इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के अनुसार कैंसर से पीड़ित भारतीयों की संख्या 2025 में 2.98 करोड़ होने का अनुमान है। आईसीएमआर की 'भारत में कैंसर का बोझ' पर एक रिपोर्ट के अनुसार, सात कैंसर कुल बीमारी के बोझ के 40 प्रतिशत से अधिक के लिए जिम्मेदार हैं, जिसमें फेफड़े का कैंसर (10.6 प्रतिशत), स्तन कैंसर (10.5 प्रतिशत), ग्रासनली का कैंसर (5.8 प्रतिशत), मुंह का कैंसर (5.7 प्रतिशत), पेट का कैंसर(5.2 प्रतिशत), लीवर कैंसर(4.6 प्रतिशत) और गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर (4.3 प्रतिशत) शामिल है।
वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक भारत में 2018 में कैंसर के 1,157,294 मामले सामने आए जिनमें से 7,84,821लोगों की मौत हुई।
अब तक अलग-अलग तरह के 200 से अधिक कैंसर की जानकारी है, जिनका वर्तमान में शल्य चिकित्सा, कीमोथेरेपी और रेडिएशन (विकिरण) चिकित्सा के द्वारा उपचार किया जा रहा है। इनमें से कई तरह के कैंसर का यदि शीघ्र निदान और उचित उपचार किया जाए तो उन्हें पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है।
हालांकि, अलग-अलग तरह के कैंसर के लिए उपलब्ध उपचार में समय लगता है साथ ही यह बहुत महंगा भी होता है तथा यह कई अन्य दुष्प्रभावों को उत्पन्न करता है। इसके कारण उपचार का वास्तविक फायदा कैंसर रोगियों को नहीं हो पाता है।
अब राजस्थान के जयपुर स्थित एमिटी यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने 'गोल्ड नैनोपार्टिकल्स' के अनोखे समाधान का उपयोग करके नैनो-बायोटेक्नोलॉजी की सहायता से चिकित्सा का नया तरीका विकसित किया है। यह कैंसर रोग प्रबंधन और इसके प्रभावी उपचार के लिए विशिष्ट दवा वितरण में सुधार करने में सहायता करता है।
सोने के अति महीन कण जिन्हें नैनो-पार्टिकल्स कहा जाता है, इनका उपयोग करके एक नई दवा बनाने का तरीका कैंसर के प्रबंधन और उपचार में अहम भूमिका निभा सकता है।
एमिटी सेंटर फॉर नैनोबायोटेक्नोलॉजी एंड नैनोमेडिसिन (एसीएनएन) के डॉ. हेमंत कुमार दायमा, डॉ.अखिला उमापति और प्रो. एस.एल. कोठारी ने इस अनोखे समाधान को खोजने में अहम भूमिका निभाई है।
उन्होंने प्रतिक्रियाशील ऑक्सीजन प्रजातियों (आरओएस) की चयनात्मक पीढ़ी के माध्यम से बेहतर कैंसर-रोधी गतिविधि के लिए जैव-अणुओं और एंटीबायोटिक युक्त एक विशिष्ट कार्यात्मक सतह के साथ 'गोल्ड नैनोपार्टिकल्स' समाधान तैयार किया है।
इन परिणामों से पता चला है कि एक चयनात्मक तरीके से कैंसर के प्रभावी उपचार के लिए सोने के नैनोपार्टिकल्स पर उपयुक्त सतही परिमंडल या कोरोना जरूरी था।
इस शोध को सिल्वर नैनोपार्टिकल्स का उपयोग करके फेफड़ों के कैंसर कोशिकाओं तक बढ़ाया गया और सिल्वर नैनोपार्टिकल्स की सतह से उत्पन्न होने वाले चयनात्मक कैंसर-रोधी प्रभाव का वर्णन किया गया है। दोनों अध्ययनों ने नैनोपार्टिकल्स के कैंसर-रोधी कार्यों के प्रणाली के बारे में अहम जानकरी प्रदान की है।
अध्ययनकर्ता ने बताया कि यह शोध जापान स्थित मियाजाकी विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के साथ एक वैश्विक प्रयास था और ऑस्ट्रेलिया का आरएमआईटी विश्वविद्यालय इसमें सक्रिय रूप से हिस्सा ले रहा है। उन्होंने कहा कि अब टीम तैयार किए गए नैनोकणों पर नैदानिक अध्ययन की योजना बना रही है।
सोने के नैनोपार्टिकल्स के कुछ महत्वपूर्ण भौतिक रासायनिक व जैविक अध्ययन को भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के विज्ञान व प्रौद्योगिकी अवसंरचना (एफआईएसटी) कार्यक्रम में सुधार के लिए सहायता प्रदान की गई है। शोध जो कि प्राप्त फूरियर-ट्रांसफॉर्म इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कोपी (एफटीआईआर), फ्लोरोसेंट माइक्रोस्कोपी सुविधाओं पर किया गया था।
अध्ययनकर्ताओं ने कहा कि यह अध्ययन कैंसर प्रबंधन में बेहतर और उपचार के लिए नए अवसर खोलेगा और भविष्य में कैंसर से आगे भी नैनो मेडिसिन का रास्ता दिखाएगा। यह अध्ययन ‘कोलाइड्स एंड सर्फेस: अ फिजिकोकेमिकल एंड इंजीनियरिंग एस्पेक्ट्सट’ नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।