

नागालैंड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने मधुमेह से पीड़ित रोगियों के लिए एक महत्वपूर्ण खोज की है। विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पौधों में पाए जाने वाले एक प्राकृतिक यौगिक ‘सिनैपिक एसिड’ की पहचान की है, जो डायबिटिक (मधुमेह) के मरीजों के घावों को तेजी से भरने में मदद कर सकता है। यह अध्ययन नेचर पोर्टफोलियो की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘साइंटिफिक रिपोर्ट्स’ में प्रकाशित हुआ है।
अध्ययन में यह पहली बार साबित हुआ है कि सिनैपिक एसिड को जब मुंह से दिया जाता है, तो यह डायबिटिक स्थितियों में घाव भरने की प्रक्रिया को उल्लेखनीय रूप से तेज कर सकता है। शोध में पाया गया कि यह यौगिक शरीर में एसआईआरटी1 नामक मार्ग (पाथवे) को सक्रिय करता है, जो ऊतकों की मरम्मत, नई रक्त वाहिकाओं के निर्माण और सूजन को नियंत्रित करने में अहम भूमिका निभाता है।
शोध का नेतृत्व नागालैंड विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी के जैव प्रौद्योगिकी विभाग के प्रोफेसर प्रणव कुमार प्रभाकर ने किया। उनके साथ लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी, पंजाब के वैज्ञानिक रूपल दुबे, सौरभ सुरेन गर्ग, नवनीत खुराना और जीना गुप्ता शामिल थे। यह अध्ययन जैव प्रौद्योगिकी, फार्माकोलॉजी, बायोकेमिस्ट्री और मेडिकल लेबोरेटरी साइंस जैसे क्षेत्रों के विशेषज्ञों के सहयोग से किया गया।
प्रेस को ज्ञारी एक विज्ञप्ति में नागालैंड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर जगदीश के. पटनायक के हवाले से कहा गया कि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया यह अध्ययन न केवल शोध की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि है, बल्कि यह मानव स्वास्थ्य की गंभीर चुनौतियों के समाधान में प्रकृति आधारित नवाचारों की संभावनाओं को भी दर्शाता है। उन्होंने कहा कि यह खोज इस बात का उदाहरण है कि हमारे वैज्ञानिक किस तरह से प्राकृतिक संसाधनों से प्रेरित होकर आधुनिक चिकित्सा में योगदान दे रहे हैं।
प्रोफेसर प्रणव कुमार प्रभाकर ने बताया कि मधुमेह आज दुनिया की सबसे गंभीर बीमारियों में से एक है, जिससे करोड़ों लोग प्रभावित हैं। इसके कारण होने वाले घाव देर से भरते हैं और कई बार मरीजों को संक्रमण या अंग काटने जैसी स्थिति का सामना करना पड़ता है। मौजूदा सिंथेटिक दवाएं सीमित असर दिखाती हैं और कई बार दुष्प्रभाव भी पैदा करती हैं। इसीलिए शोध टीम ने पौधों पर आधारित एक सुरक्षित और प्राकृतिक विकल्प की तलाश की। उन्होंने कहा कि सिनैपिक एसिड, जो कई खाद्य पौधों में पाया जाने वाला एक एंटीऑक्सीडेंट है, ऊतक पुनर्निर्माण को तेज करता है, सूजन को कम करता है और नई रक्त वाहिकाओं के निर्माण को बढ़ावा देता है।
अध्ययन के दौरान यह भी पाया गया कि सिनैपिक एसिड की कम खुराक (20 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम) उच्च खुराक (40 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम) से ज्यादा प्रभावी रही। इसे ‘इनवर्टेड डोज़-रिस्पॉन्स’ कहा जाता है, जो भविष्य में दवा की मात्रा तय करने और उसके विकास की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी की डॉ. जीना गुप्ता ने बताया कि सिनैपिक एसिड ऊतकों की मरम्मत को तेज करता है और शरीर में एंटीऑक्सीडेंट तंत्र को मजबूत बनाता है। इसकी मौखिक खुराक से यह पूरे शरीर में सक्रिय हो सकता है और सीधे घाव के स्थान पर असर डाल सकता है। शोध दल अब सिनैपिक एसिड पर आधारित कम लागत वाली और आसानी से ली जाने वाली दवा या न्यूट्रास्यूटिकल टैबलेट विकसित करने पर काम कर रहा है, ताकि इसे भविष्य में मानव परीक्षणों में परखा जा सके।
शोध टीम का कहना है कि यह खोज न केवल डायबिटिक घावों के इलाज में मदद करेगी बल्कि यह अम्प्युटेशन के खतरे को भी कम कर सकती है। यह शोध भारत के पारंपरिक औषधीय ज्ञान और न्यूट्रास्यूटिकल नवाचारों के लक्ष्यों से मेल खाता है और एक सस्ती, सुरक्षित तथा टिकाऊ चिकित्सा पद्धति का रास्ता खोलता है।