39 करोड़ मरीज, हर साल 30 लाख मौतें, सांसों की इस घातक बीमारी के लिए कौन जिम्मेवार?

क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिसीज (सीओपीडी) एक ऐसी बीमारी है जो हर साल 30 लाख से ज्यादा लोगों की जान ले रही है। वहीं अनुमान है कि दुनिया की पांच फीसदी आबादी इस बीमारी से पीड़ित है
निम्न और मध्यम आय वाले देशों में क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिसीज (सीओपीडी) के 30 से 40 फीसदी मामलों के लिए धूम्रपान जिम्मेवार है; फोटो: आईस्टॉक
निम्न और मध्यम आय वाले देशों में क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिसीज (सीओपीडी) के 30 से 40 फीसदी मामलों के लिए धूम्रपान जिम्मेवार है; फोटो: आईस्टॉक
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क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिसीज (सीओपीडी) एक ऐसी बीमारी है जो हर साल 30 लाख से ज्यादा लोगों की जान ले रही है। वहीं अनुमान है कि 39.2 करोड़ लोग यानी दुनिया की करीब पांच फीसदी आबादी इस बीमारी का शिकार है। इनमें से तीन-चौथाई वो हैं जो निम्न और मध्यम आय वाले देशों में रह रहे हैं। लेकिन क्या आपने सोचा है कि इस बीमारी की सबसे बड़ी वजह क्या है?     

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक धूम्रपान यानी स्मोकिंग इसके प्रमुख कारणों में से एक है। इस बारे में डब्ल्यूएचओ द्वारा साझा जानकारी के मुताबिक अमीर देशों में सीओपीडी के 70 फीसदी से अधिक मामलों की वजह तंबाकू और धूम्रपान हैं।

वहीं निम्न और मध्यम आय वाले देशों में इस बीमारी के 30 से 40 फीसदी मामलों के लिए धूम्रपान जिम्मेवार है। साथ ही घरों में मौजूद वायु प्रदूषण भी बढ़ते जोखिम की एक प्रमुख वजह है।

गौरतलब है कि क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिसीज, जिसे सीओपीडी के नाम से भी जाना जाता है कोई एक रोग न होकर, बीमारियों का एक ऐसा समूह है जिमसें मरीज के लिए सांस लेना मुश्किल हो जाता है। इसकी वजह से मरीज को लगातार खांसी और बलगम की समस्या बनी रहती है। बता दें कि क्रॉनिक ब्रॉन्काइटिस से पीड़ित अधिकांश लोगों को सीओपीडी होता है।

यह लम्बे समय में बढ़ने वाली बीमारी है, यही वजह है कि इसके लक्षण समय के साथ धीरे-धीरे सामने आते हैं। इस बीमारी में रोगी के फेफड़ों के वायुमार्ग सिकुड़ जाते हैं, और सांस लेने में कठिनाई के साथ-साथ शरीर के अंदर से पर्याप्त कार्बन डाइऑक्साइड बाहर नहीं निकल पाती।

कार्रवाई पर जोर देते हुए प्रोफेसर डेविड एमजी हैल्पिन का कहना है कि, "सीओपीडी दीर्घकालिक विकलांगता का प्रमुख कारण होने के साथ-साथ दुनिया भर में होने वाली मौतों का तीसरा प्रमुख कारण है।" बता दें कि प्रोफेसर हैल्पिन रेस्पिरेटरी मेडिसिन के प्रोफेसर और गोल्ड बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के साथ-साथ फोरम ऑफ इंटरनेशनल रेस्पिरेटरी सोसाइटीज के सदस्य भी हैं।

उनके मुताबिक वैश्विक स्तर पर धूम्रपान की वजह से होने वाली सीओपीडी एक बड़ी समस्या बन चुकी है। निम्न और मध्यम आय वाले देशों में धूम्रपान एक बड़ा मुद्दा है, जहां तंबाकू कंपनियां सक्रिय रूप से नए ग्राहकों को लुभाने का प्रयास कर रही हैं। यही वजह है कि दुनिया में धूम्रपान या तम्बाकू का सेवन करने वाले 130 करोड़ लोगों में से 80 फीसदी इन्हीं क्षेत्रों में रह रहे हैं। ऐसे में उन्होंने आशंका जताई है कि इस प्रवृत्ति के चलते भविष्य में सीओपीडी के वैश्विक बोझ में काफी वृद्धि हो सकती है।

सांसों में घुलता जहर, समाज, सरकार या हम जिम्मेवार कौन

ऐसे में धूम्रपान की दर को कम करने के साथ-साथ सीओपीडी के शीघ्र निदान को बढ़ावा देना जरूरी है। उनका यह भी कहना है कि, “दुनिया भर में मरीजों को प्रभावी थेरेपी तक पहुंच प्राप्त हो, यह सुनिश्चित करने के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है।“

धूम्रपान न केवल सेवन करने वाले को बल्कि उनके आसपास के लोगों के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है। रिसर्च से पता चला है कि तंबाकू का धुआं बच्चों में फेफड़ों के विकास को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है, इससे उनमें आगे चलकर बड़े होने पर सीओपीडी के विकसित होने की संभावना काफी बढ़ जाती है।

देखा जाए तो तम्बाकू उद्योग, निकोटीन और तम्बाकू युक्त उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए आक्रामक मार्केटिंग रणनीति को अपना रहा है, जो विशेष रूप से बच्चों और किशोरों को लक्षित कर रही हैं।

आपको जानकर हैरानी होगी कि धूम्रपान करने वाले 10 में से नौ लोग 18 साल का होने से पहले ही इसकी लत में पड़ जाते हैं, जो उन्हें हर दिन उनकी मौत के और करीब ले जाता है। डब्ल्यूएचओ द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार तम्बाकू हर चार सेकंड में एक इंसान की जान ले रही है। मतलब की यह एक साल में 80 लाख जिंदगियों को छीन रहा है।

विडंबना देखिए कि इनमें से 13 लाख वो है जो स्वयं इसका सेवन नहीं करते लेकिन फिर भी इसके कारण पैदा हुए धुंए का शिकार बन जाते हैं। मतलब कि वो स्वयं इन उत्पादों का उपयोग न करने के बावजूद अप्रत्यक्ष रूप से इससे पैदा हुए धुंए में सांस लेने को मजबूर हैं।

तम्बाकू का सेवन भारत में भी एक बड़ी समस्या है। इस बारे में जर्नल लैंसेट में छपे एक अध्ययन से पता चला है कि देश में धूम्रपान के कारण हर साल 10 लाख लोगों की मौत हो रही है। इतना ही नहीं आंकड़े के मुताबिक इनमें पिछले तीन दशकों में करीब 60 फीसदी का इजाफा हुआ है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भी बच्चों और युवाओं को इसकी लत से बचाने के लिए सरकारों से स्कूलों में धूम्रपान और 'वेपिंग' पर प्रतिबन्ध लगाने का आग्रह किया है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक स्कूलों को तंबाकू और निकोटीन मुक्त रखने से इसे रोकने में काफी हद तक मदद मिल सकती है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा साझा जानकारी से पता चला है कि सीओपीडी से पीड़ित लोगों में फेफड़ों के कैंसर, हृदय रोग, स्ट्रोक, आंखों से सम्बंधित परेशानियां, डिमेंशिया और टाइप 2 मधुमेह के विकसित होने का खतरा कहीं अधिक होता है। वहीं कोविड-19 महामारी ने इन व्यक्तियों के लिए स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच की चुनौतियों को और अधिक बढ़ा दिया है। ऐसे में धूम्रपान छोड़ने से न केवल सीओपीडी का खतरा कम होता है बल्कि इससे जुड़ी अन्य गंभीर बीमारियों का खतरा भी काफी हद तक कम हो सकता है।

इस बारे में डब्ल्यूएचओ के गैर-संचारी रोगों के विभाग के निदेशक डॉक्टर बेंटे मिकेलसेन का कहना है कि, "सीओपीडी से जुड़ी बीमारियां और मौतें गंभीर चिंता का विषय है। ऐसे में धूम्रपान छोड़ने के साथ-साथ इन्हेलर और पल्मोनरी रिहैबिलिटेशन को प्राथमिकता देना महत्वपूर्ण है।"

उनका आगे कहना है कि दुर्भाग्य से, इसके निदान और उपचार तक पहुंच में असमानताएं अभी भी मौजूद हैं। ऐसे में उन्होंने सीओपीडी देखभाल को प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में शामिल करने की पहल में तेजी लाने पर बल दिया है। उनके मुताबिक विशेष रूप से निम्न और मध्यम आय वाले देशों में, जहां सीओपीडी से पीड़ित तीन-चौथाई मरीज हैं, वहां इसपर विशेष ध्यान देने की जरूरत है।

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