विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने अपनी नई रिपोर्ट में आगाह किया है कि भले है कोविड-19 महामारी का असर अब घट चुका है, इसके बावजूद अभी भी कैंसर, हृदय रोग, मधुमेह और सांस जैसी बीमारियों की दवा अभी भी बहुत से लोगों की पहुंच से दूर हैं।
गौरतलब है कि डब्लूएचओ ने अपनी इस नई रिपोर्ट 'एक्सेस टू एनसीडी मेडिसिन्स' में इन गैर-संचारी बीमारियों के ईलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाओं की सुलभता पर कोविड-19 के प्रभावों की पड़ताल की है। इस रिपोर्ट में दवाओं के उत्पादन, खरीद प्रक्रिया और आयात से लेकर उनके वितरण, उपलब्धता और कीमतों पर महामारी के प्रभावों की भी समीक्षा की गई है।
साथ ही रिपोर्ट में देशों द्वारा लागू की गई उन नीतियों और रणनीतियों को भी रेखांकित किया है, जिनका उद्देश्य चिकित्सा आपूर्ति श्रृंखला में आए व्यवधानों का अनुमान लगाना और उसके प्रभावों में कमी लाना है।
इन गैर-संचारी रोगों की भयावहता का अंदाजा विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी आंकड़ों से लगाया जा सकता है। आंकड़ों के मुताबिक यह बीमारियां हर साल दुनिया भर में होने वाली 74 फीसदी मौतों की वजह हैं। अनुमान है कि यह हर साल 4.1 करोड़ लोगों की जिंदगियां लील रही हैं।
वहीं इन गैर-संचारी बीमारियों से होने वाली 77 फीसदी मौतें निम्न और मध्यम आय वाले देशों में होती हैं। इनमें भी ह्रदय सम्बन्धी रोग सबसे ज्यादा लोगों की जान ले रहे हैं। आंकड़े दर्शाते हैं कि हर साल 1.8 करोड़ लोगों की मौत इन रोगों से हो रही है।
वहीं कैंसर से मरने वालों का आंकड़ा 90 लाख से ज्यादा है। इसी तरह 41 लाख लोगों की मौत की वजह वर्षों पुराना सांस का मर्ज है, जबकि मधुमेह और किडनी सम्बन्धी बीमारियां हर साल 20 लाख से ज्यादा जिंदगियों को लील रही हैं। इन गैर संचारी बीमारियों से होने वाली मौतों में वृद्धि का सिलसिला अभी जारी है। वहीं आशंका है कि 2025 तक यह बीमारियां हर साल 10 करोड़ से ज्यादा लोगों की जिंदगियां छीन लेंगी।
रिपोर्ट के मुताबिक कोविड-19 महामारी के दौरान जो मरीज कैंसर, हृदय रोग, मधुमेह और लम्बे समय से सांस सम्बन्धी बीमारियों जैसे गैर संचारी रोगों का मुकाबला कर रहे थे, उन्हें अपनी नियमित दवाओं को हासिल करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ा था।
रिपोर्ट बताती है कि महामारी के दौरान अनेक लोगों के उपचार में व्यवधान आया था, जिससे उनके स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। ऐसे में यह बहुत जरूरी है कि इन गैर-संचारी रोगों के साथ जीने को मजबूर लोगों के लिए न केवल उपचार व देखभाल को राष्ट्रीय योजनाओं में शामिल किया जाए, बल्कि साथ इन योजनाओं को लागू करने के लिए नए रास्ते भी तलाश किए जाएं।
इस सन्दर्भ में डब्ल्यूएचओ के गैर-संचारी रोग विभाग के निदेशक डॉ बेंटे मिकेलसेन का कहना है कि, “कोरोना महामारी ने उन चुनौतियों को बढ़ा दिया है, जिनका गैर-संचारी रोगों से पीड़ित मरीजों को आवश्यक दवाओं तक पहुंचने में सामना करना पड़ता है।“उनके अनुसार इसकी वजह से कई लोगों का उपचार बाधित हुआ है, जिसके गंभीर स्वास्थ्य परिणाम हो सकते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार कोविड-19 ने प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल और यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज में पर्याप्त निवेश की कमी को भी उजागर किया है। इसकी वजह से 70 फीसदी से अधिक देशों में सभी प्रमुख गैर-संचारी रोगों और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं में 60 फीसदी तक का व्यवधान आ गया था।
यदि कैंसर की बात करें तो 2019 में किए कंट्री कैपेसिटी सर्वे के मताबिक, कीमोथेरेपी 30 फीसदी से भी कम आय वाले देशों में उपलब्ध है। वहीं निम्न-मध्यम-आय वाले देशों के लिए यह आंकड़ा 65 फीसदी है। इसी तरह जहां अमीर देशों में कैंसर से पीड़ित 80 फीसदी से अधिक बच्चों के ठीक होने की सम्भावना है वहीं कम और मध्यम आय वाले देशों में यह आंकड़ा 30 फीसदी से भी कम है।
कोविड-19 के साथ गैर-संचारी रोगों के खिलाफ अपर्याप्त कार्रवाई, इस बात की आशंका को बढ़ा रही है कि सतत विकास के लक्ष्य 3.4 और 3.8 को हासिल नहीं किया जा सकेगा। वहीं मौजूदा और भविष्य में गहराता जलवायु संकट, को गैर-संचारी रोगों की घटनाओं को और बढ़ा देगा।
बेहतर पारदर्शिता की है दरकार
इस रिपोर्ट में गैर-संचारी बीमारियों के लिए दवा निर्माण आपूर्ति श्रृंखला में सरकारों, नियामक प्राधिकरणों, निर्माताओं, और निजी सैक्टर समेत इससे जुड़े अन्य प्रमुख वर्गों के नजरिए से उपयोगी आंकड़े व जानकारियां भी साझा की गई हैं। साथ ही इस दिशा में भावी शोध के लिए दिशा-निर्देश भी साझा किए गए हैं, जिससे दुनिया भर में मरीजों के लिए अहम दवाएं मुहैया कराने के लिए जरूरी प्रणाली को सुदृढ़ बनाया जा सके।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दवाओं के निर्माण से सम्बन्धित जानकारी के इर्दगिर्द व्यवस्था में पारदर्शिता बरती जानी अहम है। जिसके आधार पर महामारी से निपटने की योजना व जवाबी कार्रवाई तैयार की जा सकती है।
इस बारे में स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि यदि गैर-संचारी बीमारी के लिए दवाओं की वैश्विक आपूर्ति श्रंखला में कमजोर कड़ी की पहचान नहीं की गई, तो फिर उन कमियों को दूर करने की उम्मीद भी नहीं की जा सकती। कारगर निगरानी और पारदर्शी आंकड़ों के आभाव में, वैश्विक सप्लाई चेन में मौजूद कमजोरियों की पहचान कर पाना कठिन है।
इससे राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणालियों द्वारा अपनी आपूर्ति श्रृंखला पर नजर रखने, दवाओं की किल्लत की सूचना प्रणाली को मजबूती देने और उसका दायरा बढ़ाने का दबाव बढ़ता है। साथ ही नियमों में लचीलापन लाने और व्यापार अवरोधों को दूर करना मुश्किल हो जाता है।
दुनिया भर में गैर-संचारी रोगों के ईलाज के लिए दवाओं पर कहीं ज्यादा धन खर्च होता है। ऐसे में डब्लूएचओ ने जोर देकर कहा है कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं की सफलता व विफलताओं की समीक्षा जारी रखने की आवश्यकता है, ताकि इन दवाओं की सुलभता बेहतर बनाई जा सके।
वहीं आपात स्थिति के लिए इन दवाओं की सुलभता और वितरण तंत्र को मजबूत करने की जरूरत है। साथ ही भावी महामारियों के प्रकोप को कम करने के लिए एक दीर्घकालिक रणनीति की जरूरत है। इसके लिए इन पुरानी बीमारियों के निदान व उपचार के लिए आवश्यक दवाओं व उत्पादों का निर्बाध व सतत प्रावधान सुनिश्चित किए जाने पर विशेष रूप से बल दिया जाना जरूरी है।