऐसे में इस कमी को पूरा करने के लिए मिल्क बैंक बनाए गए हैं जिससे जरूरतमंद बच्चो के लिए दूध की जरुरत पूरी की जा सके। लेकिन कोरोना वायरस का खतरा उनपर भी बना हुआ है, पर हाल ही किए गए इस शोध से साबित हो गया है कि पाश्चराइजेशन की मदद से इस वायरस को मां के दूध में फैलने से रोक सकते हैं।