महिला दिवस पर विशेष: चीड़ की पत्तियों से संवारी जिंदगियां

महिलाएं चीड़ की पत्तियों से सजावटी सामान बनाकर प्रत्येक माह 20 हजार रुपए तक की कमाई कर रहीं
हिमाचल प्रदेश में सोलन जिले के माही पंचायत में महिलाएं चीड़ के पत्तों से बने उत्पादों की बिक्री करती हुईं (फोटो: रोहित पराशर)
हिमाचल प्रदेश में सोलन जिले के माही पंचायत में महिलाएं चीड़ के पत्तों से बने उत्पादों की बिक्री करती हुईं (फोटो: रोहित पराशर)
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जंगलों में आग का मुख्य कारण बन पर्यावरण को बेहद नुकसान पहुंचाने वाली चीड़ की पत्तियां ग्रामीण परिवेश की महिलाओं की आर्थिकी को इस कदर सुदृढ करेगी, ऐसा किसी ने भी नहीं सोचा था। लेकिन यह सच कर दिखाया है हिमाचल के सोलन जिले की माही पंचायत के ज्योति स्वयं सहायता समूह की 35 सदस्यों ने। ज्योति स्वयं सहायता समूह ने बेकार पड़ी चीड़ की पत्तियों को अपनी आजीविका का मुख्य साधन बना लिया है।

वर्ष 2018 में शुरू हुए इस समूह की प्रत्येक महिला सदस्य अब चीड़ की पत्तियों से बने उत्पादों को बेच कर प्रत्येक माह 20 हजार रुपए तक की कमाई कर रही हैं। समूह की अध्यक्षा अनिता ठाकुर ने डाउन टू अर्थ को बताया कि जब उन्होंने यह काम शौक के तौर पर शुरू किया और उन्हें यह बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि इससे उन्हें हर माह 20 से 30 हजार हजार रुपए के बीच में कमाई होगी।

वे बताती हैं कि जब उन्होंने इस काम को शुरू किया था तो लोग उन्हें हीन भावना से देखते थे, लेकिन जब मेरे साथ महिलाएं जुड़ती गई और सभी को अच्छी कमाई होने लगी तो लोगों की धारणा भी उनके प्रति बदल गई है।

ज्योति स्वयं सहायता समूह अपनी पंचायत की महिलाओं की आर्थिक स्थिति को ठीक करने के साथ-साथ आस-पास की पंचायतों में गांव की महिलाओं को भी चीड़ की पत्तियों से बनने वाले सुंदर उत्पादों को बनाने का प्रशिक्षण देने का काम कर रही हैं। समूह की सदस्या सुनिता ठाकुर ने बताया कि अभी तक उनका समूह 800 से अधिक महिलाओं को प्रशिक्षण दे चुका है।

वे बताती हैं कि हम सभी महिलाएं एक व्हाट्सअप ग्रुप के माध्यम से जुड़ी हुई हैं और जब भी हमें कोई बड़ा ऑर्डर आता है तो हम सब मिलकर बैठक करती हैं और सारे काम को आपस में बांटकर पूरा कर लेती हैं। हमारे साथ लगते गांव बघास, हाठू, मलई, कलहोग और अन्य गांव की महिलाएं जुड़ चुकी हैं।

ज्योति स्वयं सहायता समूह की ओर से ज्यादातर घरों में प्रयोग होने वाली चीजें तैयार की जाती हैं। इनमें चाय परोसने के लिए ट्रे,टी कोस्टर, सजावटी शीशा, रोटी रखने के लिए टोकरी, फल रखने की टोकरी, पैन स्टैंड के साथ अब चीड़ की पत्तियों से बनी सुंदर ज्वैलरी भी शामिल है।

समूह की अध्यक्षा अनिता ठाकुर ने बताया कि हम मार्च माह में जब चीड़ के पेड़ों से पत्तियां गिरती हैं उस समय उन्हें एकत्रित कर घर ले आती हैं और साल भर के लिए जमा कर लेती हैं। इससे जंगलों में आग की घटनाएं भी कम होती हैं। इसके अलावा हम सभी महिलाएं मिलकर जंगलों में आग की घटनाएं न हो इसके लिए समय-समय पर जंगलों की निगरानी के साथ फायर लाइन बनाने में भी मदद करती हैं।

अनिता ने बताया कि हमारे समूह ने चीड़ की पतियों से बने उत्पादों को ऑनलाइन अमेजॉन में भी बेचना शुरू किया था, लेकिन ज्यादा मांग को पूरा न कर पाने की सूरत में उसे बंद कर देना पड़ा। उन्होंने बताया कि 2018 में हम 4 महिलाओं ने इस काम को करना शुरू किया था। उस समय मुझे 1200 रूपये की कमाई हुई थी जो आज बढ़कर 20 से 30 हजार तक पहुंच गई है वहीं 4 महिलाओं से आज हमारे समूह में ही 35 महिलाएं लगातार इस काम कर रही हैं और सैकड़ों और महिलाएं अपना घर इसी काम से चला रही हैं।

अनिता बताती हैं कि हमारे समूह ने बैंक से समूह के नाम पर 3 लाख रुपए का लोन भी लिया था जिसे हमने चीड़ की पत्तियों से बने उत्पादों से हुई कमाई से ही समय पर चुकता कर दिया है। अनिता ठाकुर का कहना है कि जैसे-जैसे हमारे उत्पाद लोग देख या खरीद रहे हैं तो इससे हमारे उत्पादों की मांग बहुत अधिक बढ़ गई है।

इस मांग को पूरा करने के लिए हमें और महिलाओं को अपने साथ जोड़ने की जरूरत है। जब अधिक महिलाएं जुडेंगी तो उससे उन्हें भी आर्थिक लाभ मिलेगा और हमारे उत्पादों को और अधिक पहचान मिलेगी।

ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को आर्थिक रूप सुदृढ बनाने के लिए हिमाचल प्रदेश राजकीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत प्रदेश के सभी विकासखंडों में काम किया जा रहा है। इस योजना के तहत वर्ष 2019-20 में 19 करोड़, वर्ष 2020-21 में 21.50 करोड़ 2021-22 में 40.23 करोड़ और 2022-23 में 40.24 करोड़ रुपए के बजट का प्रावधान किया गया है।

हिमाचल प्रदेश राजकीय ग्रामीण आजीविका मिशन के डाटा के अनुसार पिछले वर्ष 17,939 महिला स्वयं सहायता समूहों को रिवॉल्विंग फंड के तौर पर 3,210 करोड़ रुपए दिए गए हैं।

इसके अलावा स्वयं सहायता समूहों के उत्पादों को पहचान दिलाने के लिए मिशन के तहत सरस मेलों को आयोजन किया जा रहा है।

जिसमें महिलाओं के उत्पादों को प्रदर्शित और बेचा जाता है। हिमाचल में स्वयं सहायता समूहों की ओर से तैयार किए उत्पादों को हिम ईरा ब्रांड से भी बेचा जाता है इसके लिए तीन स्थानों पर दुकानें भी खोली गई है।

इससे न सिर्फ इन महिलाओं की आर्थिक स्थिति बेहतर हो रही है, बल्कि ये समाज में अच्छा नाम भी कमा रही हैं। जिससे अन्य महिलाएं भी प्रभावित होकर स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से अपने आप को सशक्त करने के लिए प्रेरणा पा रही हैं।

बढ़ी अहमियत

राजनीतिक विशलेषक संदीप उपाध्याय डाउन टू अर्थ को बताते हैं कि हिमाचल प्रदेश में किसी भी सरकार को बनाने और हटाने में महिलाओं का अहम योगदान रहा है। उन्होंने बताया कि हिमाचल में कोई भी सरकार रही हो वो महिलाओं को रिझाने के लिए काम करती रही है।

चाहे पिछली सरकार में महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों को और अधिक सुदृढ़ बनाने के लिए आर्थिक मदद करने की बात हो या फिर महिलाओं के लिए बस किराए में छूट हो। सरकारें महिलाओं के महत्व को समझते हुए उन्हें केंद्र में रखकर कई नीतियों का निर्माण करती है।

ऐसा हाल ही में संपन्न हुए चुनावों के दौरान कांग्रेस पार्टी की ओर से किया गया। कांग्रेस पार्टी की ओर से महिला मतदाताओं को रिझाने के लिए प्रत्येक महिला को 1500 रुपए की पेंशन देने की गारंटी दी गई थी जिसका खासा असर चुनावों में देखने को मिला और कांग्रेस पार्टी ने स्पष्ट बहुमत के साथ प्रदेश में सरकार बनवाई।

गौर रहे कि हिमाचल प्रदेश में 27 लाख महिला मतदाता हैं और इन महिलाओं के रिझाने और इन्हें अपने पक्ष में करने के लिए सत्तारूढ़ दल हमेशा महिला हितैषी नीतियों का निर्माण करते हैं। इसका अंदाजा सरकार के हरेक कार्यक्रम, मेलों और अन्य कार्यक्रमों में महिला स्वयं सहायता समूहों की सुनिश्चित की गई भागीदारी से भी लगाया जा सकता है।

सरकार के हरेक कार्यक्रम में स्थानीय महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों के उत्पादों को प्रदर्शित करने के साथ उन्हें इन कार्यक्रमों में सम्मानित भी किया जाता है। वर्तमान में प्रदेश में 49561 स्वयं सहायता समूह बनाए गए हैं और इनमें 422475 महिलाएं पंजीकृत हैं। इतनी संख्या में महिलाओं को अपने पक्ष में रखने के लिए सरकारें, राजनीतिक दल और नेता विभिन्न माध्यमों से उनकी मदद करते रहते हैं।

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