यूरोप में मोटापे और बढ़ते वजन की समस्या इस कदर हावी हो चुकी है कि वहां रहने वाले करीब 59 फीसदी वयस्क अब तक इस समस्या का शिकार बन चुके हैं। इतना ही नहीं बच्चों में भी अब इसकी समस्या आम होती जा रही है, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के आंकड़ों से पता चला है कि यूरोप में हर तीन में से एक बच्चा इस समस्या से जूझ रहा है।
आंकड़ों की मानें तो वहां करीब 29 फीसदी लड़के और 27 फीसदी बच्चियां बढ़ते वजन और मोटापे से त्रस्त हैं। देखा जाए तो यूरोप में यह समस्या इतनी गंभीर हो चुकी है कि उसने अब 'महामारी' का रूप ले लिया है। अनुमान है कि इस क्षेत्र में 5 वर्ष या उससे कम आयु के 7.9 फीसदी यानी 44 लाख बच्चे मोटापे और बढ़ते वजन का शिकार हैं।
डब्लूएचओ यूरोपियन रीजनल ओबेसिटी रिपोर्ट के हवाले से पता चला है कि इस क्षेत्र में उच्च रक्तचाप, आहार संबंधी जोखिम और तंबाकू के बाद गैर संक्रामक रोगों के मामले में मोटापा चौथा सबसे आम कारक है। इसके साथ ही यह यूरोप में विकलांगता के लिए भी मुख्य रूप से जिम्मेवार है, जिसके कारण यहां की आबादी कुल वर्षों का 7% विकलांगता के साथ रहने को मजबूर है।
इस क्षेत्र के कई देशों में किए शुरुआती अध्ययनों से पता चला है कि यह यह कोविड-19 और लॉकडाउन के चलते यह समस्या और बढ़ गई है। अनुमान है कि इस दौरान किशोरों और बच्चों में वजन, मोटापे या उनके औसत बॉडी मास इंडेक्स में इजाफा हुआ है।
रिपोर्ट की मानें तो यूरोप में लम्बे समय से बढ़ते वजन और मोटापे से ग्रस्त लोगों में विकलांगता और मृत्यु का खतरा कहीं ज्यादा है। अनुमान बताते हैं कि हर साल इसकी वजह से यूरोप में 12 लोगों की जान जा रही है, जोकि इस क्षेत्र में होने वाली कुल मृत्युदर का लगभग 13 फीसदी है।
रिपोर्ट से पता चला है कि यूरोप में बढ़ते वजन और मोटापे की समस्या सीधे तौर पर हर साल सामने आने वाले कैंसर के 2 लाख से ज्यादा मामलों की वजह है। वहीं आने वाले वर्षों में यह आंकड़ा और बढ़ सकता है। इतना ही नहीं यूरोप के 53 देशों में से कोई भी देश ऐसा नहीं है जो मोटापे को लेकर जारी 2025 के एनसीडी लक्ष्य को हासिल करने के ट्रैक पर हो।
दुनिया में बढ़ते वजन से परेशान हैं 190 करोड़ वयस्क
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों के अनुसार वैश्विक स्तर पर करीब 100 करोड़ से ज्यादा लोग मोटापे से जूझ रहे हैं। इनमें 65 करोड़ वयस्क, 34 करोड़ किशोर और 3.9 करोड़ बच्चे शामिल हैं।
डब्लूएचओ का अनुमान है कि यदि यह आंकड़ा ऐसे ही बढ़ता रहा तो 2025 तक मोटापे और बढ़ते वजन का शिकार 16.7 करोड़ लोगों में स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं पैदा हो जाएंगी। अनुमान है कि 1975 के बाद से यह समस्या तीन गुना बढ़ चुकी है।
पता चला है कि वैश्विक स्तर पर जहां 2020 में पांच वर्ष से कम आयु के करीब 3.9 करोड़ बच्चे बढ़ते वजन और मोटापे से पीड़ित थे, जबकि 2016 में पांच से 19 वर्ष की आयु के करीब 34 करोड़ बच्चे और किशोर इस समस्या का सामना कर रहे थे।
इंपीरियल कॉलेज लंदन और डब्ल्यूएचओ द्वारा किए एक अध्य्यन में सामने आया है कि पिछले चार दशक में वैश्विक स्तर पर मोटापे से ग्रस्त बच्चों और किशोरों (5 से 19 वर्ष) की संख्या दस गुना बढ़ चुकी है। इतना ही नहीं अनुमान है कि यदि ऐसा ही चलता रहा तो आने वाले समय में इनकी संख्या कहीं ज्यादा बढ़ जाएगी।
देखा जाए तो भारत में भी मोटापे की समस्या गंभीर हो चुकी है। पांचवें राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस -5) के आंकड़ों से पता चला है कि पिछले पांच वर्षों के दौरान देश में महिलाओं और पुरुषों दोनों में मोटापे की समस्या 4 फीसदी बढ़ चुकी है।
जहां 24 फीसदी महिलाएं बढ़ते वजन और मोटापे का शिकार हैं वहीं पुरुषों में यह आंकड़ा 22.9 फीसदी है जबकि एनएफएचएस -4 (2015-16) में 20.6 फीसदी महिलाएं और 18.9 फीसदी पुरुष इस समस्या से ग्रस्त थे। इतना ही नहीं आंकड़ों के मुताबिक शहरी क्षेत्रों में यह समस्या कहीं ज्यादा गंभीर है।
13 तरह के कैंसर की वजह बन सकता है जरुरत से ज्यादा वजन
शायद बहुत ही कम लोग जानते होंगे की बढ़ता वजन और मोटापा अपने साथ कई अन्य बीमारियों को भी साथ लेकर आता है। इसकी वजह से कई गैर-संक्रामक रोगों का जोखिम भी बढ़ जाता है जिनमें टाइप 2 मधुमेह, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, सांस सम्बन्धी समस्या और अन्य विकार पैदा हो सकते है। इतना ही नहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो जरुरत से ज्यादा वजन 13 तरह के कैंसर से होने वाले खतरे को और बढ़ा सकता है।
वैज्ञानिकों की माने तो इसकी वजह से हृदय, यकृत, गुर्दे, जोड़ों और प्रजनन प्रणाली पर असर पड़ सकता है। संयुक्त राष्ट्र स्वास्थ्य एजेंसी के अनुसार, मोटापे से ग्रस्त लोगों में कोविड के चलते अस्पताल में भर्ती होने की संभावना तीन गुना अधिक है।
आपके खानपान और जीवनशैली में ही छुपा है इसका उपचार
देखा जाए तो शरीर में यह समस्या तब पैदा होती है जब उसमें सामान्य से ज्यादा वसा जमा होने लगता है, जो शरीर की स्वास्थ्य प्रणालियों को खराब कर सकता है। ऐसे में इतना तो स्पष्ट है कि यह कोई लाइलाज बीमारी नहीं है। यदि जीवनशैली और खान-पान पर सही तरह से ध्यान दिया जाए तो इस समस्या को बढ़ने से रोका जा सकता है।
भारत में भी जंक फ़ूड के खतरों को लेकर सीएसई लम्बे समय से लोगों को जागरूक करता रहा है। इसपर सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) ने एक व्यापक अध्ययन भी किया था जिसमें जंक फ़ूड से जुड़े खतरों के बारे में चेताया गया था।
इस अध्ययन के अनुसार भारत में बेचे जा रहे अधिकांश पैकेज्ड और फास्ट फूड आइटम में खतरनाक रूप से नमक और वसा की उच्च मात्रा मौजूद है, जो भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) द्वारा निर्धारित तय सीमा से बहुत ज्यादा है।
इस बारे में एम्स, ऋषिकेश के डॉक्टर प्रदीप अग्रवाल का कहना है कि “साल्ट, शुगर एवं अन्य घटकों को तय सीमा में रखने के लिए कठोर नियम और फूड पर आसानी से समझ में आने वाली फ्रंट पैकेज लेबलिंग (एफओपीएल) होनी चाहिए, जिससे उपभोक्ता एवं अभिभावकों को यह समझने में मदद मिल सके की इनके लिए तय सीमा क्या है और बच्चे कितनी बेकार कैलोरी एवं नुकसानदायक न्यूट्रियंट खा रहे हैं।
रिपोर्ट में इसके बढ़ने के लिए पर्यावरण कारकों के साथ बिगड़ती जीवन शैली जैसे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भोजन का बढ़ता ऑनलाइन बाजार और मार्केटिंग, इसी तरह बच्चों में बढ़ता ऑनलाइन गेम खेलने का चलन भी इस समस्या को और बढ़ा रहा है।
ऐसे में यह जरुरी है कि हम इस जंक फूड और ज्यादा तले भोजन के मायाजाल से बचें और बच्चों को भी इनसे दूर रखने की कोशिश करें। अपने साथ अपने बच्चों को खुली हवा में घूमने की सलाह दें उनमें ऑनलाइन गेम और टीवी की आदतों को कम करके पार्कों में खेलने के लिए प्रेरित करें।
जितना ज्यादा वो पोषण से भरपूर आहार लेंगे और अपने शरीर को फुर्त रखेंगें, इस तरह की समस्याएं उनसे दूर होती जाएंगी साथ ही उनका मानसिक विकास भी बेहतर होगा। हमें समझना होगा कि यह कोई ऐसी समस्या नहीं है जिसका इलाज दवाओं में है यह ऐसी बीमारी है जिसका उपचार आपके अपने पास है। बस खानपान और जीवनशैली बदलिए और अपने जीवन में पॉजिटिव बदलावों के लिए तैयार हो जाइए।