क्या कोविड-19 की दूसरी लहर से निपटने के लिए तैयार है, भारत में स्वास्थ्य सम्बन्धी बुनियादी ढांचा?

अप्रैल 2020 से जनवरी 2021 के बीच महाराष्ट्र के सरकारी अस्पतालों के आईसीयू में केवल 672 नए बेड जोड़े गए थे
क्या कोविड-19 की दूसरी लहर से निपटने के लिए तैयार है, भारत में स्वास्थ्य सम्बन्धी बुनियादी ढांचा?
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एक साल से भी ज्यादा वक्त से कोविड-19 के खिलाफ जंग लड़ते भारत में स्थिति एक बार फिर बिगड़ने लगी है। पिछले महीने से देश में इस महामारी की दूसरी लहर शुरु हो गई है जिसमें संक्रमण ज्यादा तेजी से फैल रहा है। यदि स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा आज यानी 07 अप्रैल, 2021 को जारी आंकड़ों को देखें तो पिछले 24 घंटों में 115736 नए मामले सामने आए हैं, जबकि 630 लोगों की जान गई है। जो दिखता है कि इस महामारी का प्रकोप एक बार फिर बढ़ने लगा है।

ऐसे में संक्रमण की यह नई लहर देश में स्वास्थ्य सम्बन्धी बुनियादी ढांचे के लिए एक बड़ी चुनौती है। साथ ही यह पिछले करीब एक वर्ष में हमने इस दिशा में क्या प्रगति की है उसको भी परखने की घड़ी है। गौरतलब है कि भारत में स्वास्थ्य से जुड़े बुनियादी ढांचे में सुधार करने के लिए केंद्र सरकार ने 22 अप्रैल, 2020 को 15,000 करोड़ रुपये के पैकेज को मंजूरी दी। जिससे देश में इस महामारी से निपटने के लिए बुनियादी सुविधाओं का विकास किया जा सके। राज्यों ने इस पैसे का उपयोग आईसीयू में बेडों, ऑक्सीजन-समर्थित बेड और वेंटिलेटर्स की संख्या बढ़ाने के लिए किया है। 

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे द्वारा 02 फरवरी 2021 को राज्यसभा में प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल 2020 तक देश में ऑक्सीजन की सुविधा युक्त 62,458 बेड थे, जो जनवरी 2021 में बढ़कर 157,344 हो गए थे जिसका मतलब है कि इस दौरान 94,880 नए बेड जोड़े गए थे। वहीं यदि राज्य स्तर पर देखें तो इस अवधि में महाराष्ट्र में 16,000 और तमिलनाडु में 17,000 नए बेडों की व्यवस्था की गई थी।

हालांकि यह एक बड़ा आंकड़ा है पर जब इनकी तुलना इन राज्यों में बढ़ते कोरोना के मामलों से करें तो यह काफी कम मालूम होते हैं। देश में कोरोना के मामलों में जो वृद्धि हुई है उसका सबसे ज्यादा असर महाराष्ट्र पर ही हुआ है। यदि 5 अप्रैल, 2021 को जारी आंकड़ों को देखे तो देश में 7.4 लाख से ज्यादा मामले सक्रिय थे जिसका करीब 55 फीसदी हिस्सा अकेले महाराष्ट्र में था। इसी तरह इस दिन हुई कुल 478 मौतों में से 46 फीसदी महाराष्ट्र में ही हुई थी।

वहीं यदि तमिलनाडु की बात करें तो 5 अप्रैल, 2021 को वहां 21,958 मामले सक्रिय थे। इस अवधि के दौरान दिल्ली में भी ऑक्सीजन समर्थित बेडों की संख्या में 51 गुना बढ़ी है जबकि त्रिपुरा में भी इनकी संख्या में 52 गुना वृद्धि दर्ज की गई है, जोकि देश में सबसे ज्यादा है। देश की राजधानी में जहां अप्रैल 2020 में केवल 115 बेड थे वो जनवरी 2021 में बढ़कर 5,977 हो गए थे। इसी तरह त्रिपुरा में भी इनकी संख्या 10 से बढ़कर 506 पर पहुंच गई है।

 इसी तरह देश में यदि आईसीयू के बेडों की संख्या देखें तो वो अप्रैल 2020 में 27,360 से बढ़कर वर्तमान में 36,008 हो गई है। आईसीयू बेडों की संख्या में जो  8,648 बेडों का इजाफा हुआ है उसमें से महाराष्ट्र में केवल 672 नए आईसीयू बेड और जोड़े गए हैं। वहां इनकी संख्या में केवल 14 फीसदी की वृद्धि हुई है। दूसरी और दिल्ली में 1,861 नए आईसीयू बेड जोड़े गए हैं। जोकि अप्रैल की तुलना में छह गुना वृद्धि को दर्शाता है। 

क्या रहा परेशानी का सबब

सबसे ज्यादा समस्या हरियाणा, पंजाब, पुडुचेरी, गोवा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, असम, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और झारखंड राज्यों में हैं जहां मामलों के बढ़ने के बावजूद आईसीयू बेडों की संख्या में पहले की तुलना में कमी आई है। एक तरफ जहां हरियाणा और पंजाब में मामले लगातार बढ़ रहे हैं। वहीं दूसरी और इनमें आईसीयू बेडों की संख्या में क्रमशः 79 और 70 फीसदी की कमी आई है। इन राज्यों में वेंटिलेटरों की संख्या में भी क्रमशः 73 और 78 फीसदी की कमी दर्ज की गई है। वहीं दिल्ली में एम्स के निदेशक डॉ रणदीप गुलेरिया ने बताया है कि देश में कोरोनवायरस के नए स्ट्रेन के चलते दूसरी लहर घातक हो सकती है।

यदि अप्रैल 2020 से देखें तो देश में वेंटिलेटर्स की संख्या में 10,461 की वृद्धि हुई है जिसके चलते वो बढ़कर 23,619 हो गए हैं। आंकड़ों के मुताबिक जहां महाराष्ट्र सहित 26 राज्यों में इनकी संख्या में वृद्धि हुई है वहीं 9 राज्य ऐसे भी हैं जहां इनकी संख्या में कमी आई है।

यदि भारत में स्वास्थ्य पर किए जा रहे खर्च की बात करें तो अन्य देशों के तुलना में काफी कम है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार स्वास्थ पर खर्च करने वालों में भारत दक्षिण एशिया में पीछे से दूसरे स्थान पर है। वहीं नेशनल हेल्थ प्रोफाइल 2019 के अनुसार भारत अपने जीडीपी के एक फीसदी से भी कम हिस्से को सार्वजनिक स्वास्थ्य पर खर्च करता है जबकि भूटान करीब 2.5 फीसदी, श्रीलंका 1.6 फीसदी और नेपाल 1.1 फीसदी हिस्सा उस पर खर्च करता है।

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