भारत में सबसे अधिक पैदा होते हैं समय पूर्व बच्चे, हर घंटे समय से पहले जन्म ले रहे 345 दुधमुंहे

समय से पहले जन्म लेने के कारण बच्चे का विकास ठीक से नहीं हो पता जो उनकी मौत का कारण भी बन सकता है। साथ ही इसकी वजह से शिशुओं को जीवन भर स्वास्थ्य सम्बन्धी जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है
वैश्विक स्तर पर हर दो सेकेंड में एक नवजात का जन्म समय से पहले हो रहा है, वहीं हर 40 सेकंड में इनमें से एक शिशु की मौत हो जाती है; फोटो: आईस्टॉक
वैश्विक स्तर पर हर दो सेकेंड में एक नवजात का जन्म समय से पहले हो रहा है, वहीं हर 40 सेकंड में इनमें से एक शिशु की मौत हो जाती है; फोटो: आईस्टॉक
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भारत में औसतन हर घंटे 345 नवजातों का जन्म समय से पहले हो जाता है, जोकि उनके स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा है। यह जानकारी संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी नई रिपोर्ट "बर्न टू सून: डिकेड ऑफ एक्शन ऑन प्रीटर्म बर्थ" में सामने आई है।

इस रिपोर्ट को संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ), विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और मातृत्व, नवजात शिशु और बाल स्वास्थ्य के लिए साझेदारी (पीएमएनसीएच) सहित विभिन्न संगठनों ने मिलकर तैयार किया है। इस रिपोर्ट में नवजातों के स्वास्थ्य को लेकर हैरान कर देने वाले आंकड़े सामने आए हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2020 के दौरान 30.2 लाख नवजातों का जन्म समय से पहले हो गया था। वहीं समय से पहले जन्म लेने वाल बच्चों की दर की बात करें तो वो 13 फीसदी है। मतलब की भारत में हर 13वें बच्चे का जन्म समय से पहले हो जाता है।

हैरान कर देने वाली बात है कि दुनिया में समय से पहले जन्म लेने वाला हर पांचवा बच्चा भारतीय होता है। आंकड़ों के अनुसार 2020 के दौरान दुनिया में समय से पहले बच्चों के जन्म के 22.5 फीसदी से ज्यादा मामले भारत में दर्ज किए गए थे। इस लिहाज से देखें तो भारत इस मामले में भी दुनिया में अव्वल है।

गौरतलब है कि समय से पहले जन्म तब कहा जाता है जब गर्भस्थ शिशु का जन्म गर्भावस्था के 37 सप्ताह के पहले हो जाता है। वहीं यदि किसी बच्चे का जन्म गर्भावस्था के 40 सप्ताह के बाद होता है तो उसके जन्म को सामान्य माना जाता है।

देखा जाए तो समय से पहले जन्म लेने के कारण बच्चे का विकास ठीक से नहीं हो पता जो उनकी मौत का कारण भी बन सकता है। वहीं जो बच्चे जीवित रहते हैं उनको भी इसकी वजह से जीवन भर स्वास्थ्य सम्बन्धी जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है। साथ ही इसका असर उनके शारीरिक और मानसिक विकास पर भी पड़ता है।

हर 40 सेकंड में इसकी वजह से हो जाती है एक नवजात की मौत

रिपोर्ट में जो आंकड़े सामने आए हैं उनके मुताबिक वैश्विक स्तर पर हर दो सेकेंड में एक नवजात का जन्म समय से पहले हो रहा है, वहीं दूसरी तरफ हर 40 सेकंड में इनमें से एक शिशु की मौत हो जाती है। मतलब की दुनिया भर में जन्म लेने वाले हर दसवें बच्चे का जन्म समय से पहले हो जाता है। यदि 2020 में ऐसे बच्चों की कुल संख्या को देखें तो यह आंकड़ा 1.34 करोड़ था।  इनमें से 45 फीसदी जन्म पांच देशों भारत, पाकिस्तान, नाइजीरिया, चीन और इथियोपिया में दर्ज किए गए थे।

2020 में समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चों की दर सबसे ज्यादा बांग्लादेश में थी, जो 16.2 फीसदी दर्ज की गई थी। इसके बाद मलावी (14.5 फीसदी), पाकिस्तान (14.4 फीसदी) रिकॉर्ड की गई। इसके बाद भारत और दक्षिण अफ्रीका का नंबर आता है जहां यह दर 13 फीसदी दर्ज की गई थी।

यदि क्षेत्रीय तौर पर देखें तो समयपूर्व जन्म लेने वाले बच्चों की दर दक्षिण एशिया में सबसे ज्यादा है जो 2020 में 13.2 फीसदी दर्ज की गई थी। वहीं पूर्वी एशिया, दक्षिण-पूर्वी एशिया, उत्तरी अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैण्ड में यह दर आठ फीसदी से भी कम थी। देखा जाए तो इस अंतर की एक वजह स्वास्थ्य सुविधाओं और पोषण की उपलब्धता है।

पता चला है कि इसकी वजह से हर साल साल दस लाख नन्हीं जिंदगियां खत्म हो जाती है। देखा जाए तो समय पूर्व जन्म, हृदय रोग, निमोनिया और डायरिया के बाद दुनिया भर में मृत्यु का चौथा सबसे बड़ा कारण है। आंकड़ों के मुताबिक 2021 में समय से पहले जन्म से जुड़ी जटिलताओं ने नौ लाख से ज्यादा बच्चों का जीवन लील लिया था।

रिपोर्ट के अनुसार समय से पहले जन्म, पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मौतों का एक प्रमुख कारण है। पांचवे जन्मदिन से पहले होने वाली हर पांच में से एक मौत के लिए यही जिम्मेवार है। देखा जाए तो ऐसे शिशुओं के जीवित रहने की सम्भावना काफी हद तक उनके जन्म के स्थान पर निर्भर करती है। जहां उच्च आय वाले देशों में समय से पहले जन्म लेने बाले हर दस में से नौ बच्चे जीवित रहते हैं। वहीं कमजोर देशों में यह आंकड़ा बेहद कम है। जहां हर दस में से केवल एक बच्चा ही जीवित बच पाता है।

दस वर्षों में भी नहीं बदली स्थिति

रिपोर्ट के मुताबिक अफ्रीका में समय से पहले जन्म 11 फीसदी नवजातों की मौत की वजह है। वहीं दक्षिण एशिया में यह आंकड़ा आठ फीसदी, उत्तरी अफ्रीका और पश्चिमी एशिया में छह फीसदी, पूर्वी एशिया, दक्षिण-पूर्वी एशिया और ओशिनिया में चार फीसदी, उत्तरी अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में तीन फीसदी और दक्षिण अमेरिका एवं कैरेबियन में भी तीन फीसदी था।

रिपोर्ट से पता चला है कि समय से पहले जन्म ले रहे बच्चों की दर में पिछले दस वर्षों में दुनिया के सभी क्षेत्रों में कोई खास बदलाव नहीं आया है। गौरतलब है कि 2010 से 2020 के बीच 15.2 करोड़ बच्चों का जन्म समय से पहले हुआ था। अध्ययन से पता चला है कि समय पूर्व जन्म लेने वाले हर दस में से एक बच्चे का जन्म ऐसे देशों में होता है जो पहले ही मानवीय संकट से ग्रस्त हैं और संवेदनशील परिस्थितियों से जूझ रहे हैं।

इस बारे में पीएमएनसीएच की कार्यकारी निदेशक हेल्गा फोगस्टैड का कहना है कि मातृत्व और शिशु स्वास्थ्य के साथ-साथ, मृत जन्म की रोकथाम के लिए किए जा रहे प्रयासों में हो रही प्रगति थम रही है। उनके अनुसार जिन क्षेत्रों में इस मामले में अब तक हुई प्रगति को नुकसान हुआ है उसके लिए कोरोना महामारी, जलवायु परिवर्तन और हिंसक संघर्ष के साथ जीवन व्यापन की बढ़ती कीमतें जिम्मेवार है।

जर्नल प्लोस मेडिसिन में प्रकाशित एक रिसर्च से पता चला है कि वैश्विक स्तर पर वायु प्रदूषण के चलते हर साल करीब 59 लाख नवजातों का जन्म समय से पहले हो जाता है। यही नहीं वायु प्रदूषण के कारण 28 लाख नवजातों का वजन जन्म के समय सामान्य से कम होता है। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों ने जोर देकर कहा है कि बच्चों के स्वास्थ्य और उनके जीवित रहने की सम्भवना में सुधार के लिए तत्काल मिलकर समन्वित कार्रवाई की दरकार है।    

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