यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जिनिया के स्कूल ऑफ मेडिसिन के प्रोफेसर के नेतृत्व में शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने चेतावनी दी है कि अगली महामारी से निपटने के लिए वैज्ञानिकों को बेहतर तैयारी करने की जरुरत है| साथ ही उन्होंने ऐसा करने की एक योजना भी विकसित की है, जिसपर उन्होंने एक शोध भी प्रकाशित किया है
पिछले कुछ समय में कोविड-19 को लेकर जिस तरह से शोध हुए हैं उसके कारण वैज्ञानिक आंकड़ों का अम्बार लग गया है| जिसे देखते हुए वैज्ञानिकों ने एक उन्नत सूचना प्रणाली के निर्माण की जरुरत की बात कही है| जिसकी मदद से वैज्ञानिक बड़ी मात्रा में उत्पन्न हुए इन आंकड़ों को इकट्ठा कर सकें साथ ही उसकी निगरानी और मूल्यांकन किया जा सके| शोधकर्ताओं की मानें तो अगले रोगाणुओं की आणविक संरचना एक बड़े जैविक खतरे को जन्म दे सकती है|
रोगाणुओं का आकार, संरचना और वो किस तरह कार्य करता है इस बात की जानकारी उसकी रोकथाम के लिए दवाओं, वैक्सीन और उपचार के विकास के लिए बहुत मायने रखती है| उदाहरण के लिए कोविड-19 की वैक्सीन को ही ले लीजिये जो इस वायरस की सतह पर मौजूद प्रोटीन 'स्पाइक' को निशाना बनाते हैं|
उनके अनुसार कोविड-19 के लिए उनके द्वारा बनाया गया ऑनलाइन रिसोर्स भारी मात्रा में उपयोग उसकी उपयोगिता को स्पष्ट तौर पर दर्शाता है| जिसे अनुसंधान के लिए नई रणनीति की नींव के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है| इस वेबसाइट में सार्स-कोव-2 से सम्बंधित प्रोटीन के कई सत्यापित 3-डी संरचनात्मक मॉडल को भी शामिल किया गया है| जिसमें दवाओं के लिए कई संभावित लक्ष्यों के बारे में बताया गया है|
भविष्य में महामारियों से निपटने में मददगार होगी एक उन्नत सूचना प्रणाली
माइनर हैरिसन के अनुसार संरचनात्मक मॉडल और अलग-अलग प्रयोगशालाओं द्वारा प्रस्तुत परिणामों के लिए एक मानक मूल्यांकन प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि उससे प्राप्त निष्कर्ष सटीक और स्वीकृत वैज्ञानिक मानकों के अनुरूप हैं।
वैज्ञानिकों की मानें तो उन्नत सूचना प्रणाली की सबसे ख़ास काम उन संरचनाओं की पहचान करना है जिन्हें परिष्कृत और बेहतर बनाया जा सकता है। यह महत्वपूर्ण है कि कोविड-19 की आणविक संरचना से जुड़े जो ब्लूप्रिंट जो प्रोटीन डाटा बैंक के ऑनलाइन डेटाबेस में इकठ्ठा किए गए थे उनमें से अधिकांश बहुत अच्छे थे| इनमें से 1 फीसदी से भी कम की पुनर्व्याख्या करने की जरुरत थी| जबकि 10 फीसदी से कम को मामूली बदलाव के बाद इस्तेमाल किया जा सकता है|
जिस तरह अच्छी ईमारत के लिए अच्छे ब्लूप्रिंट की जरुरत होती है, यह बात वैक्सीन और उपचार पर भी लागु होती है| यह जरुरी है कि रोगाणुओं की संरचना और उससे जुड़े आंकड़ें जितना हो सके सटीक हों| साथ ही अलग-अलग क्षेत्रों के वैज्ञानिक जब उसपर चर्चा करें तो उनका उपयोग करते समय वो एक ही भाषा का प्रयोग करें| इस तरह की उन्नत सूचना प्रणाली अलग-अलग विषयों में अनुरूपता सुनिश्चित करने में मदद करेगी।
माइनर ने बताया कि अब तक कोविड-19 को लेकर करीब एक लाख पेपर प्रकाशित हो चुके हैं| साथ ही पिछले वर्ष में सार्स-कोव-2 के अणुओं से जुड़े एक हजार से ज्यादा मॉडल सामने आ चुके हैं| कोई भी इंसान इस सूचना को विश्लेषित नहीं कर सकता| ऐसे में इतनी बड़ी मात्रा में एकत्र सूचना के सही इस्तेमाल के लिए एक उन्नत सूचना प्रणाली जरुरी है| जिसकी मदद से समस्या को बेहतर तरीके से समझा जा सके और उसका समाधान किया जा सके|
ऐसे में शोधकर्ताओं का मत है कि इस तरह की उन्नत सूचना प्रणाली का निर्माण बहुत मायने रखता है| हालांकि इसके लिए अलग-अलग क्षेत्रों के विशेषज्ञों के सहयोग की जरुरत होगी| पर यह एकमात्रा ऐसा रास्ता है जिसकी मदद से जैव चिकित्सा विज्ञान अगली महामारी के लिए तैयार रह सकता है|
यदि मानव इतिहास को देखें तो बूबोनिक प्लेग, जिसे ब्लैक डेथ के नाम से भी जान जाता है इस तरह की महामारियों की तुलना में कोरोना महामारी बहुत छोटी है| बूबोनिक प्लेग ने कोरोना की तुलना में सौ गुना अधिक लोगों के जान ली थी| लेकिन यह जरुरी नहीं कि अगली बार भी हम इतने ही भाग्यशाली हों, ऐसे में उसके लिए तैयार रहने की जरुरत है|