हिमाचल में भी लम्पी स्किन बीमारी का कहर, दो सप्ताह में 1 हजार मामले

लम्पी स्किन बीमारी से सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र पड़ोसी राज्यों के साथ सीमा साझा करने वाले सिरमौर, सोलन और उना जिला है।
हिमाचल प्रदेश में लम्पी वायरस से बचाव के लिए प्रभावित क्षेत्रों में वैक्सीनेशन का काम शुरू हो गया है। फोटो: रोहित पराशर
हिमाचल प्रदेश में लम्पी वायरस से बचाव के लिए प्रभावित क्षेत्रों में वैक्सीनेशन का काम शुरू हो गया है। फोटो: रोहित पराशर
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मवेशियों में लम्पी स्किन बीमारी का प्रकोप हिमाचल में भी दिखने लगा है। पिछले एक सप्ताह में प्रदेश में लम्पी स्किन बीमारी के मामलों में लगातार बढ़ोतरी देखी जा रही है।

सरकारी आंकडों के मुताबिक अभी तक 1000 जानवर इस बीमारी से पशु प्रभावित हो चुके हैं।  लम्पी स्किन बीमारी के पहले मामले की पूष्टी 26 जुलाई को शिमला के चायली में हुई थी और अभी तक इस बीमारी की वजह से 58 गायों की जान जा चुकी है।

लम्पी स्किन बीमारी से सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र पड़ोसी राज्यों के साथ सीमा साझा करने वाले सिरमौर, सोलन और उना जिला है। उना जिला में लम्पी स्किन बीमारी के 230 मामले सामने आ चुके हैं जिनमें से 4 पशुओं की मौत हो चुकी है।

इनमें से ज्यादातर मामले पंजाब के साथ सटे गगरेट क्षेत्र से हैं। इसके अलावा उना ब्लॉक में भी ज्यादा मामले देखने को मिले हैं। बीमारी की गंभीरता को देखते हुए हिमाचल प्रदेश में पशुपालन विभाग के कर्मचारियों की छुट्टियों को रद्द कर दी गई हैं। वहीं हरियाणा के साथ बार्डर साझा करने वाले सिरमौर क्षेत्र में भी लम्पी स्किन बीमारी के कई मामले देखे गए हैं।

हिमाचल प्रदेश में यह बीमारी गायों में देखी गई है और पशु गणना के अनुसार हिमाचल प्रदेश में गायों की संख्या 28 लाख के करीब है।

महामारी विज्ञान के उप निदेशक डॉ अरूण सरकैक ने डाउन टू अर्थ को बताया कि प्रदेश लम्पी स्किन बीमारी के बढ़ते मामलों को देखते हुए रेपिड एक्शन टीमों का गठन किया गया है। जिन क्षेत्रों में इस बीमारी के मामले देखे गए हैं वहां के 5 किलोमिटर के दायरे में वैक्सीनेशन का काम किया जा रहा है। इसके अलावा उस क्षेत्र को संवेदनशिल घोषित किया गया है।

पीएचडी इन रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी डॉ सुशील सूद ने डॉउन टू अर्थ को बताया कि जिन पशुओं को वैक्सीन नहीं लगी है वह ज्यादा संवेदनशील हैं।

उन्होंने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों की ऐसी धारणा है कि वैक्सीन लगाने से जानवर दूध कम देता है जिसके चलते लोग वैक्सीनेशन कम करवाते हैं। जबकि ऐसा नहीं है कुछ दिनों के बाद जानवर उतना ही दूध देना शुरू कर देता है। लम्पी स्किन बीमारी जूनोटिक है और इसके मनुष्यों में भी फैलने का भय है हालांकि ऐसा मामला अभी तक सामने नहीं आया है फिर भी इसमें सावधानी बरतने की जरूरत है।

लम्पी स्किन बीमारी की निगरानी के लिए ऊना जिला के नोडल ऑफिसर डॉ राकेश भट्टी ने डाउन टू अर्थ को बताया कि जिला में लम्पी स्किन बीमारी पर नजर रखने के लिए टीमों का गठन कर काम शुरू किया गया है।

उन्होंने लोगों से अपील की है कि लोग घरेलू इलाज न करें और यदि पशुओं में लम्पी स्किन बीमारी के कोई भी लक्षण दिखाई देते हैं तो पशु चिकित्सकों के पास जाएं।

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