हैदराबाद स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन (एनआईएन) सहित विभिन्न राष्ट्रीय स्तर के शोध संगठनों के शोधकर्ताओं द्वारा भारत में विटामिन बी का अध्ययन किए गया है। अध्ययन में भारतीय बच्चों और किशोरों में विटामिन बी 12 और (फोलेट) एफए की बढ़ती कमी को उजागर करने की कोशिश की गई है। भारत में लगभग एक तिहाई या 33 प्रतिशत किशोर लड़कों में बी12 और एफए की कमी होने के आसार हैं।
यहां बताते चलें कि, सूक्ष्म पोषक तत्वों में, विटामिन बी12 और फोलेट (एफए) महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे चयापचय और जैविक कार्यों के लिए आवश्यक हैं। बी12 और एफए डीएनए संश्लेषण और लाल रक्त कोशिकाओं (आरबीसी) और माइलिन शीथ के विकास में कार्य करते हैं, जो सामान्य वृद्धि और विकास के लिए आवश्यक हैं।
बी12 केवल पशु-स्रोत वाले खाद्य पदार्थों जैसे मांस, पोल्ट्री, मछली और डेयरी उत्पादों में पाया जाता है, जबकि फोलेट पशु और पौधों दोनों के खाद्य पदार्थों में प्रचुर मात्रा में होता है।
बी12 और एफए की कमी पूरे जीवन चक्र में होती है, जिसके अलग-अलग परिणाम होते हैं। गर्भावस्था के दौरान, वे न्यूरल ट्यूब दोष और जन्म के समय कम वजन, गर्भपात और प्री-एक्लेम्पसिया जैसे प्रतिकूल परिणामों के बढ़ते खतरे से जुड़े होते हैं।
यह अध्ययन, एमडीपीआई के ओपन एक्सेस जर्नल न्यूट्रिएंट्स में प्रकाशित हुआ है, इसमें कहा गया है कि 10 से 19 वर्ष के 1,05,243 बच्चे और किशोर जिनमें से स्कूल जाने की उम्र से पहले के या प्रीस्कूल बच्चे 31,058, स्कूल जाने वाले 38,355 और 35,830 किशोर थे।
विटामिन बी 12 और एफए की कमी का प्रसार स्कूल जाने वाले बच्चों 17.3 प्रतिशत की तुलना में किशोरों में 31 प्रतिशत अधिक था, इसके बाद प्रीस्कूल बच्चों में 13.8 प्रतिशत था। लड़कियों की तुलना में किशोर लड़कों में इसका प्रसार क्रमशः 8 प्रतिशत और 5 प्रतिशत अधिक था।
अध्ययन भारत में बच्चों और किशोरों के बीच बी12 और एफए की कमी की भारी कमी को सामने लाता है। हालांकि, कम उम्र के समूहों में इसका प्रचलन कम है। ये निष्कर्ष भारत में पोषण नीति को मजबूत बनाने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
फोलेट की कमी तब होती है जब खून में ठीक से काम करने के लिए आवश्यक विटामिन बी9 (फोलेट) की कमी होती है, जबकि शरीर में विटामिन बी12 की कमी से शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं में कमी आती है जिसे एनीमिया कहते हैं।
हालांकि इन विटामिनों की कमी मुख्य रूप से भोजन की कमी, पोषण रहित भोजन या कुपोषण के कारण हो सकती है, लिंग, आयु और आनुवंशिक, जातीय और सामाजिक सांस्कृतिक पृष्ठभूमि जैसे कई अन्य कारण उनकी स्थिति के प्रभावित करने के भी आसार हैं। अध्ययन में शोधकर्ताओं ने कहा कि पीने के पानी में सुधार न करने वाले प्रतिभागियों में एफए का प्रसार अधिक था।