विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार भारत में हर साल पहले की तुलना में तपेदिक (टीबी) के कारण कम लोगों की मृत्यु हुई हैं।
भारत की आबादी को कवर करते हुए लगभग 80 लाख लोगों के नमूना पंजीकरण सर्वेक्षण (एसआरएस) पर आधारित गणना में अनुमान लगाया गया है कि 2015 के बाद से भारत में हर साल टीबी से होने वाली मौतें 3,00,000 और 4,00,000 के बीच हुई हैं, इससे पहले भी मामले 5,00,000 से अधिक नहीं थे।
मंगलवार को जारी डब्ल्यूएचओ की विश्व तपेदिक (टीबी) रिपोर्ट 2023 में अनुमान लगाया गया है कि, टीबी के कारण दुनिया भर में 13 लाख लोगों की मौत हुई है, जिससे 2010 के बाद से दुनिया भर में टीबी से होने वाली मौतों के अनुमान में कमी आई है।
मामलों में कमी की मुख्य वजह मृत्यु के कारणों के आंकड़ों के आधार पर भारत से लिए अनुमानों में बदलाव से है। डब्ल्यूएचओ ने कहा कि, भारत सरकार द्वारा इस साल की शुरुआत में 2014 से 19 के लिए नमूना पंजीकरण सर्वेक्षण (एसआरएस) जारी किया गया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि, दुनिया भर में साल 2022 में टीबी की जांच और उपचार संबंधी सेवाओं में भारी सुधार हुआ है। इससे पहले सालों में कोविड-19 के कारण टीबी से संबंधित सेवाओं पर भारी असर पड़ा था, लेकिन साल 2022 में फिर से शुरुआत से काफी प्रगति देखी जा सकती है।
रिपोर्ट में इस वृद्धि का श्रेय कई देशों में स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच और प्रावधान में अच्छी तरह हुई बहाली को दिया जाता है। भारत, इंडोनेशिया और फिलीपींस, जो 2020 और 2021 में टीबी से पीड़ित नए लोगों की संख्या में वैश्विक कमी का 60 फीसदी से अधिक के लिए जिम्मेदार थे, सभी 2022 में 2019 के स्तर से आगे निकल गए हैं।
रिपोर्ट के हवाले से डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस एडनोम घेबियस ने कहा, सहस्राब्दियों तक, हमारे पूर्वज तपेदिक से पीड़ित रहे और मर गए, बिना यह जाने कि यह क्या था, इसके पीछे का कारण क्या था, या इसे कैसे रोका जाए।
उन्होंने कहा, आज, हमारे पास जानकारी और उपकरण हैं जिनके बारे में उन्होंने केवल सपना देखा होगा। हमारी राजनीतिक प्रतिबद्धता है और हमारे पास एक अवसर है जो मानवता के इतिहास में किसी भी पीढ़ी को टीबी की कहानी में अंतिम अध्याय लिखने का अवसर नहीं मिला है।
दुनिया भर में 2022 में 1.06 करोड़ लोग टीबी से बीमार पड़े, जो 2021 में 1.03 करोड़ से अधिक थे। क्षेत्रों के आधार पर, 2022 में, टीबी से ग्रसित अधिकांश लोग दक्षिण-पूर्व एशिया में 46 फीसदी, अफ्रीका में 23 फीसदी, पश्चिमी प्रशांत में 18 फीसदी, पूर्वी भूमध्य सागर में 8.1 फीसदी, अमेरिका में 3.1 फीसदी और यूरोप 2.2 फीसदी का अनुपात रहा।
वहीं देशों की बात करें तो, रिपोर्ट में कहा गया है कि, 2022 में दुनिया भर के 87 फीसदी टीबी के मामलों के लिए 30 देश जिम्मेदार थे और यह दुनिया के पूरे का दो-तिहाई आठ देशों में था, जिनमें भारत में 27 फीसदी, इंडोनेशिया में 10 फीसदी, चीन में 7.1 फीसदी, फिलीपींस में 7.0 फीसदी पाकिस्तान में 5.7 फीसदी, नाइजीरिया में 4.5 फीसदी, बांग्लादेश में 3.6 फीसदी और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में 3.0 फीसदी था।
2022 में एचआईवी वाले लोगों सहित टीबी से संबंधित मौतों की कुल संख्या 13 लाख थी, जो 2021 के 14 लाख के आंकड़ों से कम है। हालांकि, 2020 से 2022 की अवधि के दौरान, कोविड-19 के व्यवधानों के कारण टीबी से लगभग पांच लाख अधिक मौतें हुई। एचआईवी से पीड़ित लोगों में टीबी अभी भी प्रमुख हत्यारा बना हुआ है।
रिपोर्ट के मुताबिक, मल्टीड्रग-प्रतिरोधी टीबी (एमडीआर-टीबी) एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बना हुआ है। जबकि 2022 में लगभग 4,10,000 लोगों में मल्टीड्रग-प्रतिरोधी या रिफैम्पिसिन-प्रतिरोधी टीबी (एमडीआर/आरआर-टीबी) की बीमारी हुई, लेकिन पांच में से केवल दो लोगों को ही इलाज मिल सका।
नई टीबी जांच, दवाओं और टीकों के विकास में कुछ प्रगति हुई है। हालांकि, यह इन क्षेत्रों में भारी निवेश में अभी भी कमी को दिखता है।
डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट में कहा गया है कि, टीबी से निपटने के वैश्विक प्रयासों से वर्ष 2000 के बाद से 7.5 करोड़ से अधिक लोगों की जान बचाई है। हालांकि, और भी अधिक प्रयासों की आवश्यकता है क्योंकि टीबी 2022 में दुनिया का दूसरा प्रमुख संक्रामक हत्यारा बना हुआ है।
साल 2022 में भारी सुधार के बावजूद, 2018 में निर्धारित वैश्विक टीबी लक्ष्यों को पूरा करने के लिए प्रगति काफी नहीं थी, जिसमें महामारी के कारण व्यवधान और चल रहे संघर्ष प्रमुख रूप से जिम्मेवार थे।
रिपोर्ट में कहा गया है कि, लगभग 50 प्रतिशत टीबी रोगियों और उनके परिवारों को बीमारी के कारण भारी खर्चे का सामना करना पड़ता है, जिसे प्रत्यक्ष चिकित्सा व्यय और अप्रत्यक्ष खर्चे जैसे आय में हानि के रूप में परिभाषित किया गया है, जो घरेलू आय का 20 प्रतिशत से अधिक है।