युवा अवस्था में बढ़ते वजन से 27 फीसदी तक बढ़ सकता है जानलेवा प्रोस्टेट कैंसर का खतरा

शोधकर्ताओं का कहना है कि युवाओं में बढ़ते वजन को नियंत्रित करने से आक्रामक और घातक प्रोस्टेट कैंसर का खतरा कम हो सकता है
फोटो: आईस्टॉक
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क्या आप जानते हैं कि युवा अवस्था में बढ़ता वजन पुरुषों में आगे चलकर उनकी मौत की वजह तक बन सकता है। इस बारे में किए एक नए अध्ययन से पता चला है कि पुरुषों के 17 से 29 की उम्र में बढ़ते वजन से जीवन में आगे चलकर उनमें प्रोस्टेट कैंसर से होने वाली मृत्यु का जोखिम 27 फीसदी तक बढ़ सकता है।

यह जानकारी डबलिन में चल रही यूरोपियन कांग्रेस (ईसीओ) में प्रस्तुत की गई रिसर्च में सामने आई है। गौरतलब है कि मोटापे की समस्या पर यह कांग्रेस 17 से 20 मई के बीच आयरलैंड के डबलिन में आयोजित की गई है।

यह अध्ययन स्वीडन में करीब 250,000 से ज्यादा पुरुषों के स्वास्थ्य सम्बन्धी आंकड़ों के विश्लेषण पर आधारित है। जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि किसी पुरुष के जीवन के शुरूआती वर्षों में बढ़ता वजन आगे चलकर उनमें आक्रामक और घातक प्रोस्टेट कैंसर के विकास से जुड़ा है।

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने वजन और प्रोस्टेट कैंसर के बीच के संबंधों को समझने के लिए 17 से 60 वर्ष की आयु के बीच लोगों के वजन को कम से कम तीन बार मापा था। पता चला है कि 1963 से 2014 के बीच इनमें से 23,348 लोग प्रोस्टेट कैंसर से ग्रस्त थे, जिनमें कैंसर के पता चलने की औसत आयु 70 वर्ष थी। वहीं इनमें से 4,790 लोगों की मौत प्रोस्टेट कैंसर से हुई थी।

रिसर्च के मुताबिक एक पुरुष जो 17 से 29 वर्ष की उम्र के बीच हर साल औसतन एक किलोग्राम वजन प्राप्त करता है मतलब इस दौरान जिसका वजन 13 किलोग्राम बढ़ गया था उसके आक्रामक प्रोस्टेट कैंसर के जोखिम में 13 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई थी। इतना ही नहीं बढ़ते वजन की वजह से व्यक्ति में जानलेवा प्रोस्टेट कैंसर का जोखिम 27 फीसदी बढ़ गया था। 

इसी तरह जिन पुरुषों में 17 से 60 वर्ष की उम्र के बीच हर साल आधा किलोग्राम वजन बढ़ाया था उनमें आक्रामक प्रोस्टेट कैंसर का जोखिम 10 फीसदी ज्यादा था, जबकि इसके घातक होने का जोखिम 29 फीसदी अधिक था। ऐसे में शोधकर्ताओं ने अपने निष्कर्षों में पुष्टि की है कि बढ़ता वजन प्रोस्टेट कैंसर के विकास और आक्रामकता दोनों से जुड़ा था।

हर साल 14 लाख से ज्यादा नए मामले आते हैं सामने

वैश्विक स्तर पर देखें तो प्रोस्टेट कैंसर पुरुषों में होने वाला दूसरा सबसे आम कैंसर है। इसके हर साल 14 लाख से ज्यादा नए मामले सामने आते हैं। यह कैंसर दुनिया में हर साल 375,304 जिंदगियों को लील रहा है। यदि सिर्फ एशिया को देखें तो 2020 में वहां प्रोस्टेट कैंसर के 297,215 नए मामले सामने आए थे, जिनमें से 34,540 मामले भारत में दर्ज किए गए थे। 

वहीं यदि स्वीडन से जुड़े आंकड़ों को देखें तो यह पुरुषों में होने वाला सबसे आम कैंसर है, जिसके हर साल 10,000 मामले सामने आते हैं। इतना ही नहीं यह स्वीडन में हर साल 2,000 लोगों की जान ले रहा है। इसी तरह यूके में इसके हर साल करीब 52,000 मामले सामने आते हैं। देखा जाए तो यह वहां पुरुषों में कैंसर से होने वाली मौतों का दूसरा सबसे आम कारण है, जो हर साल 12,000 लोगों की मौत की वजह है।

इस बारे में लुंड विश्वविद्यालय के ट्रांसलेशनल मेडिसिन विभाग से जुड़ी शोधकर्ता मारिसा डा सिल्वा का कहना है कि पिछले अध्ययनों में इस बात की पुष्टि हुई है कि शरीर में इंसुलिन जैसी वृद्धि कारक 'आईजीएफ-1' की उच्च मात्रा प्रोस्टेट कैंसर के बढ़ते जोखिम से जुड़ी है।

आईजीएफ-1 ऐसा हार्मोन है जो कोशिका में वृद्धि और विकास में जुड़ा है। पता चला है कि मोटापे और बढ़ते वजन से ग्रस्त लोगों में इस हार्मोन का स्तर बढ़ जाता है। शरीर में इस हार्मोन की वृद्धि कैंसर के विकास को बढ़ावा दे सकती है।

इससे पहले भी किए अध्ययनों में इस बात की पुष्टि हुई है कि शरीर में अतिरिक्त चर्बी घातक प्रोस्टेट कैंसर के खतरे को बढ़ा सकती है। हालांकि यह स्पष्ट नहीं था कि क्या शरीर में मौजूद फैट प्रोस्टेट कैंसर से जुड़ा है।

गौरतलब है कि कई प्रोस्टेट कैंसर ऐसे होते हैं जो बहुत धीमी गति फैलते हैं और किसी व्यक्ति के जीवनकाल में उसे नुकसान नहीं पहुंचा सकते हैं। वहीं कुछ अन्य अधिक आक्रामक होते  हैं, जो न केवल प्रोस्टेट बल्कि उसके बाहर भी बड़ी तेजी से फैलते हैं। इस तरह के कैंसर का इलाज कठिन होता है।

देखा जाए तो संतुलित वजन कई तरह के कैंसर से बचा सकता है। लेकिन साथ ही यह भी ध्यान रखना होगा कि प्रोस्टेट कैंसर किसी भी वजन, आकर के पुरुषों को प्रभावित कर सकता है। हालांकि इसका जोखिम 50 वर्षो से ज्यादा उम्र, और ऐसे पुरुषों में ज्यादा होता है जिनकी पारिवारिक इतिहास में इस बीमारी का खतरा सबसे ज्यादा है।

ऐसे में यदि हम यह जानते हैं कि इनके पीछे की एक वजह मोटापा और बढ़ता वजन भी है तो यह इनकों नियंत्रित करने में मददगार हो सकता है। शोधकर्ताओं भी इसी नतीजे पर पहुंचे हैं कि युवाओं में बढ़ते वजन को नियंत्रित करने से आक्रामक और घातक प्रोस्टेट कैंसर का खतरा कम हो सकता है।

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