जीवन भक्षक अस्पताल-6: उत्तराखंड के इस अस्पताल में एक साल में हुई 228 नवजात की मौत

उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र का सबसे बड़ा अस्पताल हल्द्वानी का डॉ. सुशीला तिवारी राजकीय चिकित्सालय है, जहां 2019 में कुल भर्ती नवजातों में से 16 फीसदी घर नहीं लौट पाए
उत्तराखंड के हलद्वानी स्थित डॉ़. सुशीला तिवारी राजकीय चिकित्सालय। फोटो क्रेडिट: गूगल मैप
उत्तराखंड के हलद्वानी स्थित डॉ़. सुशीला तिवारी राजकीय चिकित्सालय। फोटो क्रेडिट: गूगल मैप
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दिसंबर 2019 में राजस्थान के कोटा स्थित जेके लोन अस्पताल में बच्चों की मौत के बाद देश में एक बार फिर से यह बहस खड़ी हो गई कि क्या बड़े खासकर सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए भर्ती हो रहे बच्चे क्या सुरक्षित हैं? डाउन टू अर्थ ने इसे न केवल आंकड़ों के माध्यम से समझने की कोशिश की, बल्कि जमीनी पड़ताल करते हुए कई रिपोर्ट्स की एक सीरीज तैयार की है। सीरीज की पहली कड़ी में आपने पढ़ा कि अस्पतालों में औसतन हर मिनट में एक बच्चे की मौत हो रही है। इसके बाद जमीनी पड़ताल शुरू की गई। इसमें आपने पढ़ा, राजस्थान के कुछ अस्पतालों की दास्तान कहती ग्राउंड रिपोर्ट । तीसरी कड़ी में आपने पढ़ा, मध्यप्रदेश के अस्पतालों का हाल। अगली कड़ी में आपने उत्तरप्रदेश के कुछ अस्पतालों की कहानी पढ़ी। इसके बाद आपने पढ़ी, गुजरात के दो अस्पतालों की दास्तान बताती कलीम सिद्दीकी की रिपोर्ट। आज पढ़ें, उत्तराखंड के अस्पताल की रिपोर्ट-  

हल्द्वानी के डॉ. सुशीला तिवारी राजकीय चिकित्सालय के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. अरूण जोशी ने बताया कि 1 जनवरी 2019 से 31 दिसंबर 2019 के बीच 228 शिशु (ज्यादातर नवजात) की मौत हुई है। जबकि 1401 नवजात भर्ती हुए। सुशीला तिवारी अस्पताल कुमाऊं का बड़ा अस्पताल है। यहां नैनीताल, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, बागेश्वर, चंपावत समेत उत्तर प्रदेश के नज़दीकी क्षेत्र जैसे रामपुर, बरेली, पीलीभीत से भी बड़ी संख्या में मरीज आते हैं। यहां नवजात बच्चों के लिए 20 बेड हैं जबकि इसकी तुलना में आने वाले मरीजों की तादाद काफी अधिक होती है।

अस्पताल में कुल 750 बेड हैं। बच्चों के पीडियाट्रिक वार्ड में आईसीयू, निओनेटल आईसीयू, वेंटिलेटर, ऑक्सीजन सप्लाई, दवाइयां जैसे सभी मेडिकल उपकरण और सामान मौजूद हैं। हालांकि अव्यवस्था की खबरें अक्सर आती रहती हैं।

राज्य के आर्थिक सर्वेक्षण 208-19 के मुताबिक, वर्ष 2018-19 में संस्थागत प्रसव 70 प्रतिशत है यानी 30 प्रतिशत बच्चे घर पर ही जन्म ले रहे हैं। राज्य में प्रसवपूर्व देखरेख का प्रतिशत 50 प्रतिशत है, इसे वर्ष 2023-24 तक 80 प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा गया है।

राज्य में नवजात बच्चों की मृत्यु दर (आईएमआर) 38 नवजात प्रति एक हजार जीवित बच्चे है। वर्ष 2016-17 में राज्य में 256 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र थे। 85 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र थे। एलोपैथिक डिस्पेंसरी और अस्पताल की संख्या 392 थी। जबकि राज्य में प्रति लाख जनसंख्या पर बेड की संख्या 92 है।

 प्रति हज़ार जनसंख्या पर 2016-17 में अनुमानित जन्मदर 16.6 है, प्रति हज़ार जनसंख्या पर अनुमानित मृत्युदर 6.7 प्रतिशत और प्रति हज़ार जीवित जन्म पर शिशु मृत्युदर 38 है। 

वर्ष 2016-17 में राज्य का स्वास्थ्य का बजट प्रावान 78190.64 लाख था। जो वर्ष 2018-19 में 181147.61 लाख हो गया है। वर्ष 2018-19 में 108 एंबुलेंस सर्विस और ख़ुशियों की सवारी में 429 बच्चों ने एंबुलेंस में जन्म लिया है।

जारी

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