ओमिक्रॉन कम गंभीर और इसके संक्रमण से फेफड़ों को नुकसान कम

जानवरों पर किए गए नए अध्ययनों से पता चला है कि पहले के वेरिएंट की तुलना में ओमिक्रॉन से फेफड़ों को कम नुकसान पहुंचता है
Photo: Pixabay
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ओमिक्रॉन भारत सहित पूरी दुनिया में तेजी से अपने पैर पसार रहा है। और आए दिन देखा जा रहा है कि भारत सहित विश्व भर की सरकारें इसकी रोकथाम के लिए नए सिर से पाबंदी लगा रहे हैं। भारत में भी यही देखने में आ रहा है कि जैसे-जैसे इस वायरस के मामले बढ़ रहे हैं, उसी अनुपात में पाबंदियां बढ़ती जा रही हैं। लेकिन अब तक इस वायरस का भयावह रूप सामने नहीं आया है। इसके पीछे कारण क्या है? इस पर अब तक विश्व भर में कई शोध सामने आ चुके हैं। ऐसा ही एक अध्ययन सामने आया है, जिसमें बताया जा रहा है कि ओमिक्रॉन कम गंभीर है और यह फेफड़ों को कम नुकसान पहुंचाता है। शोधकर्ताओं ने यह निष्कर्ष जानवरों पर किए गए नए अध्ययनों से निकाला है।

प्रयोगशाला में जानवरों और मानव ऊतकों पर किए गए नए अध्ययनों से इस बात का पहला संकेत मिला है कि ओमिक्रॉन वेरिएंट कोरोनवायरस के पिछले वेरिएंट की तुलना में मामूली बीमारी का कारण क्यों बनता है। चूहों पर किए गए अध्ययनों पता चला कि ओमिक्रॉन ने कम हानिकारक संक्रमण पैदा किए हैं, जो अक्सर बड़े पैमाने पर शरीर के ऊपरी भाग के वायुमार्गों तक सीमित होते हैं, जैसे नाक, गला और श्वासनली आदि। वेरिएंट ने फेफड़ों को बहुत कम नुकसान पहुंचाया, ध्यान रहे कि पिछले वेरिएंट में संक्रमित व्यक्ति को अक्सर सांस लेने में गंभीर कठिनाई होती थी।

कोरोनवीरस वायुमार्ग को कैसे संक्रमित करते हैं, इस पर अध्ययन करने वाले बर्लिन इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के जीवविज्ञानी रोलांड ईल्स ने कहा कि यह कहना उचित है कि अब तक मुख्य रूप से ऊपरी श्वसन प्रणाली में प्रकट होने वाली बीमारी के मामले ही सामने आ रहे हैं।  

गत नवंबर 2021 में जब ओमिक्रॉन वेरिएंट पर पहली रिपोर्ट दक्षिण अफ्रीका से सामने आई तो वैज्ञानिकों ने केवल यह अनुमान लगाने की कोशिश की कि यह वायरस पहले के रूपों से अलग कैसे व्यवहार कर सकता है। वे केवल इतना जानते थे कि इसमें 50 से अधिक आनुवंशिक उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) का एक विशिष्ट और खतरनाक संयोजन विद्यमान था।

 पिछले शोध से पता चला था कि इनमें से कुछ उत्परिवर्तन ने कोरोनावायरस को कोशिकाओं पर अधिक मजबूती से जकड़ने में सक्षम बनाया। दूसरों ने वायरस को एंटीबॉडी से बचने की अनुमति दी, जो संक्रमण के खिलाफ रक्षा की एक प्रारंभिक पंक्ति के रूप में काम करते हैं, लेकिन नया वेरिएंट शरीर के अंदर कैसे व्यवहार कर सकता है, यह अभी तक एक रहस्य ही बना हुआ था।

हालांकि दूसरी ओर कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के वायरोलॉजिस्ट रवींद्र गुप्ता ने कहा कि आप केवल उत्परिवर्तन से वायरस के व्यवहार की भविष्यवाणी नहीं कर सकते। पिछले एक महीने में डॉ गुप्ता सहित एक दर्जन से अधिक शोध समूहों ने प्रयोगशाला में नई बीमारियों पर काम कर रहे हैं। वे अपनी प्रयोग के तहत पेट्री डिश में कोशिकाओं को ओमिक्रॉन से संक्रमित कर रहे हैं और वायरस को जानवरों की नाक में छिड़क रहे हैं। जैसे ही उन्होंने यह किया ओमाइक्रोन में फैल गया, यहां तक कि उनको भी आसानी से संक्रमित कर दिया, जिन्हें टीका लगाया गया था या संक्रमण से ठीक हो गए थे।

यह ध्यान देने की बात है कि जैसे-जैसे इस मामले से संक्रमित होने वालों की संख्या आसमान छूने लगी, वहीं दूसरी ओर यह देखने में आया कि मामलों के बढ़ने की तुलना में अस्पतालों में भर्ती होने होने वालों की संख्या में मामूली रूप से बढ़ी। रोगियों के प्रारंभिक अध्ययन से यह बात निकलकर आई कि खासकर टीकाकरण वाले लोगों में ओमिक्रॉन के अन्य प्रकारों की तुलना में गंभीर रूप से बीमार होने की संभावना कम थी।

शुरुआती ओमिक्रॉन से संक्रमित होने वालों में युवा अधिक थे, जिनके वायरस के सभी वेरिएंट के मुकाबले गंभीर रूप से बीमार होने की संभावना कम होती है। और उनमें से कई शुरुआती मामले पिछले संक्रमण या टीकों से कुछ प्रतिरक्षा पाने वाले लोगों में ही हो रहे थे। उदाहरण के लिए, यह स्पष्ट नहीं था कि क्या ओमिक्रॉन एक असंक्रमित वृद्ध व्यक्ति में भी कम गंभीर साबित होगा।

अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि जानवरों पर किए जा रहे प्रयोग इन अस्पष्टताओं को दूर करने में मदद कर सकते हैं, क्योंकि वैज्ञानिक समान परिस्थितियों में रहने वाले समान जानवरों पर ओमिक्रॉन का परीक्षण कर सकते हैं। हाल के दिनों में सार्वजनिक किए गए आधा दर्जन से अधिक प्रयोग एक ही निष्कर्ष की ओर इशारा करते हैं कि ओमाइक्रोन हर हाल में डेल्टा और वायरस के अन्य पुराने वेरिएंट की तुलना में हल्के हैं।

न्यूयार्क टाइम्स में प्रकाशित यह अध्ययन जापानी और अमेरिकी वैज्ञानिकों के एक बड़े संघ ने जारी किया है। अध्ययन में पाया गया कि ओमिक्रॉन से संक्रमित लोगों के फेफड़ों को कम नुकसान हुआ और उनके मरने की संभावना कम थी। यद्यपि ओमिक्रॉन से संक्रमित जानवरों में औसतन बहुत अधिक हल्के लक्षणों को देखा गया। वाशिंगटन विश्वविद्यालय के एक वायरोलॉजिस्ट और अध्ययन के सह-लेखक डॉ माइकल डायमंड ने कहा कि यह आश्चर्यजनक था, क्योंकि हर दूसरे वेरिएंट ने इन चूहों को मजबूती से संक्रमित किया।

ओमिक्रॉन के भयावह न होने का कारण शरीरिर रचना हो सकती है। डॉ. डायमंड और उनके सहयोगियों ने पाया कि चूहों की नाक में ओमिक्रॉन का स्तर वैसा ही था जैसा कि पहले कोरोना वायरस से संक्रमित जानवरों में था। लेकिन फेफड़ों में ओमिक्रॉन का स्तर अन्य वेरिएंट के स्तर का दसवां या उससे कम था।

इसी तरह की खोज हांगकांग विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने भी की है, जिन्होंने सर्जरी के दौरान मानव के वायुमार्ग से लिए गए ऊतक के टुकड़ों का अध्ययन किया। 12 फेफड़ों के नमूनों के अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि ओमिक्रॉन, डेल्टा और अन्य वेरिएंट की तुलना में बहुत ही धीरे-धीरे बढ़ता है।

शोधकर्ताओं ने ब्रांगकी के ऊतक को भी संक्रमित किया। ऊपरी छाती की नलिकाएं जो श्वासनली से फेफड़ों तक हवा पहुंचाती हैं। और उन ब्रोन्कियल (श्वसनी) कोशिकाओं के अंदर, संक्रमण के बाद पहले दो दिनों में ओमिक्रॉन, डेल्टा या मूल कोरोनावायरस की तुलना में तेजी से बढ़ा। कोरोनावायरस संक्रमण नाक या संभवतः मुंह से शुरू होता है और गले तक फैल जाता है। हल्के संक्रमण इससे ज्यादा नहीं होते हैं लेकिन जब कोरोना वायरस फेफड़ों में पहुंच जाता है तो यह गंभीर रूप ले लेता है।

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