अब चोट या डोप टेस्ट के कारण नहीं बल्कि मानसिक स्वास्थ्य के कारण खिलाड़ी हो रहे खेल से बाहर

पिछले एक साल में दुनिया के कई टॉप खिलाड़ियों ने मानसिक स्वास्थ्य कारणों से अपने को बड़े खेल आयोजन से अलग किया
Photo: wikipedia
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अब तक भारत सहित दुनियाभर के खिलाड़ी किसी प्रकार की चोट या डोप टेस्ट के कारण टूर्नामेंट से बाहर होते थे लेकिन अब पहली बार ऐसा हो रहा है कि खिलाड़ी स्वंय ही टूर्नामेंट से अपने को बाहर कर ले रहे हैं। और इसका एक मात्र कारण मानसिक स्वास्थ्य यानी मेंटल हैल्थ का ठीक न होना। और मेंटल हैल्थ का सही नहीं होने के वैसे तो कई कारण हैं कि लेकिन पिछले एक साल से अधिक समय से भारत सहित दुनियाभर में फैली कोरोना महामारी ने इस स्थिति को और बढ़ा दिया है। इन दिनों पेरिस में चल रहे फ्रेंस ओपन ग्रेंड स्लेम टूर्नामेंट से दुनिया की दूसरे नंबर की खिलाड़ी नावोमी ओसाका ने पहला राउंट जीतने के बाद भी अपने को टूर्नामेंट से अलग कर लिया और इसका एक मात्र कारण उन्हीं के शब्दों में , “मेरे लिए मानसकि सवास्थ्य सबसे अधिक महत्वपूर्ण है और मैं इससे समझौता नहीं कर सकती।” यह समस्या अकेले ओसाका की नहीं है बल्कि टेनिस सहित क्रिकेट, बॉस्केटबॉल आदि खेलों के कई नामचीन खिलाड़ियों ने भी मानसिक स्वास्थ्य ठीक नहीं होने कारण अपने को टूर्नामेंट से अलग किया।

23 वर्षीय ओसाका ने पिछले सप्ताह ही कहा था कि वे अपनी मानसिक स्थिति की वजह से मैच के बाद का पत्रकारों से बात नहीं करेंगी। उन्होंने कहा कि मेरे लिए ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि मैं मानसिक स्वास्थ्य को कभी कम नहीं मानूंगी और न ही इसे हल्के में लूंगी। इस संबंध में दिल्ली के खेल विशेषज्ञ राकेश थपलियाल ने कहा, “एक खिलाड़ी को पिछले एक साल के दौरान अनगिनत बार कोरोना टेस्ट से गुजरना पड़ता है, ऐसे में उनका मानसिक संतुलन ही गड़बड़ा जाता है। हर बार उन्हें इसी बात की चिंता सताए रहती है कि कब मेरा पॉजिटिव आ जाए और वह टूर्नामेंट से बाहर हो जाए। ऐसी मानसकि प्रताड़ना आज दुनिया के हर खिलाड़ी को झेलनी पड़ रही है।” वह कहते हैं कि अब तो यह भी सुनने में आ रहा है कि आगामी ओलंपिक खेलों में हर दिन सभी खिलाड़ियों को कोरोना टेस्ट से गुजरना होगा। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि खिलाड़ियों पर मानसिक दबाव कितना अधिक होगा। समझो कि कोई खिलाड़ी फाइनल में पहुंच गया है और इसके बाद फाइनल में उसका टैस्ट पॉजिटिव आने पर तो सामने वाले खिलाड़ी को वाकओवर मिल गया और वह जीत गया। लेकिन इमानदारी से देखा जाए तो इस बार ओलंपिक में भी सही खिलाड़ी को मेडल मिलेगा भी या नहीं, यह एक बड़ा सवाल है।

न्यूयार्क टाइम्स में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार टेनिस में दूसरे नंबर की महिला नाओमी ओसाका ने अपने मानसिक स्वास्थ्य के लिए चिंताओं का हवाला देते हुए फ्रेंच ओपन से नाम वापस ले लिया। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह पेशेवर टेनिस में पहली बार है कि ओसाका जैसे महत्वपूर्ण सितारे, जिन्हें शारीरिक चोट नहीं लगी है, फ्रेंच ओपन जैसे बड़े आयोजन के बीच में ही अपने को अलग कर लिया। हालांकि इस संबंध में फ्रेंच फेडरेशन ऑफ के अध्यक्ष गाइल्स मोरेटन ने कहा कि हम सभी एथलीटों की भलाई के लिए लगातार सुधार करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, जैसा कि हमने हमेशा करने का प्रयास किया है। लेकिन उनके इस कथन के कुछ समय बाद ही सजा के रूप में ओसाका पर फ्रेंच ओपन के टूर्नामेंट रेफरी द्वारा 15,000 डॉलर का जुर्माना लगाया गया और चार ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंट, ऑस्ट्रेलियाई, फ्रेंच और यूनाइटेड स्टेट्स ओपन और विंबलडन के आयोजकों ने धमकी दी थी कि उन्हें फ्रेंच ओपन से निष्कासित किया जा सकता है। यह भी तो एक प्रकार से मानसिक स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करने जैसी बात है। तभी तो इस घटना पर ओसाका ने कहा कि अगर टेनिस संगठनों को लगता है कि वे जुर्माना और निष्काषन का दबाव बनाकर एथलीटों के मानसिक स्वास्थ्य की अनदेखी करना जारी रखते हैं तो में इस पर बस हंस सकती हूं। ओसाका के कदम की कई बड़ी टेनिस हस्तियों ने उनका समर्थन किया है। इन्हीं में से एक हैं टेनिस की सबसे बड़ी खिलाड़ी सेरेना विलियम्स जिन्होंन कहा कि मैं नाओमी के लिए महसूस करती हूं और काश मैं उसे गले लगा पाती क्योंकि मैं उन परिस्थितियों में रही हूं। आपको उसे उस तरह से संभलने देना होगा जिस तरह से वह चाहती हैं कि वह सबसे अच्छे तरीके से कर सकें।

मानसिक स्वास्थ्य पर अकेले ओसाका एकमात्र बड़ी खिलाड़ी नहीं हैं जिन्होंने मानसिक स्वास्थ्य संघर्षों को स्वीकार किया है। ओलंपिक तैराक माइकल फेल्प्स ने अवसाद और आत्मघाती विचारों से अपने संघर्ष के बारे में खुलकर बात की है। एनबीए प्लेयर केविन लव ने एक गेम के दौरान पैनिक अटैक होने की बात कही है। एथलीट्स फॉर होप के आंकड़ों के अनुसार वर्तमान में 35 प्रतिशत बड़े खिलाड़ी मानसिक स्वास्थ्य संकट से पीड़ित हैं।

क्रिकेट भी अछूता नहीं

अकेले टेनिस के ही बड़े खिलाड़ी मानसिक स्वास्थ्य की समस्या नहीं जूझ रहे हैं। इसमें क्रिकेट के कई खिलाड़ी अपनी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के कारण अपने को कई बड़े टूर्नामेंट से अलग किया है। इंग्लैंड महिला क्रिकेट टीम की प्रतिभाशाली विकेटकीपर बल्लेबाज सारा टेलर ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद खिलाड़ियों के बीच मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं को लेकर एक चर्चा की शुरुआत की है। हाल ही में ऑस्ट्रेलिया के तीन खिलाड़ियों ग्लेन मैक्सवेल, विल पुकोव्स्की और निक मैडिनसन ने मानसिक स्वास्थय को ध्यान में रखते हुए क्रिकेट से ब्रेक लिया। इसके बाद भारतीय टीम के कप्तान विराट कोहली ने अपनी प्रतिक्रिया में इन खिलाड़ियों की हिम्मत की तारीफ की। ध्यान रहे कि कोहली स्वयं ने इस संबंध में अपना अनुभव शेयर करते हुए बताया था कि वह भी अवसाद के शिकार हो चुके हैं। इसके अलावा एक और भारतीय क्रिकेटर ने आगे बढ़कर मानसिक स्वास्थ्य के बारे में बात की है। भारतीय सलामी बल्लेबाज अभिनव मुकुंद ने अपने ब्लॉग में बताया कि जब वो मुश्किल दौर से गुजर रहे थे तो उनके अंदर मानसिक समस्या को लेकर किसी से बात करने की हिम्मत नहीं थी क्योंकि उन्हें लगता था कि कोई इन चीजों की परवाह नहीं करता है। लेकिन मुकुंद ने माना कि अब समय बदल गया है और इस विषय को गंभीरता से लिया जाना चाहिए।

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