ओमिक्रॉन के लिए भारतीय वैज्ञानिकों ने विकसित की आरटी-पीसीआर किट

ओमिक्रॉन वेरिएंट का पता लगाने वाली यह किट फरवरी में भारतीय बाजार में उपलब्ध हो सकती है
फोटो: विकास चौधरी
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कोरोनावायरस के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन का पता लगाना ‘एस-जीन ड्रॉप आउट’ या फिर संपूर्ण वायरल जीनोम के ‘एनजीएस (नेक्स्टजेन सीक्वेंसिंग)’ जैसे परीक्षणों पर निर्भर करता है। हालांकि, ‘एस-जीन ड्रॉप आउट’ विधि वायरस संस्करण के प्रकार की सटीक पहचान करने में सक्षम नहीं है; तो वहीं, एनजीएस में लगने वाले समय, खर्च और इस सेवा को प्रदान करने वाले केंद्रों की सीमित संख्या के कारण इस पद्धति की अपनी सीमाएं हैं।

सीएसआईआर-सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट, लखनऊ के वैज्ञानिकों की एक टीम ने अपने औद्योगिक भागीदार बायोटेक डेस्क प्राइवेट लिमिटेड, हैदराबाद के सहयोग से ओमिक्रॉन संस्करण की विशिष्ट पहचान के लिए एक स्वदेशी आरटी-पीसीआर किट विकसित की है, जिसे इंडिकोव-ओमTM (INDICoV-OmTM) नाम दिया गया है। ओमिक्रॉन वेरिएंट का पता लगाने के लिए पूरी दुनिया में उपलब्ध कुछ गिनी चुनी किट्स में से यह एक विशिष्ट किट है।

इस अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता डॉ अतुल गोयल ने कहा कि यह किट ओमिक्रॉन वेरिएंट की त्वरित और लागत प्रभावी पहचान करने में उपयोगी है। इसे भविष्य में कोविड संक्रमण और अन्य श्वसन संक्रमण के उभरते रूपों का पता लगाने के लिए भी अनुकूलित किया जा सकता है। इस किट का परीक्षण एवं सत्यापन किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ में कोविड पॉजिटिव मरीजों के नमूनों में प्रोफेसर अमिता जैन द्वारा किया गया है। 

यह किट फरवरी के मध्य तक उपलब्ध हो सकती है। बायोटेक डेस्क प्राइवेट लिमिटेड की प्रबंध निदेशक डॉ. श्रद्धा गोयनका ने कहा है कि “हम नियामक अनुमोदन और किट की असेंबली पर काम कर रहे हैं, और जल्दी ही बाजार में इसके जारी होने के लिए आश्वस्त हैं।"

प्रोफेसर तपस के. कुंडू, निदेशक, सीएसआईआर-सीडीआरआई ने बताया कि "वर्तमान में सीडीआरआई किसी भी प्रकार के वायरल संक्रमण से निपटने हेतु चिकित्सीय और नैदानिकी (थेरप्यूटिक्स एवं डायग्नोस्टिक) दोनों ही पहलुओं पर  एंटी-वायरल शोध में पर्याप्त विशेषज्ञता हासिल कर रहा है। सार्स-कोव-2 ओमिक्रॉन (SARS-Cov-2 Omicron) की जाँच/निदान हेतु यह किट भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) को स्वतंत्र सत्यापन के लिए प्रेषित की गई है, जिसके नियामक अनुमोदन के पश्चात यह भारत के लोगों के लिए उपलब्ध हो सकती है।"

शोधकर्ताओं में डॉ. गोयल के अलावा डॉ. नीति कुमार, डॉ. आशीष अरोड़ा, सुश्री सुरभि मुंद्रा, सुश्री वर्षा कुमारी, श्री कुंदन सिंह रावत और सुश्री प्रियंका पांडेय शामिल थीं।

(इंडिया साइंस वायर)

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