नवंबर 2016 में देश में नोटबंदी की घोषणा के बाद दिसंबर 2016 में प्रधानमंत्री मातृ वंदन योजना की घोषणा की गई थी। घोषणा में कहा गया कि देश में हर गर्भवती महिला को 6,000 रुपए की आर्थिक सहायता दी जाएगी। हालांकि सरकार ने बाद में सहायता राशि को घटाकर 5,000 रुपए कर दिया और कुछ शर्तें भी लगा दीं। जैसे यह योजना केवल पहले बच्चे तक सीमित कर दी गई और योजना का लाभ लेने के लिए 23 पेजों का फॉर्म भरना अनिवार्य कर दिया। अब इस योजना को लागू हुए तीन साल हो गए हैं और देश में 78 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं को इसका कोई लाभ नहीं मिला है।
भोजन के अधिकार से जुड़े कार्यकर्ताओं का दावा है कि देश में केवल 14 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं को ही इस योजना का पूरा लाभ मिला है। यानी उन्हें पूरी तीन किश्तों का पैसा मिला। सूचना के अधिकार की मदद से हासिल जानकारी के आधार पर उन्होंने यह दावा किया है। उनका कहना है कि साल 2018-19 में केवल आधे दावेदारों को ही योजना का लाभ मिला। 55 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं योजना पहले बच्चे पर ही लागू होने के कारण दायरे से बाहर हो गईं। इस शर्त के लागू होने के बाद योजना के दायरे में केवल 22 प्रतिशत महिलाएं ही आ पाईं।
भोजन के अधिकार से जुड़ी दीपा सिन्हा इस योजना पर सवाल उठाते हुए कहती हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस योजना में सभी गर्भवती महिलाओं को शामिल करने की बात की थी लेकिन उनकी सरकार ने 2017-18 के बजट में 2,700 करोड़ रुपए ही मैटरनिटी बेनेफिट प्रोग्राम के लिए आवंटित किए। अगर यह योजना सार्वभौमिक होतीं और 6,000 रुपए की सहायता मिलती तो 90 प्रतिशत कवरेज की स्थिति में हर साल 15,000 करोड़ खर्च होते।
लाभार्थियों से अधिक प्रशासनिक प्रक्रियाओं पर खर्च
सूचना के अधिकार से हासिल दस्तावेजों के आधार पर प्रकाशित वादा फरामोशी पुस्तक के अनुसार, 30 नवंबर 2018 तक सरकार ने 18,82,708 लाभार्थियों को सहायता देने के लिए 1655.83 करोड़ रुपए जारी किए। हैरानी की बात यह है कि इस सहायता राशि के वितरण पर सरकार ने 6,966 करोड़ रुपए प्रशासनिक प्रक्रियाओं पर खर्च कर दिए। इसका अर्थ है कि सरकार ने किसी लाभार्थी को 100 रुपए देने के लिए साढ़े चार गुणा अधिक राशि प्रशासनिक प्रक्रियाओं पर खर्च कर दी। किताब में ओडिशा का उदाहरण देकर बताया गया है कि नवंबर 2018 तक केवल पांच लाभार्थी इस योजना के लिए पंजीकृत थे। ओडिशा में इस योजना के तहत केवल 25,000 रुपए का वितरण हुआ, लेकिन 274 करोड़ से ज्यादा रुपए प्रशासनिक प्रक्रियाओं पर खर्च किए गए। वहीं असम में इस योजना के तहत 3,099 लाभार्थियों को 11.58 करोड़ का वितरण किया गया लेकिन प्रशासनिक खर्चों पर 410 करोड़ रुपए लग गए। यही स्थिति गुजरात, केवल और बिहार की भी है।
नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमेन की जनरल सेक्रेटरी एनी राजा का कहना है कि प्रधानमंत्री मातृ वंदन योजना राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून का खुला उल्लंघन है। उनका कहना है कि भारत में 30-35 प्रतिशत महिलाओं की शादी 18 साल से पहले कर दी जाती है। देश मातृ मृत्युदर के मामले में अव्वल है लेकिन सरकार का मातृत्व कल्याण की तरफ ध्यान ही नहीं है।