
झारखंड में मेदिनीनगर (पलामू) जिले के चैनपुर प्रखंड अंतर्गत नरसिंहपुर पथरा गांव के प्रेमशंकर चौरसिया 10-11 जुलाई की रात अपने परिवार के साथ सोए थे। इसी दौरान एक सांप ने उन्हें और उनके दो बेटे, दस साल के देव कुमार और छह साल के अर्जुन को काट लिया।
प्रेम चौरसिया के मुताबिक रात करीब 12.30 बजे उनके बेटे देव ने उल्टी की और मां को गले में कटे का निशान निशान दिखाते हुए बताया कि किसी चूहे ने काट लिया है। कुछ देर बाद छोटे बेटे की तबीयत बिगड़ी और फिर हमें भी बेचैनी महसूस हुई। हम समझ गए कि जरूर सांप ने काटा है। इस बीच कमरे के एक कोने में देखा कि करैत सांप है। परिवार के लोगों ने तीनों को मेदिनीराय मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में भर्ती कराया। फिर दोनों बच्चों को रिम्स (रांची) भेज दिया गया। रास्ते में उनकी तबीयत ज्यादा बिगड़ी, तो तुंबागड़ा अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन दोनों बच्चे नहीं बचे।’’
अपने गांव के निकट ही प्रज्ञा केंद्र का संचालन करने वाले प्रेमशंकर चौरसिया की संतान में अब दो बेटियां हैं। 11 जुलाई को ही पलामू के बंसडीहा गांव में एक दंपती को साँप ने काट लिया। दोनों को इलाज के लिए मेदिनीराय मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां महिला शकुंतला देवी की मौत हो गई।
सर्प दंश की ये घटनाएं बानगी भर हैं। कड़वा सच यह भी है कि जंगलों- पठारों और नदियों से घिरे दूर दराज के ग्रामीण इलाके में सर्प दंश की सैकड़ों घटनाएं प्रकाश में नहीं आती। यानी, इन घटनाओं की रिपोर्टिंग नहीं की जाती।
पिछले तीन महीने के दौरान झारखंड में सांपों ने कम से कम डेढ़ हजार लोगों को डसा है। इन घटनाओं में कम से कम 25 मौतें हुई हैं। सर्प दंश की घटनाओं में रोज इजाफा होता रहा है. अलबत्ता आदिवासी इलाके में ये घटनाएं ज्यादा हैं। जबकि लोग झाड़-फूंक में चक्कर में पड़ जाते हैं।
आठ महीने बाद भी सर्पदंश अधिसूचित नहीं
गौरतलब है कि केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने सभी राज्यों को सर्पदंश को अधिसूचित रोग के रूप में वर्गीकृत करने के निर्देश दिए थे, लेकिन आठ महीने बाद भी झारखंड सरकार ने इसे लागू नहीं किया है। इस देरी से अगले पांच वर्षों के भीतर सर्पदंश से होने वाली मौतों को समाप्त करने के लक्ष्य को गंभीर नुकसान पहुंच सकता है। उधऱ तमिलनाडु, कर्नाटक और ओडिशा सहित कई राज्यों ने पहले ही इस निर्देश पर अमल किया है।
केंद्र सरकार ने 2030 तक भारत में सर्पदंश की रोकथाम और नियंत्रण हेतु राष्ट्रीय कार्य योजना (एनएपीएसई) के तहत सभी राज्यों को जारी निर्देश में एक मजबूत निगरानी प्रणाली की आवश्यकता पर बल देते हुए, इस योजना में सर्पदंश के मामलों की अनिवार्य अधिसूचना को घटनाओं पर सटीक नजर रखने, हस्तक्षेपों का मूल्यांकन करने और उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों की पहचान करने के लिए महत्वपूर्ण बताया था।
झारखंड सरकार में महामारी रोग के प्रमुख डॉ प्रवीण कर्ण बताते हैं कि राज्य मे सर्पदंश को अधिसूचित रोग के रूप में वर्गीकृत करने के लिए प्रक्रिया जारी है। संलेख तैयार कर कैबिनेट की स्वीकृति के लिए भेजा जाना है। उनके मुताबिक सर्प दंश का खतरा टालने के लिए इस वित्तीय वर्ष में सात करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। 23 जुलाई तक सभी अस्पतालों में एंटीवेनम के 77,423 डोज स्टॉक में उपलब्ध थे।
कैसे बढ़ा खतरा और झारखंड में सक्रिय प्रजातियां
79.71 लाख हेक्टेयर भौगोलिक क्षेत्रफल वाले झारखंड में 23.28 लाख हेक्टेयर (29 प्रतिशत) वन भूमि है। अलग- अलग रोग को लेकर राज्य में जो चुनौतियां हैं उनमें सर्प दंश का हिस्सा तीन प्रतिशत है। डाउन टू अर्थ ने सर्प दंश और मौतों को लेकर कई जिलों के सिविल सार्जनों, अस्पताल उपाधीक्षक, महामारी रोग विशेषज्ञों से बात कर आंकड़े जुटाए हैं। पड़ताल से पता चलता है कि कॉमन करैत के अलावा भारतीय नाग (कोबरा), रसैल वाइपर, वैंबू वाइपर राज्य में ज्यादा सक्रिय हैं।
पलामू प्रमडंल के गढ़वा सदर अस्पताल में 1 मई से 23 जुलाई तक सर्प दंश के 176 मामले आए, जबकि मौत की संख्या 3 है। लातेहार जिले में इसी अवधि में सर्प दंश के 49 मामले आए और एक की मौत रिकॉर्ड में है। उधर मेदिनीनगर (पलामू) में एक अप्रैल से 14 जुलाई तक 105 मामले आए। मौत का आंकड़ा 4 है।
आदिवासी बहुल खूंटी जिले स्थित सदर अस्पताल में पिछले तीन महीने के दौरान सर्प दंश के 20 मामले आए हैं। दो लोगों की मौत का रिकार्ड है, पर सिविल सार्जन डॉ नागेश्वर मांझी कहते हैं, रास्ते में ही दोनों मौत हो चुकी थी। उधर लोहरदगा सदर अस्पताल में 1 मई से 24 जुलाई तक सर्पदंश के 121 और गुमला सदर अस्पताल समेत सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में एक मई से 23 जुलाई तक सर्पदंश के 106 मामले आए हैं।
कोल्हान प्रमंडल के सरायकेला जिले के सदर अस्पताल और सीएचसी में 103 लोगों के इलाज किए गए। पूर्वी सिंहभूम में जिला सर्विलेंस की एक रिपोर्ट के मुताबिक ढाई महीने में 33 और एमजीएम अस्पताल में 58 सर्पदंश के मामले आए। यहां अप्रैल से जुलाई के बीच तीन लोगों की मौत हुई है।
उधर आदिवासी बहुल पश्चिम सिंहभूम जिले के सदर अस्पताल में ढाई महीने के दौरान सर्पदंश के सर्वाधिक 170 मामले आए। मई और जून में पांच लोगों की मौतें हुई। संथालपरगना प्रमंडल के साहिबगंज सदर अस्पताल में एक मई से 24 जुलाई तक 32 लोगों के इलाज किए गए। एक की मौत हो गई। इससे पहले मार्च महीने में भी सांप काटने से एक की मौत हुई थी। उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल के गिरिडीह सदर अस्पताल से प्राप्त जानकारी के मुताबिक एक मई से 25 जुलाई तक सांपों के डंसे 111 लोगों के इलाज किए गए हैं।
दर्दनाक घटनाओं का सिलसिला
पिछले 26 जून को खूंटी जिले के लापुंग प्रखंड अंतर्गत जामाकेल गांव में जमीन पर सोए एक आदिवासी परिवार के 12 साल के बच्चे अनिकेत होरो उर्फ अंटोनी होरो की करैत सांप के डंसने से मौत हो गई। पोते की मौत की खबर मिलते ही उसकी दादी रोपनी होरो को दिल का दौरा पड़ा और उन्होंने भी दम तोड़ दिया। एक अन्य घटना रामगढ़ जिले के कुजू ओपी क्षेत्र के करमा मंडा टोली की एक घटना सामने आई है। 26 जून की रात इस टोले में 15 वर्ष के बच्चे विशाल मुंडा को सोए अवस्था में करैत सांप ने डंस लिया। सुबह में वह मृत पाया गया। लोगों ने सांप को भी खोज कर मार डाला।
मुआवजे का प्रावधान
गौरतलब है कि राज्य सरकार ने सर्पदंश को ‘स्टेट स्पेसिफिक डिजास्टर’ के तौर पर वर्गीकृत किया है। राज्य के आपदा प्रबंधन सचिव राजेश शर्मा ने डाउन टू अर्थ को बताया है कि सर्पदंश से मौत की घटना पर चार लाख रुपए मुआवजे का प्रावधान है। आपदा प्रबंधन विभाग ने जिलों को पर्याप्त फंड उपलब्ध कराया है। मौत की वजह के लिए पोस्टमार्टम रिपोर्ट अथवा उपायुक्त के द्वारा सत्यापन जरूरी हैं।
गुमला सदर अस्पताल के महामारी रोग विशेषज्ञ डॉ नागभूषण बताते हैं, “करैत अक्सर शाम में या रात के अंधेरे में डंसते हैं। कई मामलों में यह दंश दर्दरहित होता है। कुछ घंटों में जहर फैलने लगता है, जो जान के लिए घातक हो जाता है। नाग, वाइपर रसेल स्ट्राइक करते हैं। इससे लोगों को पता चल जाता है कि सांप ने डंस लिया। सर्पदंश से बचने के लिए सावधानी जरूरी है। और सांप ने डंसा है, तो जितनी जल्दी हो अस्पताल पहुंचना भी। जबकि ग्रामीण इलाके में लोग झाड़-फूंक में चक्कर में पड़ जाते हैं।
जागरूकता जरूरी
वाइल्ड लाइफ जानकारों का मानना है कि सर्पदंश को लेकर झारखंड में बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान और निगरानी जरूरी है। राज्य के पूर्व प्रधान मुख्य वन संरक्षक, वाइल्ड लाइफ, लाल रत्नाकर सिंह डाउन टू अर्थ से कहते हैं, “ बरसात में सांपों के ‘प्राकृतिक आवास’ को नुकसान पहुंचता है, इसलिए वे बाहर निकलते हैं। नाग, वायपर रसेल, करैत सरीखे सांप डंस लें, तो यह निर्भर करता है कि समय पर मुकम्मल इलाज मिलता है या नहीं। जबकि झारखंड के ग्रामीण और दूर-दराज के पठारी इलाके में बड़ी आबादी को यह सुविधा नहीं मिल पाती।“
वे आगे कहते हैं, “बारिश का मौसम सांपों के लिए प्रजनन काल होता है। नाग के बच्चे बाहर निकलते हैं, तो नागिन भी बाहर आ जाती है। फीयर साइकोसिस भी बड़ा फैक्टर है। सांप अगर पैर के नीचे पड़ गए, आस-पास से आप गुजरते दिख जाएं, तो वे खतरे महसूस करते ही डंस लेते हैं। सांप के डंसने के बाद कई मामलों में इंसान भी अत्यधिक घबरा जाता है।“
झारखंड में स्वास्थ्य सेवाएं के निदेशक प्रमुख डॉ. सिद्धार्थ सान्याल डाउन टू अर्थ को बताते हैं कि सर्पदंश के मामलों में इलाज के लिए राज्य के सरकारी अस्पतालों में इलाज की व्यवस्था पहले से बेहतर हुए हैं। चिकित्साकर्मियों को समय- समय पर प्रशिक्षण दिए जा रहे हैं। बेशक सांप पर्यावरण संतुलन के लिए जरूरी हैं और सर्पदंश एक चिकित्सकीय अपात स्थिति है। सर्पदंश से घबराने या अंध विश्वास में पड़ने की बजाय तुरंत नजदीकी अस्पताल जाना चाहिए।