क्या दृष्टि सम्बन्धी विकार और मृत्युदर के बीच कोई सम्बन्ध है? इसके बारे में हाल ही अंतराष्ट्रीय जर्नल लैंसेट में एक शोध छपा है, जिसके अनुसार दृष्टि सम्बन्धी विकार और नेत्रहीनता मृत्युदर में इजाफा कर सकती है। आंखें इंसान के शरीर का एक अभिन्न अंग होती हैं, जिनके बिना एक बेहतर जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। जिस तरह से वैश्विक आबादी में उम्र दराज लोगों की संख्या बढ़ रही है, शोधकर्ताओं का मानना है कि इस समस्या पर अधिक ध्यान देने की जरुरत है।
अनुमान है कि अगले 30 वर्षों में दृष्टि सम्बन्धी विकार और नेत्रहीनता से ग्रस्त लोगों की संख्या दोगुने से भी ज्यादा हो जाएगी। यदि वैश्विक स्तर पर देखें तो करीब 110 करोड़ लोग आंख सम्बन्धी विकारों से ग्रस्त हैं, जबकि 4.3 करोड़ के आंखों की रौशनी पूरी तरह छिन चुकी है। आंकड़ों से पता चला है कि 2020 में करीब 59.6 करोड़ लोगों में दूरदृष्टि दोष था, जिनमें से करीब 4.3 करोड़ लोगों की आंखों की रौशनी छिन चुकी है। वहीं 51 करोड़ लोगों की पास की नजर कमजोर है।
क्या कुछ निकल कर आया अध्ययन में सामने
करीब 48,000 लोगों पर किए 17 शोधों के विश्लेषण से पता चला है कि जिन लोगों में दृष्टि सम्बन्धी विकार अधिक गंभीर था, उनमें सामान्य या कम दृष्टि दोष वाले लोगों की तुलना में किसी भी कारण से होने वाली मृत्यु का खतरा कहीं ज्यादा था।
विश्लेषण से पता चला है कि सामान्य दृष्टि वाले लोगों की तुलना में जिन लोगों में हल्का दृष्टि दोष था उनमें मृत्युदर का जोखिम करीब 29 फीसदी ज्यादा था। वहीं गंभीर दृष्टि दोष वाले लोगों में यह जोखिम 89 फीसदी तक बढ़ जाता है।
यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि दृष्टि दोष से ग्रस्त हर पांच में से चार लोगों को ठीक किया जा सकता है या फिर उनमें इस विकार के होने से पहले ही रोका जा सकता है। दृष्टि विकार और नेत्रहीनता के लिए जिम्मेवार दोनों ही प्रमुख कारणों मोतियाबिंद और चश्मे की कमी दोनों को ही आसानी से दूर किया जा सकता है।
इस शोध से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता जोशुआ एर्लिच के अनुसार इस समस्याओं पर जल्द ध्यान दिया जाना आवश्यक है, क्योंकि दृष्टिहीनता ने केवल आपके दुनिया देखने के नजरिए में बदलाव लाती है, बल्कि उससे कहीं ज्यादा यह आपके जीवन को भी प्रभावित करती है।
ऐसे में यह विश्लेषण न केवल स्वास्थ्य और जीवन की बेहतरी को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है, साथ ही दुनिया भर में दृष्टि विकार से जुड़ी समस्याओं को दूर करके, जीवन प्रत्याशा में भी सुधार करने की बात करता है।