आखों की बेहतर देखभाल से भारतीय अर्थव्यवस्था को होगा सालाना दो लाख करोड़ से ज्यादा का फायदा

अध्ययन के अनुसार यदि चीन और अमेरिका को छोड़ दें आंखों की रौशनी को होते नुकसान का सबसे ज्यादा बोझ भारतीयों को उठाना पड़ रहा है
अपने बर्तनों को उचित आकार देने के लिए जद्दोजहद करता उत्तर भारत में एक पारंपरिक कुम्हार; फोटो: आईस्टॉक
अपने बर्तनों को उचित आकार देने के लिए जद्दोजहद करता उत्तर भारत में एक पारंपरिक कुम्हार; फोटो: आईस्टॉक
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आंखे हमारे शरीर का बेहद अहम हिस्सा होती हैं, ऐसे में इनकी सही देखभाल भी बेहद मायने रखती है, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि भारत में अभी भी इसपर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा। यही वजह है कि इसकी भारी कीमत हमारी अर्थव्यवस्था को भी उठानी पड़ रही है।

इस बारे में द इंटरनेशनल एजेंसी फॉर द प्रिवेंशन ऑफ ब्लाइंडनेस (आईएपीबी) और जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा किए अध्ययन से पता चला है कि भारत में आंखों की बेहतर देखभाल से हर साल अर्थव्यवस्था को करीब 2.25 लाख करोड़ रुपए का फायदा होगा।

अध्ययन के अनुसार यदि चीन और अमेरिका को छोड़ दें आंखों की रौशनी को होते नुकसान का सबसे ज्यादा खामियाजा भारतीयों को उठाना पड़ रहा है, जो हर साल करीब 2,700 करोड़ डॉलर के बराबर है। रिपोर्ट के मुताबिक जहां दृष्टि हानि की वजह से चीन को हर साल करीब आठ लाख करोड़ (9,600 करोड़ डॉलर) रुपए की चपत लग रही है। वहीं अमेरिका में यह आंकड़ा 4.16 लाख करोड़ रुपए (5,000 करोड़ डॉलर) दर्ज किया गया है।

वहीं जापानी अर्थव्यवस्था को इसकी वजह से 166,553 करोड़ रुपए (2,000 करोड़ डॉलर) और यूके को एक लाख करोड़ रुपए (1,200 करोड़ डॉलर) का नुकसान हो रहा है। हालांकि विडम्बना देखिए की यह वो नुकसान है जिसे आंखों के स्वास्थ्य की उचित देखभाल के जरिए टाला जा सकता है।

देखा जाए तो कार्यक्षेत्र में भी आंखों के महत्व को कम करके नहीं आंका जा सकता। जैसे-जैसे हम तेजी से डिजिटल दुनिया में कदम रख रहे हैं, हमारी आंखें हमारी उत्पादकता का अहम हिस्सा बनती जा रही हैं। ऐसे में स्क्रीन को लम्बे समय तक देखने से दृष्टि संबंधी कई समस्याएं पैदा हो सकती हैं, जिनसे बचने के लिए पर्याप्त देखरेख और उपचार जरूरी है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक भी दुनिया में करीब 220 करोड़ लोग निकट या दूर दृष्टि दोष से पीड़ित है। इनमें से कम से कम 100 करोड़ वो हैं, जिनमें आंखों की रौशनी को होने वाले इस नुकसान को टाला जा सकता था, लेकिन इसके बावजूद इसपर ध्यान नहीं दिया गया। जो वैश्विक अर्थव्यवस्था पर करीब 34.2 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का बोझ डाल रहा है। हालांकि यदि समय पर इसका पता लगने के साथ उपचार मिल जाए तो स्वास्थ्य को होने वाले इस नुकसान को 90 फीसदी तक कम किया जा सकता है।

2050 तक आंखों की समस्याओं से पीड़ित होंगें 180 करोड़ लोग

एक अन्य रिसर्च से पता चला है कि 2050 तक आंखों की समस्या से ग्रस्त लोगों की संख्या बढ़कर 180 करोड़ पर पहुंच जाएगी। इनमें से करीब 89.5 करोड़ लोगों में दूर दृष्टि दोष होगा, जबकि 6.1 करोड़ लोग देखने में पूरी तरह असमर्थ होंगे| 

देखा जाए तो यह आंकड़ा उन लोगों की मदद करने के लिए आवश्यक 2.08 लाख करोड़ रुपए (2,500 करोड़ डॉलर) की धनराशि से बेहद ज्यादा है, जिन्हें देखने में परेशानी होती है। स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक आंखों की रौशनी को होने वाला यह नुकसान वैसे तो किसी उम्र का मोहताज नहीं है, लेकिन दृष्टि हानि और उससे जुड़े विकारों से पीड़ित अधिकांश लोग 50 वर्ष या उससे अधिक उम्र के होते हैं।

इंटरनेशनल लेबर आर्गेनाईजेशन (आईएलओ) के मुताबिक जिन लोगों को देखने में समस्या है उन्हें आम लोगों की तुलना में रोजगार मिलने की सम्भावना 30 फीसदी कम होती है। इतना ही नहीं उन्हें रोजगार ढूंढने में काफी जद्दोजहद करनी पड़ती है। इसकी वजह से उन्हें न केवल कम वेतन पर काम करना पड़ता है साथ ही उनके पास रोजगार से जुड़े विकल्प भी कम हो जाते हैं।

आईएलओ द्वारा जारी रिपोर्ट 'आई हेल्थ एंड द वर्ल्ड ऑफ वर्क' से  पता चला है कि दुनिया भर में करीब 1.3 करोड़ लोग कार्यस्थल पर आंखों को हुए नुकसान का बोझ ढो रहे हैं। हर साल 35 लाख लोग अपने कार्यस्थल पर आंखों को लगने वाली चोटों से प्रभावित होते हैं। स्पष्ट है कि जिस तरह से यह समस्या बढ़ रही है। इसके बारे में गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। 

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