ओमिक्रॉन वेरिएंट से बचाव के लिए टीके की तीसरी खुराक जरूरी?

ओमिक्रॉन वेरिएंट के खिलाफ टीके का असर कैसे कमजोर पड़ता है, इसका वैश्विक स्तर पर पहली बार ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने अध्ययन किया
उत्तर प्रदेश के लखनऊ में कोविड-19 वैक्सीन लगाने का काम शुरू हुआ। फोटो: रणविजय सिंह
उत्तर प्रदेश के लखनऊ में कोविड-19 वैक्सीन लगाने का काम शुरू हुआ। फोटो: रणविजय सिंह
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कोरोनावायरस के ओमिक्रॉन वेरिएंट का विश्वभर में तेजी से फैलाव ने एक बार फिर से पूरी दुनिया पर खतरे के बादल मंडराने लगे हैं। ऐसे विकट समय में ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने पहली बार ओमिक्रॉन पर किए गए अध्ययन में कहा है कि टीके (वैक्सीन) की तीसरी खुराक ने ओमिक्रॉन के खिलाफ काफी बचाव के संकेत दिए हैं।

इस ब्रिटिश अध्ययन ने ओमिक्रॉन के तेजी से प्रसार को रोकने के लिए टीके की तीसरी खुराक को अनिवार्य बताया है, क्योंकि इसके प्रसार में कहीं न कहीं लगाम लगी है।

ओमिक्रॉन वेरिएंट के खिलाफ टीके का असर कैसे कमजोर पड़ता है, इसका वैश्विक स्तर पर पहली बार ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने अध्ययन किया और बताया कि कोरोनोवायरस के नए और तेजी से फैलने वाले ओमिक्रॉन वेरिएंट के मामलों में स्पष्ट रूप से गिरावट दर्ज की गई है।  

अध्ययन में चेताया गया है कि कि दिसंबर, 2021 के मध्य यानी आगामी 15 दिसंबर तक यह वेरिएंट डेल्टा से आगे निकल सकता है और बिना किसी एहतियाती उपाय के कोविड-19 मामलों में वृद्धि हो सकती है। 

साथ ही सुझाव दिया गया है कि उच्च स्तर की प्रतिरक्षा वाली आबादी में भी ओमिक्रॉन का असर दिख रहा है और यहां तक कि अस्पतालों को प्रभावित कर सकता है।
वैज्ञानिकों ने कहा है कि हमने ओमिक्रॉन वेरिएंट की गंभीरता के बारे में अधिक व्यापक अध्ययन किया है, इसलिए हमारी इस चेतावनी को गंभीरता से लिया जाए।

ध्यान रहे कि इस अध्ययन ने वेक्सीन से सुरक्षा के स्तर में कमी का स्पष्ट रूप से संकेत दिया है। वैज्ञानिकों ने पाया कि फाइजर-बायोएनटेक वैक्सीन की दूसरी खुराक प्राप्त करने के चार महीने बाद ओमिक्रॉन के कारण होने वाले संक्रमण को रोकने में शॉट्स लगभग 35 प्रतिशत प्रभावी थे। हालांकि फाइजर-बायोएनटेक वैक्सीन की तीसरी खुराक ने सुरक्षा का यह आंकड़ा लगभग 75 प्रतिशत तक बढ़ाया।

वहीं, दूसरी ओर एस्ट्राजेनेका टीके की दो खुराकें टीकाकरण के कई महीनों बाद भी ओमिक्रॉन के कारण होने वाले संक्रमण से वास्तव में कोई सुरक्षा प्रदान नहीं करती। लेकिन एक अतिरिक्त फाइजर-बायोएनटेक खुराक ने  वैरिएंट के खिलाफ बचाव का प्रतिशत 71 प्रतिशत तक बढ़ा दिया।

अध्ययन के वैज्ञानिकों ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि टीके अब भी प्रभावी बने रहेंगे, जब तक ओमिक्रॉन के कारण संक्रमण नहीं होता। हालांकि अभी शोधकर्ताओं ने चेतावनी देते हुए कहा कि ब्रिटेन जैसे देश में ओमिक्रॉन वेरिएंट पर नज़र रखने के बाद यह कहना थोड़ा जल्दबाजी होगी कि भविष्य में टीके कितना अच्छा प्रदर्शन करेंगे। 

इस अध्ययन में कई नए निष्कर्षों सामने आए, जैसे ओमिक्रॉन कितनी आसानी से फैल रहा है आदि। ब्रिटेन की स्वास्थ्य सुरक्षा एजेंसी ने बताया कि उदाहरण के लिए ओमिक्रॉन वेरिएंट से संक्रमित किसी व्यक्ति की संक्रमित करने की ताकत डेल्टा वैरिएंट से संक्रमित व्यक्ति के अपने घर के अन्य सदस्यों को वायरस पारित करने की संभावना से लगभग तीन गुना अधिक है।

 इस संबंध में लंदन स्थित इंपीरियल कॉलेज के एक महामारी विज्ञानी नील फर्ग्यूसन ने यह भी सुझाव दिया कि ओमाइक्रोन, डेल्टा की तुलना में लगभग 25 से 50 प्रतिशत अधिक संक्रामक है। 

उन्होंने और अन्य वैज्ञानिकों ने आगाह किया है कि सबूत अभी भी आ रहे हैं और उन जगहों पर बेहतर निगरानी की जरूरत है, जहां ओमिक्रॉन वेरिएंट सबसे अधिक प्रभावी हैं। 

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस सप्ताह कहा था कि कुछ सबूत सामने आए थे कि ओमिक्रॉन, डेल्टा की तुलना में मामूली बीमारी पैदा कर रहा है, लेकिन इस प्रकार की निश्चिंतता ठीक नहीं है।

फिर भी वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि यदि वेरिएंट इंग्लैंड में तेजी से फैलता है, जहां हर 2.5 दिनों में मामले दोगुने हो रहे हैं, ऐसे में दुनिया भर की स्वास्थ्य प्रणाली प्रभावित हो सकती है।

वैज्ञानिकों ने कहा कि ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देशों में व्यापक टीकाकरण पहले की लहरों की तरह कई लोगों को मरने से रोकेगा। लेकिन विशेषज्ञों ने यह भी चेतावनी दी कि अगर अस्पताल बहुत अधिक भर गए तो कोविड और अन्य बीमारियों के मरीजों को और अधिक नुकसान हो संभव है।

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