मोदी जी, आपने महामारी को भी इवेंट बना दिया

प्रधानमंत्री का राष्ट्र के नाम संबोधन आर्थिक रूप से उबारने की किसी योजना का रत्ती भर भी जिक्र किए बिना स्थिति के प्रति उनकी असंवेदनशीलता को दर्शाता है
कोविड-19 के मुद्दे पर राष्ट्र को संबोधित करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। फोटो: पीआईबी
कोविड-19 के मुद्दे पर राष्ट्र को संबोधित करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। फोटो: पीआईबी
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को कोविड-19 महामारी के मुद्दे पर संबोधित किया। इसकी मंशा थी कि प्रसारण के द्वारा बड़े पैमाने पर लोगों तक अपनी बात पहुंचाई जाए। इस संबोधन में मोदी शैली की सभी खासियतें शामिल थीं: 130 करोड़ भारतीय, भारतीय संस्कृति, और राष्ट्र निर्माण में भागीदारी।

और भाषण के अंत में, यह एक और खास मोदी-स्टाइल का इवेंट निकला, जिसके दो आयाम थे।

मोदी ने लोगों से 22 मार्च को “जनता कर्फ्यू” के लिए अनुरोध किया है, हालांकि इसमें किसी भी महामारी के लिए कोई तर्कशीलता नहीं थी, जबकि सामाजिक एकांतीकरण (क्वारंटाइन) और बीमारी को थामने के प्रयास अब मानदंड बन चुके हैं। दो दिन बाद पड़ने वाले रविवार को चुनने की कोई वजह नहीं बताई गई है। 91 देशों ने पहले से ही नेशनल क्वारंटाइन लागू कर रखा है, जिनमें जनता कर्फ्यू के “पालन” से क्या मकसद हासिल होगा?

इस अनुरोध को अगले स्तर पर ले जाते हुए, मानो बॉलीवुड फिल्म के किसी नाटकीय क्लाइमेक्स की स्क्रिप्ट पढ़ रहे हों, उन्होंने लोगों को बालकनी में, दरवाजों पर, या कहीं भी खड़े होकर उन लोगों के लिए 5 मिनट तक जयकारा करने की अपील की है, जो महामारी के खात्मे के लिए अग्रिम मोर्चे पर लड़ाई लड़ रहे हैं। और यह शाम ठीक 5.00 बजे किया जाना है।

आखिरकार, इस एकजुटता का मतलब क्या है? पूरा देश जो भी कर सकता है, कर रहा है। खुद का क्वारंटाइन करना, घर से काम करना, और हां, सामाजिक अलगाव का भी पालन करना। बाजार पहले से ही बंद हैं; सैकड़ों कस्बों और शहरों में कर्फ्यू लगाया जा चुका है।

इटली में क्वारंटाइन में रह रहे लोगों के जोश बढ़ाने, अपने घरों से गीत गाने और संवाद करने के वीडियो से सोशल मीडिया भरा पड़ा है। क्या मोदी जी हमसे यही करने की अपेक्षा रखते हैं? लेकिन वहां तो स्वाभाविक रूप से था, और वह संकट की घड़ी में एकजुटता की सच्ची आत्म-अभिव्यक्ति थी।

अब, उनके संबोधन की दूसरी बातों का जिक्र करते हैं। उन्होंने एक आर्थिक टास्कफोर्स के बारे में बात की। अब तक, उन्होंने सिर्फ सार्क देशों के लिए एक करोड़ डॉलर के फंड का ऐलान किया है। लेकिन कोविड-19 के कारण पैदा हुई आर्थिक समस्याओं को ठीक करने के लिए “कुछ करने” का सिर्फ भरोसा दिया गया है। असल में उनके कनिष्ठ वित्त मंत्री अनुराग ठाकुर तो पहले ही कह चुके हैं कि महामारी का अर्थव्यवस्था पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

उनका टास्कफोर्स का जिक्र करना इस बात की स्वीकारोक्ति है कि हर कोई सही अर्थव्यवस्था पर भारी असर पड़ने का आशंकाएं जता रहा है, लेकिन हर कोई जिस बात की उम्मीद कर रहा था वह एक सटीक कार्ययोजना थी, न कि सिर्फ एक टास्कफोर्स की स्थापना करना।

अब वापस उस रहस्यमय 22 मार्च, जो रविवार का दिन है, पर लौटते हैं। डाउन टू अर्थ ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि एक अध्ययन से पता चला है कि इस दिन (22 मार्च को ही) देश में कोविड-19 पॉजिटिव मरीजों की संख्या 500 तक पहुंच जाएगी। विशेषज्ञ पहले ही अन्य प्रभावित देशों की तरह भारत में भी मरीजों की संख्या में अचानक वृद्धि की आशंका जता चुके हैं। मोदी ने अपने भाषण में यह भी जिक्र किया कि इस तरह के परिदृश्य को लेकर सावधान रहना चाहिए। क्या उन्होंने कुछ डरावना होने का संकेत दिया है?

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