भारतीय वैज्ञानिकों ने ओमिक्रॉन से निपटने के लिए बनाई एमआरएनए-आधारित बूस्टर वैक्सीन

वैक्सीन के लिए उपयोग किए जाने वाले ठंडे फ्रीज या अल्ट्रा-कोल्ड चेन की आवश्यकता नहीं होती है, जिससे पूरे भारत में इसका उपयोग आसान हो जाता है
भारतीय वैज्ञानिकों ने ओमिक्रॉन से निपटने के लिए बनाई एमआरएनए-आधारित बूस्टर वैक्सीन
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भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा स्वदेशी प्लेटफॉर्म तकनीक का उपयोग करके ओमिक्रॉन से निपटने के लिए एमआरएनए-आधारित बूस्टर वैक्सीन विकसित की है। इसका विकास जेनोवा बायोफार्मास्यूटिकल्स द्वारा किया गया, इसे जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (बीआईआरएसी) द्वारा कार्यान्वित मिशन कोविड सुरक्षा के तहत सहायता दी गई है। इस वैक्सीन को इमरजेंसी यूज ऑथराइजेशन (ईयूए) के लिए ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) के कार्यालय से मंजूरी मिल गई है।

बायोटेक्नोलॉजी विभाग ने जेनोवा बायोफार्मास्यूटिकल्स के एमआरएनए-आधारित अगली पीढ़ी के वैक्सीन निर्माण को लेकर वुहान वेरिएंट के खिलाफ प्रोटोटाइप एमआरएनए-आधारित वैक्सीन विकसित करने में मदद की है। साथ ही इसके पहले चरण के जांच परीक्षण, तकनीक के विकास में भी मदद की है। इस परियोजना को ‘मिशन कोविड सुरक्षा’ के तहत अन्य सहायता भी दी गई।

जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (बीआईआरएसी) में बायोटेक्नोलॉजी विभाग के मिशन कार्यान्वयन इकाई द्वारा ‘द इंडियन कोविड-19 वैक्सीन डेवलपमेंट मिशन’ को आगे के नैदानिक विकास और प्रोटोटाइप वैक्सीन को बढ़ावा देने के लिए 2022 में ईयूए प्राप्त हुआ। इसका उपयोग कोविड-19 के एक वेरिएंट ओमिक्रॉन-विशेष बूस्टर वैक्सीन विकसित करने के लिए किया गया।

जेमकोवैक-ओएम एक ओमिक्रॉन-विशिष्ट एमआरएनए-आधारित बूस्टर वैक्सीन है जिसे बायोटेक्नोलॉजी विभाग के सहयोग से जेनोवा द्वारा स्वदेशी प्लेटफॉर्म तकनीक का उपयोग करके विकसित किया गया है। प्रोटोटाइप वैक्सीन की तरह, जेमकोवैक-ओएम एक थर्मोस्टेबल वैक्सीन है, जिसे अन्य एमआरएनए-आधारित वैक्सीन के लिए उपयोग किए जाने वाले ठंडे फ्रीज या अल्ट्रा-कोल्ड चेन की आवश्यकता नहीं होती है। जिससे पूरे भारत में इसका उपयोग आसान हो जाता है।

सुई रहित इंजेक्शन डिवाइस प्रणाली का उपयोग त्वचा पर किया जाता है। जब इसकी बूस्टर डोज लोगों के त्वचा पर लगाई जाती है, तो यह काफी अधिक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया उत्पन्न करता है। नैदानिक परिणाम अपेक्षित प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के लिए वैरिएंट-विशिष्ट टीकों की आवश्यकता को उजागर करता है।

एलएमआईसी सहित भारत में वैक्सीन को उपयोग करने के लिए दो से आठ डिग्री सेल्सियस तापमान का बुनियादी ढांचा आज मौजूद है। यह नवाचार मौजूदा स्थापित आपूर्ति-श्रृंखला के लिए तैयार किया गया है। टीके को दूसरी जगहों पर ले जाने और इनके भंडारण के लिए बहुत कम तापमान की जरूरत नहीं होती है।

बायोटेक्नोलॉजी विभाग के सचिव और बीआईआरएसी के अध्यक्ष डॉ. राजेश एस गोखले ने कहा कि तकनीकी नवाचार तथा इसे चलाने और बनाने के लिए धन का रणनीतिक निवेश आवश्यक है और बायोटेक्नोलॉजी विभाग ने ठीक यही किया। जब इसने देश के पहले एमआरएनए-आधारित प्लेटफॉर्म तकनीक के विकास के लिए सहायता प्रदान की।

यह एक डिजीज-ऐग्नास्टिक प्लेटफॉर्म है और अपेक्षाकृत कम विकासात्मक समय अवधि में अन्य टीकों को बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। उन्होंने वैक्सीन की क्लीनिकल ट्रायल और क्लीनिकल परीक्षण किए जाने की भी बात कही।

वैक्सीन पर बात करते हुए जेनोवा बायोफार्मास्यूटिकल्स के सीईओ डॉ. संजय सिंह ने कहा, जब हमने इस प्लेटफॉर्म तकनीक का विकास शुरू किया और डीबीटी के पास प्रस्ताव लेकर गए, तो सरकार को एमआरएनए टेक्नोलॉजी प्लेटफॉर्म विकसित करने की हमारी क्षमता पर विश्वास था और हमने कर दिखाया।

जेमकोवैक-ओएम को डीसीजी (आई) के कार्यालय से ईयूए प्राप्त करना इस ‘महामारी के लिए तैयार’ तकनीक को शुरू करने, विकसित करने और सक्षम बनाने के हमारे प्रयासों का प्रमाण है। भारत ने अब कोविड-19 के खिलाफ एक नहीं बल्कि दो एमआरएनए टीके विकसित किए हैं। ऐसा इस रैपिड-डिजीज-ऐग्नास्टिक प्लेटफॉर्म तकनीक का उपयोग कर किया गया है।

उन्होंने कहा कि, "मुझे गर्व है कि मेरी टीम ने देश की पहली एमआरएनए वैक्सीन विकसित करने के लिए पिछले दो वर्षों में अथक परिश्रम किया है। यह एक सामूहिक प्रयास है और सीडीएससीओ की विशेषज्ञ समिति के मार्गदर्शन और बीआईआरएसी की वैक्सीन विशेषज्ञ समिति द्वारा परियोजना की निगरानी के बिना यह संभव नहीं होता।”

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