
दुनिया भर में लोगों में बढ़ता मोटापा और वजन कई तरह की बिमारियों को दावत दे रहा है। अक्सर इसे नियंत्रित करने के लिए लोग तरह तरह की दवाओं का सेवन करते हैं, जिसके भारी दुष्प्रभाव पड़ते हैं। अब भारतीय शोधकर्ताओं ने बढ़ते वजन और मोटापा से मुकाबला करने के लिए प्राकृतिक तरीका खोज निकला है।
शोधकर्ताओं ने भारत के एक राज्य त्रिपुरा की पारंपरिक बांस की किस्म 'मेली-एमिली ' की कोंपल (बैम्बू शूट) से प्राप्त अर्क के रूप में मोटापा कम करने और वजन नियंत्रण तथा चयापचय के लिए एक बेहतर समाधान खोज निकला है। शोधकर्ता ने शोध के हवाले से कहा, यह लिपिड को कम जमा करता है और फैटी एसिड बीटा-ऑक्सीकरण को बढ़ाता है।
दुनिया भर में फर्मेंटेशन या किण्वन की तकनीकें मानव सभ्यता जितनी पुरानी हैं और ये पीढ़ियों से चली आ रही हैं। इनका उपयोग मुख्य रूप से भोजन को संरक्षित करने, पोषण की गुणवत्ता, स्वाद और सुगंध बढ़ाने के लिए किया जाता है। पर्यावरण, खाद्य सामग्री की उपलब्धता और समुदाय के पारंपरिक ज्ञान के आधार पर तकनीक और इसके उत्पाद अलग-अलग हो सकते हैं।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के स्वायत्त संस्थान, इंस्टीटूट ऑफ एडवांस स्टडी इन साइंस एंड टेक्नोलॉजी (आईएएसएसटी) के प्रोफेसर मोजीबुर आर. खान के नेतृत्व में किए गए एक शोध में उत्तर पूर्वी इलाकों के पारंपरिक किण्वित बांस की टहनियों की विभिन्न किस्मों में मोटापा कम करने वाले प्रभावों की जांच-पड़ताल की गई।
इन विट्रो सेल कल्चर अध्ययनों के आधार पर शोधकर्ताओं की टीम ने पाया है कि त्रिपुरा की एक पारंपरिक किण्वित बांस की किस्म, जिसे ' मेली-एमिली ' कहा जाता है, इंट्रासेल्युलर लिपिड को कम जमा कर सकती है। इस प्रक्रिया में लिपोलिटिक ( एचएसएल, एलपीएल, और एजीटीएल) और फैट ब्राउनिंग रेगुलेटर जीन (यूसीपी1, पीआरडीएम16, और पीजीसी1-अल्फा ) में वृद्धि शामिल थी।
शोध से पता चलता है कि मेली-एमिली के अर्क के उपचार से एएमपीके सिग्नलिंग मार्ग के माध्यम से थर्मोजेनिक प्रोटीन में बढोतरी होती है। यह प्रक्रिया माइटोकॉन्ड्रियल बायोजेनेसिस को उत्तेजित करती है और फैटी एसिड बीटा-ऑक्सीकरण को बढ़ाती है, जो वजन प्रबंधन और चयापचय स्वास्थ्य के लिए एक बहुआयामी नजरिया प्रदान करती है।
शोध के निष्कर्षों से पता चलता हैं कि किण्वित बांस की टहनी का अर्क सफेद एडीपोसाइट्स में ऊर्जा खपत बढ़ाकर मोटापा को रोकने वाला प्रभाव डालता है। यह अध्ययन हाल ही में प्रतिष्ठित पत्रिका फूड फ्रंटियर्स में प्रकाशित हुआ है।
शोध के परिणाम आधुनिक स्वास्थ्य चुनौतियों जैसे मोटापा और मेटाबॉलिक सिंड्रोम से निपटने के लिए पारंपरिक खाद्य प्रथाओं की क्षमता को सामने लाते हैं।
शोधकर्ता ने शोध के हवाले से कहा, दुनिया भर में मोटापे और संबंधित विकारों के बढ़ते प्रचलन के साथ, मेली-एमिली जैसे प्राकृतिक उपचार समग्र स्वास्थ्य प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।