आर्ट्स ग्रेजुएट ममता रतूड़ी अपने आसपास की महिलाओं को उज्जवला गैस कनेक्शन, जनधन खाते खुलवाने, आधार कार्ड बनवाने जैसे सामाजिक कार्य उत्साह के साथ करती हैं। उन्हें केंद्र सरकार की कृषि क्षेत्र में कार्य कर रही स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं के लिए ड्रोन दीदी योजना की जानकारी थी। लेकिन जब ऋषिकेश एम्स ने पर्वतीय क्षेत्र के स्वास्थ्य केंद्रों पर ड्रोन स्वास्थ्य सेवा शुरू की तो ममता को भी उड़ने के लिए पंख मिल गए।
“मैंने ऋषिकेश एम्स में ड्रोन दीदी के लिए बात की और प्रशिक्षण के लिए मेरा चयन हो गया। मेरे लिए ये बिलकुल नई चीज थी इसलिए थोड़ा डर भी लग रहा था। लेकिन जब मैं ड्रोन पायलट बनने का प्रशिक्षण लेने गुड़गांव के मानेसर स्थित एक संस्थान गई, वहां मेरी तरह छोटे-बड़े शहरों और गांवों से आई महिलाओं को देखा, तो हौसला मिला। मैंने ये चुनौती स्वीकार की”, ममता डाउन टू अर्थ से बातचीत में कहती हैं।
“वहां हमें ड्रोन के बारे में मूलभूत तकनीकी जानकारी दी गई। इसकी बैटरी चेक करना, मौसम से जुड़ी जानकारी लेना, डीजीसीए से अनुमति लेना, रिहायशी क्षेत्र या रेड जोन वायुमार्ग में ड्रोन न जाए, इसका फ्लाइट मिशन बनाना, मैपिंग करना, इसे उड़ाने से जुड़े नियमों के बारे में बताया गया”, ममता पूरे उत्साह से कहती हैं कि ये बीते जमाने की बात है कि महिलाएं तकनीकी मामलों में कम दिलचस्पी लेती हैं। आज जब हमें मौका मिला है तो हम खुद को साबित कर रहे हैं। मैं ऋषिकेश एम्स के ड्रोन विभाग के साथ मिलकर काम कर रही हूं।
जटिल भौगोलिक परिस्थितियों वाले उत्तराखंड के दूरदराज स्थित स्वास्थ्य केंद्रों पर टीबी जैसी बीमारियों की दवा समय पर पहुंचना, वैक्सीन समेत अन्य स्वास्थ्य सामग्री पहुंचाने में ड्रोन बेहद मददगार साबित हो सकता है। इसलिए ऋषिकेश एम्स फरवरी 2023 से पर्वतीय क्षेत्र में ड्रोन सेवाओं का ट्रायल कर रहा था। टिहरी, पौड़ी, उत्तरकाशी जिले के स्वास्थ्य केंद्रों पर ड्रोन से मेडिकल सामग्री भेजी गई। इस वर्ष 1 फरवरी से देश का पहला ड्रोन मेडिकल सर्विस शुरू करने वाला एम्स बन गया है।
संस्थान की निदेशक डॉ मीनू सिंह बताती हैं कि अभी हम मध्यम श्रेणी के ड्रोन का इस्तेमाल कर रहे हैं जो एक बार में 8-10 किलो वजन लेकर तकरीबन 50 किलोमीटर की हवाई दूरी तय कर सकता है। इसकी लैंडिंग या टेकऑफ के लिए 5X5 फीट जगह की जरूरत होती है। टिहरी के चंबा और हिंडोला खाल स्वास्थ्य केंद्र पर ड्रोन से सफलतापूर्वक दवाएं भेजी जा चुकी हैं।
“पर्वतीय क्षेत्रों में ड्रोन के संचालन के लिए हम स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को प्रशिक्षण दे रहे हैं। ये महिलाएं ड्रोन से सामान उतारेंगी और ड्रोन वापस खाली न लौटे, तो वे इसमें जांच के लिए जरूरत के मुताबिक खून या अन्य नमूने भेज सकती हैं। डेंगू जैसी बीमारियों में जरूरत पड़ने पर इनसे प्लेटलेट्स भी भेजे जा सकते हैं। इमरजेंसी में खून पहुंचाया जा सकता है। ऋषिकेश और टिहरी के चंबा में ऐसी ही दो महिलाओं को प्रशिक्षण दिया गया है। इससे स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं भी आत्मनिर्भर बनेंगी”, वह आगे कहती हैं।
गुड़गांव स्थित ड्रोन पायलट ट्रेनिंग देने वाले संस्थान के एडमिशन ऑफिसर बताते हैं कि स्वयं सहायता समूह समेत विभिन्न क्षेत्रों से महिलाएं ड्रोन प्रशिक्षण के लिए आ रही हैं। इनमें ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं भी होती हैं। इन्हें थ्योरी और प्रैक्टिकल दोनों टेस्ट पास करने होते हैं जिसके बाद ही ड्रोन पायलट का लाइसेंस दिया जाता है। ग्रामीण पृष्ठभूमि की महिलाओं के लिए ट्रेनिंग मॉड्यूल को आसान भाषा में तैयार किया गया है। ग्राउंड पर ड्रोन उड़ाने से पहले सिम्युलेटर पर इसका अभ्यास कराया जाता है। फिर कम से कम साढ़े चार घंटे ग्राउंड पर ड्रोन उड़ाना होता है। महिलाएं शुरू में तो थोड़ा झिझकती हैं लेकिन अंत में वे इसमें कुशल हो जाती हैं।
ऋषिकेश एम्स से उड़ान भरकर जब चंबा स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर ड्रोन पहुंचा तो पुष्पा चौहान गांव के लोगों के साथ ये देखने आई थीं। उन्हें जब पता चला कि महिलाओं को ड्रोन उड़ाने की ट्रेनिंग दी जा रही है तो उन्होंने भी इसके लिए संपर्क किया। प्रशिक्षण हासिल कर पुष्पा भी अब ड्रोन पायलट बन गई हैं। वह कहती हैं “मैंने कभी नहीं सोचा था कि जिंदगी में कभी ड्रोन उड़ाउंगी। मेरे साथ कई राज्यों से आई महिलाओं ने ड्रोन उड़ाना सीखा। ट्रेनिंग के दौरान जब ड्रोन उड़ाया तो बहुत अच्छा लगा। गांव की महिलाएं भी ये काम कर सकती हैं”।
ममता और पुष्पा कहती हैं कि गांव की महिलाएं भी ट्रेनिंग हासिल कर बेहतरीन ड्रोन पायलट बन सकती हैं।