
कैंसर अब सिर्फ शहरों की बीमारी नहीं रह गया है। देशभर के 43 कैंसर रजिस्ट्री केंद्रों के आंकड़ों पर आधारित ताजा अध्ययन बताता है कि जहाँ ग्रामीण आबादी आधे से अधिक है, ऐसे 30 क्षेत्रों में भी कैंसर का बोझ तेजी से बढ़ रहा है। इन इलाकों में हर एक लाख की आबादी पर औसतन 76 पुरुष और 67 महिलाएं कैंसर से पीड़ित पाए जा रहे हैं। यह दर शहरी केंद्रों की तुलना में थोड़ी कम जरूर है क्योंकि बड़े शहरों में औसतन पुरुषों में यह आंकड़ा एक लाख में 90 से ऊपर और महिलाओं में प्रति लाख 80 से ऊपर पाया गया है। हालांकि महत्वपूर्ण बात यह है कि अब गांवों और छोटे कस्बों में भी कैंसर का खतरा लगभग उसी स्तर तक पहुंच रहा है, जिसे अब तक शहरी जीवनशैली से जोड़ा जाता था।
जामा नेटवर्क ओपेन में प्रकाशित "कैंसर इंसीडेंस एंड मोरटालिटी एक्रॉस 43 पॉपुलेशन बेस्ड कैंसर रजिस्ट्रीज इन इंडिया" अध्ययन ने यह स्पष्ट किया है कि भारत में कैंसर का बोझ तेजी से बढ़ रहा है और इसका असर सिर्फ शहरों तक सीमित नहीं है।
डाउन टू अर्थ ने शोधपत्र में दिए गए आंकड़ों के विश्लेषण में पाया कि देश की कुल 43 कैंसर रजिस्ट्री में चयनित 30 रजिस्ट्री ऐसी थी, जहां ग्रामीण आबादी 50 फीसदी या उससे अधिक है, कैंसर के मामलों का औसत क्रूड इंसीडेंस रेट (सीआईआर) पुरुषों में लगभग हर लाख की आबादी पर 76 और महिलाओं में हर लाख की आबादी पर लगभग 67 है।
ध्यान रहे यह औसत आंकड़ा पूरे भारत की ग्रामीण आबादी का परिदृश्य नहीं देता बल्कि कुल 43 कैंसर रजिस्ट्री में से चयनित 50 फीसदी से अधिक ग्रामीण आबादी वाले क्षेत्रों के सीआईआर की औसत वेटेड गणना पर आधारित है।
सीआईआर किसी विशेष समयावधि में प्रति 1,00,000 आबादी पर होने वाले नए कैंसर मामलों की संख्या को जानने का सबसे सरल तरीका है। यानी किसी क्षेत्र में कैंसर का बोझ कितना है।
मिसाल के तौर पर, अगर किसी रजिस्ट्री क्षेत्र की आबादी 10 लाख है और एक साल में वहां 1,000 नए कैंसर मामले हुए तो सीआईआर प्रति लाख आबादी 100 होगा।
औसत सीआईआर का आंकड़ा पाने के लिए सभी 30 कैंसर रजिस्ट्री के सीआईआर का औसत मान निकाला गया है।
अध्ययन में शामिल 43 जनसंख्या आधारित कैंसर रजिस्ट्री (पीबीसीआर) के डेटा से पता चलता है कि ग्रामीण भारत की स्थिति भी गंभीर है और कई मामलों में शहरी इलाकों के बराबर या उससे अधिक बोझ है।
जनसंख्या आधारित कैंसर रजिस्ट्री (पीबीसीआर) भारत में भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के अधीन संचालित राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम (एनसीआरपी) का हिस्सा है।
शोध के अनुसार, इन रजिस्ट्री यानी पीबीसीआर कैंसर केंद्रों ने 708,223 नए कैंसर मामलों और 206,457 मौतों को दर्ज किया। इसमें विभिन्न राज्यों और भौगोलिक क्षेत्रों से आंकड़े शामिल किए गए हैं।
शोध में कहा गया, "इस क्रॉस-सेक्शनल अध्ययन के मुताबिक, साल 2012 से 2019 के बीच 43 कैंसर रजिस्ट्री में कुल 7,08,223 नए कैंसर के मामले दर्ज किए गए। इनमें से करीब 54 फीसदी मरीज महिलाएं थीं और मरीजों की औसत उम्र लगभग 56 साल रही। इस दौरान कैंसर से 2,06,457 लोगों की मौत हुई।"
अध्ययन में बताया गया है कि रजिस्ट्री कवरेज में विविधता है। कुछ क्षेत्र पूरी तरह शहरी हैं, जबकि कुछ रजिस्ट्री में ग्रामीण आबादी का हिस्सा बहुत अधिक है।
कुल 43 पीबीसीआर में चयनित 50 प्रतिशत से अधिक वाले ग्रामीण आबादी वाले इलाकों में कई जगह कैंसर की दर बेहद ऊंची दर्ज हुई।
50 फीसदी से अधिक ग्रामीण आबादी वाले ऐसे 30 क्षेत्रों में कैंसर की दर चौंकाने वाली है। कई जिलों में प्रति लाख में कैंसर पीड़ितों की दर (सीआईआर) 100 से ऊपर पहुंच गई है।
जम्मू-कश्मीर के पुलवामा (85.6% ग्रामीण) में पुरुषों का सीआईआर 132 और महिलाओं का 131 दर्ज हुआ। अरुणाचल प्रदेश के पासीघाट (74.6%) में पुरुष 105 और महिलाएं 103 प्रति लाख पाई गईं। केरल के कासरगोड (61.1%) में पुरुष 133 और महिलाएं 101, जबकि कोल्लम (55%) में पुरुष 191 और महिलाएं 166 प्रति लाख पहुंचे। सबसे गंभीर स्थिति पथानमथिट्टा (89%) में रही, जहां पुरुषों का सीआईआर 261 और महिलाओं का 209 दर्ज हुआ।
पूर्वोत्तर राज्यों में भी तस्वीर चिंताजनक है। असम के कछार जिले (81.8% ग्रामीण) में पुरुषों का सीआईआर 107 और महिलाओं का 97 रहा। मेघालय के ईस्ट खासी हिल्स (55.6%) में पुरुष 140 और महिलाएं 85 प्रति लाख दर्ज हुईं। उत्तर भारत भी इससे अछूता नहीं है। उत्तर प्रदेश के वाराणसी (56.6% ग्रामीण) में पुरुषों का सीआईआर 62 और महिलाओं का 52, जबकि प्रयागराज (75%) में पुरुष 52 और महिलाएं 49 दर्ज हुए। दरें भले ही दक्षिण और पूर्वोत्तर के जिलों जितनी ऊंची न हों, लेकिन यहां की बड़ी आबादी को देखते हुए यह चुनौती कम नहीं कही जा सकती।
अध्ययन के अनुसार, ग्रामीण रजिस्ट्री का विस्तार एनसीआरपी नेटवर्क के जरिए बढ़ा है, लेकिन कवरेज अभी भी सीमित है। फिर भी जो डेटा उपलब्ध है, वह यह दिखाता है कि ग्रामीण भारत में कैंसर के मामले केवल मौजूद नहीं, बल्कि कई जगहों पर उच्च स्तर पर हैं।
ज्यादा मामले ज्यादा स्क्रीनिंग, रिपोर्टिंग और करवेज का परिणाम भी हो सकते हैं।