स्कूली बच्चों को कोरोनावायरस से बचाने के लिए अनिवार्य हो मास्क

कोरोना वायरस से बचने के लिए बच्चों के लिए मास्क ही सबसे आसान और कारगर तरीका सिद्ध हुआ
Photo: Pixabay
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कोरोनावायरस की मार कहने के लिए तो पूरी दुनिया पर पड़ी है लेकिन इनमें से सबसे अधिक संवेदनशील तबका बच्चों का है। यूनीसेफ की यदि रिपोर्ट में आंकड़ों पर नजर डालें तो पाएंगे कि पूरी दुनिया में सबसे अधिक कोरोना वायरस की मार बच्चों पर ही पड़ी है।

इसके अनुसार पूरी दुनिया में 1.8 अरब बच्चे किसी न किसी रूप से प्रभावित हुए हैं। अब जबकि भारत सहित दुनियाभर के कई देशों में स्कूल-कॉलेज खोल दिए गए हैं। ऐसे में यह एक बड़ा सवाल उठता है कि कोरोना वायरस से उनकी सुरक्षा के क्या प्रबंध किए गए हैं? और क्या सरकारों द्वारा किए गए सुरक्षा प्रबंध पर्याप्त हैं? क्योंकि अब तक 12 साल से नीचे के बच्चों के लिए कोई वैक्सीन नहीं बनी है। 

स्कूलों में सुरक्षा से जुड़े इस सवाल पर न्यूयार्क टाइम्स ने एक अध्ययन किया। उसमें इस बात का पता लगाया गया कि मास्क पहनने और नहीं पहनने से वायरस के बढ़ने की संभावना कितनी होती है? अध्ययन में यह बात निकलकर आई है कि कोरोना वायरस से बचने के लिए बच्चों के लिए मास्क ही सबसे आसान और कारगर तरीका है।

7,000 से अधिक बच्चों व व्यस्कों पर यह अध्ययन किया गया। ये सभी लोग एक स्कूलों में कोरोना वायरस से संक्रमित थे। अध्ययन में पाया गया कि इन लोगों के निकट संपर्क में आने के कारण 40,000 से अधिक लोगों को क्वारटाइन में रहना पड़ा।

अध्ययन के दौरान किए गए परीक्षण से पता चला कि इनमें से केवल 363 बच्चे और वयस्क ही सीधे तौर पर कोरोनावायरस से संक्रमित हुए। संचरण की यह कम दर स्कूलों में लगातार मास्क पहनने के कारण संभव हुई। संक्रमित व्यक्ति और करीबी संपर्क वाले दोनों ने मास्क पहना था। इसके अलावा स्कूल ने कोरोना वायरस के लिए लगातार परीक्षण की व्यवस्था की हुई थी और स्कूल के वेंटिलेशन सिस्टम में बड़े पैमाने पर खर्च किया गया था।  

अध्ययन में पता चला कि जब स्कूलों ने मास्क की अनिवार्यता लागू की, तब कोरोनोवायरस की स्कूल में संचरण दर कम थी। इसके विपरीत इजराइल में एक स्कूल में बिना मास्क और उचित सामाजिक दूर के कारण कोरोना वायरस अधिक तेजी से फैला।

अध्ययन में कहा गया कि अमेरिका के टेक्सास और फ्लोरिडा राज्यों में कोरोना वायरस बच्चों, किशोरों और वयस्कों के बीच बड़े पैमाने पर बिना मास्क और सामाजिक दूरी को नजरअंदाज करने के कारण आसपास के समुदायों में फैलने की संभावना अधिक देखी गई। ध्यान रहे कि अमेरिका में इसी सामुदायिक प्रसार की संभावना के मद्देनजर मार्च, 2020 में स्कूलों ने अपने दरवाजे बंद कर लिए थे।

अध्ययन में कहा गया है कि इन बातों ये यह स्पस्ट होता है कि मास्क लगाना और न लगाना कोरोना वायरस के प्रसार से जुड़ा हुआ महत्वपूर्ण कारक है। अध्ययन में यह भी कहा गया है कि जिन स्कूलों में मास्क की अनिवार्यता नहीं होगी, उनमें अधिक कोरोना वायरस का संचरण होगा। अमेरिका के 50 लाख स्कूलों में अप्रैल, 2021 तक कोविड से हुई मृत्यु दर प्रति एक लाख स्कूली बच्चों में केवल दो थी, इसका मतलब अभी भी एक वर्ष में बच्चों की कई मौतें संभव है।  

अध्ययन में कहा गया है कि एक बार जब सभी बच्चों के लिए टीकाकरण उपलब्ध हो जाता है, तब स्कूलों में छात्रों को मास्क और टीकाकरण के लिए और प्रोत्साहित किया जा सकता है। उदाहरण के लिए यदि इस दौरान स्कूल में अनिवार्य रूप से मास्क लगाना लागू किया जाता है या किसी छात्र को टीका लगाया जाता है, तो स्कूल की यह जिम्मेदारी होगी कि वह बताए कि वैक्सीन लगे बच्चे यदि मास्क पहने व्यस्क से संपर्क में आते हैं तो उनके लिए क्वारटाइन या कोरोना वायरस का परीक्षण की आवश्यकता होगी कि नहीं। 

अध्ययन में यह कहा गया है कि इसी तरह स्कूल में पढ़ाई के बाद होने वाली गतिविधियों में भाग लेने के लिए टीकाकरण वाले छात्रों को जारी रखने की अनुमति देने पर विचार कर सकते हैं। जिन स्कूलों में अनिवार्य रूप से मास्क लगाना नियम नहीं है, उन्हें वेंटिलेशन और सोशल डिस्टेंसिंग जैसी रणनीतियों का उपयोग हर हाल में करते रहना चाहिए और बिना टीकाकरण वाले छात्रों के लिए नियमित परीक्षण करना जारी रखना चाहिए।

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