भविष्य की महामारियों के लिए तैयार नहीं है कोई भी देश, कोविड-19 ने खोली पोल

महामारी ने स्वास्थ्य के क्षेत्र के सामने अनगिनत चुनौतियां खड़ी कर दी हैं
भविष्य की महामारियों के लिए तैयार नहीं है कोई भी देश, कोविड-19 ने खोली पोल
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साल 2022 में कोरोना महामारी अपने तीसरे साल में प्रवेश कर चुकी है और इसके ग्राफ में गिरावट का कोई संकेत नजर नहीं आ रहा है। इसका कहर दुनिया के 200 देशों में अब भी जारी है और अब तक 53 लाख मौतें (20 दिसम्बर 2021) हो चुकी हैं। इस महामारी का प्रभाव ऐसा है कि कई देशों में जीवन प्रत्याशा में गिरावट आ गई है। नेचर जर्नल में छपे बार्सिलोना की पब्लिक यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर रिसर्च इन हेल्थ इकोनॉमी के शोधकर्ताओं के एक अध्ययन के मुताबिक, 81 देशों में कोविड-19 के चलते 2 करोड़ 5 लाख वर्ष का जीवन बर्बाद हो गया है। इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन स्टडीज के एक अध्ययन के मुताबिक, भारत में जीवन प्रत्याशा में दो साल की गिरावट आई है।

24 नवंबर 2021 को ओमिक्रॉन वायरस की दस्तक हुई, जो कोविड-19 के दो सालों में आए सभी पांच वेरिएंट के मुकाबले ज्यादा संक्रामक और ज्यादा नया रूप धारण करने वाला है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के महानिदेशक टेड्रोस ए गेब्रेयेसस ने चेतावनी देते हुए कहा कि नए वेरिएंट से बीमारी की गंभीरता भले ही कम हो, लेकिन मामलों में तेजी आने से स्वास्थ्य स्वास्थ्य तंत्र फिर से चरमरा सकता है। वह कहते हैं, “बहुत से देशों में यह वायरस प्रवेश कर चुका है। अब हम यह जान चुके हैं और अपने जोखिम पर इसे नजरअंदाज करते हैं।” महज एक महीने में (20 दिसंबर तक) 91 देशों में इस नए वेरिएंट की मौजूदगी दर्ज की जा चुकी है।

दिसंबर 2021 के मध्य के बाद ये महामारी परेशानी करने वाले स्तर पर पहुंच गई थी। जिसके चलते 100 देशों ने उत्सव से संबंधित जुटानों को वर्जित करते हुए लॉकडाउन और शटडाउन जैसे उपायों की घोषणा की। विज्ञानी समाज इस नए वेरिएंट के व्यवहार को समझने के लिए माथापच्ची कर ही रहे थे कि इसके संक्रमण और लक्षणों ने उन्हें भ्रमित कर दिया।

यह वेरिएंट न केवल टीके की सभी डोज ले चुके लोगों को संक्रमित कर रहा है, बल्कि संक्रमण के बाद जो प्राकृतिक इम्युनिटी विकसित हुई थी, उसे भी भेद रहा है। एक महीने तक तो इस वेरिएंट का कोई लक्षण नहीं दिखा जिससे संक्रमण की आशंका बढ़ गई। यह साल 2019 के दिसम्बर में आए पहले कोविड-19 वायरस से मिलता-जुलता है।

जैसा सवाल उस वक्त उभरा था, वैसा ही सवाल फिर उभरा है कि क्या हम भविष्य को लेकर पर्याप्त तैयार हैं? अभी जो महामारी चल रही है, वैसी महामारी को सदी में एक बार या जीवन में एक बार की संज्ञा दी जाती थी। महामारी के खतरों पर काम करने वाली अमेरिका की एक संस्था मेटाबायोटा कहती है, “मौजूदा महामारी जैसी जूनोटिक चरित्र की महामारी के अगले एक दशक में आने की 22-28 प्रतिशत तक आशंका है।”

दिसम्बर के पहले हफ्ते में न्यूक्लियर थ्रेट इनिशिएटिव और जॉन हॉप्किंस सेंटर फॉर हेल्थ सिक्योरिटी की तरफ से जारी ग्लोबल हेल्थ सिक्योरिटी (जीएचएस) इंडेक्स 2021 रिपोर्ट बताती है कि हर आय वर्ग के देश, भविष्य की महामारी व उनके खतरों से निपटने के लिए तैयार नहीं हैं। दुनियाभर के ग्लोबल हेल्थ सिक्योरिटी इंडेक्स के प्रदर्शन का स्कोर साल 2021 में घटकर 38.9 (100 में से) पर आ गया है। साल 2019 में यह स्कोर 40.2 था।

भारत का स्कोर भी साल 2019 के मुकाबले 0.8 अंक की गिरावट के साथ 42.8 पर आ गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2021 में किसी भी देश को शीर्ष रैंकिंग नहीं मिली और किसी भी देश ने 75.9 अंक हासिल नहीं किया। सभी देशों में अपर्याप्त स्वास्थ्य क्षमता थी। रिपोर्ट के मुताबिक, भविष्य की हेल्थ इमरजेंसी को लेकर दुनिया को खतरनाक बना दिया गया है। ग्लोबल हेल्थ सिक्योरिटी इंडेक्स ने 195 देशों में महामारियों व वैश्विक महामारियों से निबटने की तैयारियों की क्षमता का मूल्यांकन किया। रिपोर्ट के मुताबिक, 65 प्रतिशत देशों ने महामारियों से निबटने के लिए नेशनल पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी प्लान न तो तैयार किया और न ही प्रकाशित। वहीं, 73 प्रतिशत देशों के पास जन स्वास्थ्य को लेकर आपातकालीन स्थिति में वैक्सीन व एंटीवायरल दवाओं के इस्तेमाल के लिए त्वरित अनुमोदन देने की क्षमता नहीं है। यानी भविष्य की हेल्थ इमरजेंसी को लेकर दुनिया की स्थिति खतरनाक थी। इनमें से वे महामारियां भी शामिल हैं, जो कोविड-19 से भी खतरनाक हो सकती हैं। रिपोर्ट के अनुसार, करीब 82 प्रतिशत देशों की जनता में अपनी सरकार को लेकर निम्न से मध्यम स्तर का भरोसा दिखा।

इन दो सालों में विभिन्न स्वास्थ्य चुनौतियों को लेकर हुए वैश्विक सुधार को भी धक्का लगा है। विश्व बैंक और डब्ल्यूएचओ के नए मूल्यांकन के मुताबिक, पिछले दो दशकों में पहली बार दुनिया में यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज की प्रगति में रुकावट दिख रही है। स्वास्थ्य पर बढ़ा खर्च लोगों को घोर गरीबी की ओर धकेल रहा है। 50 करोड़ आबादी घोर गरीबी में चली गई है क्योंकि उन्हें स्वास्थ्य सेवाओं पर ज्यादा खर्च करना पड़ा। यूनिसेफ के मुताबिक, 20 मिलियन नवजात शिशुओं को साल 2020 में खसरे की वैक्सीन नहीं लग पाई क्योंकि वैश्विक टीकाकरण दर घटकर 82 प्रतिशत पर आ गई, जो साल 2019 में 84 प्रतिशत थी। हालांकि पूर्व के आंकड़े भी पिछले कुछ समय से थमे हुए थे और 95 प्रतिशत के वैश्विक लक्ष्य से पीछे थे। विज्ञानियों के मुताबिक, इससे चिंता बढ़ गई है।

इम्यून एम्नेशिया खसरा से होता है। हालांकि ये धारणा बिल्कुल नई है। इसकी खोज साल 2012 में की गई, जो व्याख्या करती है कि एक बार खसरा से संक्रमित होने पर व्यक्ति की प्रतिरक्षा (इम्यूनिटी) लम्बे समय तक दबी रहती है और असंबंधित संक्रमण को लेकर संवेदनशीलता बढ़ जाती है।

इम्यून एम्नेशिया बीमारी का मतलब है कि ये संक्रामक संक्रमण अन्य बीमारियों को लेकर इम्यून सिस्टम की याद्दाश्त को मिटा सकता है। खसरे से उबरने वाले बच्चे, जिन्हें खसरा वायरस होने से पहले सुरक्षा मिली थी, वे अन्य रोगजनकों के प्रति संवेदनशील हो सकते हैं ।

कई विशेषज्ञों ने कोविड-19 के बाद की दुनिया में खसरे के प्रकोप के खतरनाक रूप लेने की चिंताओं पर रोशनी डाली है। न्यूकैसल यूनिवर्सिटी में पब्लिक हेल्थ चिकित्सा के एक संयुक्त प्रोफेसर डेविड एन दुरहाइम ने फरवरी 2021 में छपे अपने पेपर में लिखा है, “कोविड-19 महामारी ने इस सदी की सबसे खराब वैश्विक खसरा महामारी से ध्यान भटका दिया है। साल 2020 में खसरे के मामलों में गिरावट की रिपोर्टिंग झूठा आश्वासन है क्योंकि साल 2018-2019 में बड़े स्तर पर हुए आउटब्रेक के चलते इम्यूनिटी विकसित होने से मामलों में कमी आई थी।” इरास्मस यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर, नीदरलैंड में न्यूरोसाइंस के एसोसिएट प्रोफेसर रिक डी स्वार्ट ने डाउन टू अर्थ के साथ बातचीत में कहा, “खसरा चारों ओर बना रहेगा और जब मौका मिलेगा, ये उन लोगों को शिकार बनाएगा, जिनमें इम्यूनिटी नहीं है। हमारे सामने अब एक असली खतरा है। हम आने वाले समय में एक विस्फोटक खसरे का प्रकोप देख सकते हैं।”

कोविड-19 के दौरान खसरे के मामलों में अभूतपूर्व बढ़ोतरी, टीकाकरण और निगरानी में अहम गिरावट के साथ इम्यून एम्नेशिया की बीमारी का मतलब क्या है? जून 2021 में प्रकाशित “इम्यून एम्नेशिया इन्ड्यूस्ड बाई मेसल्स एंड इट्स इफैक्ट्स ऑन कनकरेंट एपिडेमिक्स” नामक एक अध्ययन में कहा गया है, “जब खसरा टीकाकरण नीतियों में ढील दी जाती है, तो किसी भी माध्यमिक संक्रामक रोग एक्स से प्रतिरक्षा के लिए लोगों में बनी हर्ड इम्यूनिटी, इम्यून एम्नेशिया से प्रभावित होकर खो सकती है। खासतौर से इसके प्रभाव में महामारी की सीमा स्थानांतरित हो जाती है, ताकि व्यापक एक्स टीकाकरण के तहत भी गंभीर प्रकोप हो सके।”

कम टीकाकरण दर, कई देशों में बच्चों के लिए कोई खुराक नहीं और समय के साथ प्रकृति बदलने वाले वायरस के मुद्दों को देखते हुए एक व्यावहारिक वास्तविकता के रूप में कोविड-19 के खिलाफ हर्ड इम्यूनिटी को लेकर जटिलताएं बनी हुई हैं। स्वार्ट ने कहा कि व्यक्तिगत स्तर पर बहुत ज्यादा जोखिम नहीं हो सकता है, अलबत्ता संभावित रूप से कोविड-19 की इम्यूनिटी को आबादी के स्तर पर नुकसान पहुंचाने का जोखिम पैदा कर सकता है।

उन्होंने कहा, “मुझे निश्चित तौर पर लगता है कि खसरा, कोविड-19 के मामलों और मृत्यु दर को प्रभावित कर सकता है। हमें महामारी विज्ञान के कुछ अध्ययनों से संकेत मिले हैं कि कुछ मामलों में खसरे के एक बड़े प्रकोप के बाद लंबी अवधि के दौरान मृत्यु दर बढ़ जाती है।”

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