महिला दिवस पर विशेष: कोरोना काल में एक पहल ने बदली महिलाओं की जिंदगी, बन गईं गन्ना किसान

आस-पास के गांव से अब गन्ना किसान नर्सरी में पौधों के लिए आने लगे हैं, साल-दर-साल मांग बढ़ती जा रही है...
उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में करनीपुर  गांव में गन्ने की नर्सरी में छिड़काव करती स्वयं सहायता समूह की महिला (फोटो: ओपी सिंह)
उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में करनीपुर गांव में गन्ने की नर्सरी में छिड़काव करती स्वयं सहायता समूह की महिला (फोटो: ओपी सिंह)
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मंजू देवी, एक स्वयं सहायता समूह की अध्यक्ष एक गन्ने की नर्सरी को निहार रही हैं। करीब एक हेक्टेयर में फैली इस नर्सरी में उन्नत किस्म वाले गन्ने के पौधों में कल्ले फूट चुके हैं। वह इस बार काफी खुश हैं। नर्सरी में इस साल करीब 5 लाख पौधे तैयार होंगे जो 2020 के मुकाबले दोगुना से भी ज्यादा हैं। नर्सरी के सभी पौधे जल्द ही बिक जाएंगे। इन्हें समूह की महिलाएं गन्ना किसानों को बुआई के लिए वितरित कर देंगी। समूह की महिलाएं एक साल में दो सीजन में यह काम करती हैं, जिसने उनकी न सिर्फ जीवनशैली में सुधार किया है बल्कि उनके घर के पुरुषों को भी रोजगार के साधन मिल गए हैं।

उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में करनीपुर गांव में प्रेरणा नाम का स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) बीते तीन वर्षों से कृषि आधारित यह अनोखा प्रयास कर रहा है। समूह की अध्यक्ष मंजू देवी बताती हैं कि “2020 में कोरोना संकट के समय शरद ऋतु से शुरू की गई इस पहल की कोशिश इतनी जल्दी रंग लाएगी, यह मैंने नहीं सोचा था। अब हर सीजन में गन्ना किसानों की तरफ से पौधे के लिए मांग बढ़ती जा रही है। हमारे समूह की महिलाएं जो दूसरे जिलों और राज्यों में काम करने के लिए जाती थीं। अब यहीं रुक गई हैं।“

खेती-किसानी से जुड़े इस स्वयं सहायता समूह की शुरुआत कोरोना संकट के समय हुई थी। समूह का मार्गदर्शन करने वाले गोंडा के गन्ना उपायुक्त ओपी सिंह डाउन टू अर्थ से बताते हैं कि पोरट्रे जिसमें खाद भरकर गन्ने के बड लगाए जाते हैं। ऐसी नर्सरी तैयार करने का प्रयोग उन्होंने वर्ष 2013 में बिजनौर में किया था। इसके बाद यह प्रयोग कोरोना संकट के समय खूब काम आया। वह बताते हैं कि तब कई जिलों में वापस लौटे प्रवासी श्रमिकों को कार्य उपलब्ध कराने की चुनौती थी। ज्यादातर जिले कृषि आधारित कार्यों पर टिके हैं। ऐसे में गन्ने का यह प्रयोग काफी काम आया।

कोरोना के वक्त जून, 2020 में कटनी गांव में महिला किसानों से संपर्क किया गया था। इसके बाद 15 जून, 2020 को प्रेरणा नाम के महिला स्वयं सहायता समूह की नींव रखी गई। उनके मुताबिक गन्ने की नर्सरी तैयार कर कमाई करने वाला प्रेरणा महिला समूह इन्हीं में से एक सफल स्वयं सहायता समूह साबित हुआ है। करनीपुर गांव के जयशंकर पांडेय ने समूह को नर्सरी तैयार करने के लिए एक हेक्टेयर की कृषि भूमि उपलब्ध कराई थी। वह बताते हैं कि जिस वक्त यह समूह शुरू हुआ था उस वक्त गन्ने के अच्छे बीज की कमी थी। फिर सीओएस 13235 के उच्च गुणवत्ता वाले बीज शाहजहांपुर से मंगाए गए थे। तबसे नर्सरी में इन्हीं बीजों का प्रयोग हो रहा है।

वहीं, स्वयं सहायता समूह को शुरुआती मदद के लिए गन्ने के बड काटन वाली मशीन, 6000 पोरट्रे, 6 कुंतल कोकोपिट खाद, 200 बैग वर्मीकंपोस्ट गन्ना अधिकारी ओपी सिंह की तरफ से दिया गया था। 2020 के सितंबर-नवंबर में नर्सरी में कुल 1.59 लाख गन्ने के पौधे तैयार किए गए थे। एक पौधे की कीमत 2.80रुए है। जिससे समूह को किसानों की तरह से प्रति पौधे 1.50 रुपए और सरकार की तरफ से 1.30 रुपए की सब्सिडी मिली थी।

कोरोनाकाल 2020 के शरद ऋतु में किए गए इस पहले प्रयास में खाद व मशीन के सरकारी सहयोग के साथ प्रेरणा समूह की कुल मुनाफा 87,500 रुपए हुआ था। अब नर्सरी को तैयार करने के लिए खाद व वर्मीकंपोस्ट के मामले में स्वयं सहायता समूह पूरी तरह आत्मनिर्भर बन चुका है। प्रेरणा समूह की मंजू देवी बताती हैं कि 2022, अगस्त में समूह की सभी 12 महिलाओं ने आमदनी से गाय खरीदी हैं। अब इन्हीं गाय के गोबर से हम खुद 200 से 300 बैग वर्मीकंपोस्ट तैयार कर रहे हैं। प्रेरणा समूह के साथ इस वक्त कुल 12 महिलाएं काम कर रही हैं। जब जून, 2020 में इसकी नींव रखी गई थी तब इसमें कुल 10 महिलाएं शामिल थीं। समूह की सचिव सायरा बानो बताती हैं कि नर्सरी तैयार करने में कुल 45 दिन लगते हैं। सबसे पहले बड कटर मशीन से गन्ने की गांठे काटी जाती हैं। फिर इन्हें रसायन के घोल में डालकर इनका शोधन किया जाता है। फिर पोरट्रे में एक-एक भाग वर्मीकंपोस्ट, बालू, कोकोपिट भरा जाता है। इनमें गन्ने की गाठों को गहराई में लगा दिया जाता है। फिर इन पोरट्रे को एक दूसरे के ऊपर रखकर पॉलीथीन से ढक दिया जाता है। एक हफ्ते के बाद इन गांठों में कल्ले फूट जाते हैं। बाद में इन्हें किसानों को मांग के अनुरूप 2.80 रुपए में प्रति पौधे की दर से बिक्री कर दिया जाता है।

नर्सरी में प्रत्येक पौधे की लागत 2.25 रुपए आती है। प्रत्येक पौधे पर 55 पैसे के हिसाब से बचत होती है। 2.80 रुपए में 1.30 रुपए की सब्सिडी सरकार की तरफ से मिलती है। हालांकि सब्सिडी की मदद 5 लाख पौधों तक ही है। महिला समूह की सदस्य सायरा बानो बताती हैं कि इस काम के चलते उनके जीवन में बड़ा बदलाव आया है। सायरा बानो के मुताबिक समूह में काम करने वाली सभी 12 महिलाएं और उनका परिवार प्रवासी श्रमिक थे। इस समूह से जुड़ने के बाद अब वह और उनका परिवार गांव में ही रोजगार के लिए रुक गए हैं। सायरा बानो बताती हैं कि हमने समूह से कमाए अपने पैसों से कारपेटिंग के काम के लिए औजार खरीदा है जो उनके पति काम में इस्तेमाल करते हैं। खेती-किसानी के इस प्रयोग से करनीपुर गांव की अन्य महिलाएं भी जुड़ना चाहती हैं। रोजमर्रा के काम के लिए समूह की कुछ महिलाओं ने गांव में दुकानें भी खोली हैं। कभी पुरुष पर आश्रित रहने वाली महिलाएं अब अपने घर के पुरुषों का सहारा बन रही हैं।

प्रेरणा स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने कुल तीन वर्षों (2020-2022 तक) में अब तक कुल 26 लाख रुपए के पौधों की बिक्री की है। समूह को इन तीन वर्षों में कुल 5.25 लाख रुपए का फायदा हुआ है। हर वर्ष नर्सरी तैयार करने के लिए दो सीजन होते हैं। पहला सीजन फरवरी-मार्च और दूसरा सीजन सितंबर से नवंबर। बताती हैं कि प्रेरणा समूह ने 2020 में सितंबर-नवंबर में पहली बार नर्सरी तैयार की। इसके बाद 2021 और 2022 में दोनों सीजन में नर्सरी तैयार हुई।

अब 2023 में यह पहला सीजन है। समूह ने इस वर्ष कुल 5 लाख पौधों को तैयार करने का लक्ष््य रखा है। इससे प्रत्याशित बिक्री 14 लाख रुपए की हो सकती है, जिसका फायदा 2.75 लाख रुपए तक हो सकता है।

प्रेरणा स्वयं सहायता समूह के सदस्यों ने बताया कि सरकार पांच लाख से ज्यादा पौधों पर सब्सिडी नहीं देती है। ऐसे में हम इस लक्ष्य को नहीं पार करेंगे। हालांकि, हमने गांव के अन्य लोगों को नर्सरी के बारे में प्रशिक्षण देना शुरु कर दिया है। साथ ही अब समूह के हर सदस्य के पास एक डेरी हो चुकी है, जिसे हमें और विकसित करना है।

इस समूह को दिशा दिखाने वाले गन्ना उपायुक्त ओपी सिंह बताते हैं कि उत्तर प्रदेश के कई जिलों में इस प्रयोग को अपनाया गया था। कई समूह इस तरह से अपनी आजीविका को बेहतर बना रहे हैं। गोंडा की तरह ही बिजनौर में भी गन्ने की नर्सरी तैयार कर स्वयं सहायता समूह अपनी आजीविका चला रहे हैं।

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