गर्भवती हैं और खा रहीं हैं अधिक फैट-चीनी वाला खाना तो बच्चे को हो सकता है हृदय रोग व डायबिटीज

एक नया अध्ययन पहली बार इस जानकारी को सामने लाया है कि मां का मोटापा भ्रूण के हृदय में थायरॉयड हार्मोन को बदल देता है, जिससे उसका विकास रुक जाता है।
गर्भावस्था के दौरान अधिक वसायुक्त, शर्करायुक्त भोजन करने से अजन्मे बच्चे के वयस्क होने पर इनमें इंसुलिन की कमी होने की आशंका बढ़ जाती है, जिससे मधुमेह और हृदय संबंधी रोग हो सकते हैं।
गर्भावस्था के दौरान अधिक वसायुक्त, शर्करायुक्त भोजन करने से अजन्मे बच्चे के वयस्क होने पर इनमें इंसुलिन की कमी होने की आशंका बढ़ जाती है, जिससे मधुमेह और हृदय संबंधी रोग हो सकते हैं। फोटो साभार: आईस्टॉक
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मोटापे से ग्रस्त गर्भवती महिलाओं से पैदा होने वाले बच्चों में वयस्क होने पर हृदय संबंधी समस्याएं और मधुमेह या डायबिटीज होने के आसार अधिक होते हैं, क्योंकि उनकी मां के अधिक वसा व ऊर्जा वाले भोजन के कारण भ्रूण को नुकसान पहुंचता है।

जर्नल ऑफ फिजियोलॉजी में प्रकाशित एक नया अध्ययन पहली बार इस जानकारी को सामने लाया है कि मां का मोटापा भ्रूण के हृदय में थायरॉयड हार्मोन को बदल देता है, जिससे उसका विकास रुक जाता है।

गर्भावस्था के दौरान अधिक वसायुक्त, शर्करायुक्त भोजन करने से अजन्मे बच्चे के वयस्क होने पर इनमें इंसुलिन की कमी होने की आशंका बढ़ जाती है, जिससे मधुमेह और हृदय संबंधी रोग हो सकते हैं। यह तब है जब जन्म के समय बच्चे का वजन सामान्य होता है।

शोधकर्ताओं ने उच्च ऊर्जा वाला आहार खिलाए गए गर्भवती बबून के भ्रूणों के ऊतक के नमूनों का विश्लेषण करके इस संबंध की पहचान की। फिर उन्होंने इसकी तुलना नियंत्रित आहार दिए गए बबून के भ्रूणों से की।

शोधकर्ता ने शोध के हवाले से कहा कि बहुत अधिक वसा और चीनी से भरपूर अस्वास्थ्यकर भोजन तथा हृदय की समस्या के बीच स्पष्ट संबंध प्रदर्शित करते हैं।

इस बात पर लंबे समय से बहस चल रही है कि क्या अधिक वसा वाले आहार भ्रूण के हृदय में हाइपर या हाइपोथायरायड की स्थिति उत्पन्न करते हैं। साक्ष्यों से पता चलता है कि ऐसा जीवन में आगे चलकर हो सकता है।

शोधकर्ताओं ने पाया कि मां के बहुत अधिक वसायुक्त, ऊर्जा वाले भोजन से सक्रिय थायरॉयड हार्मोन टी3 की मात्रा कम हो जाती है, जो गर्भावस्था के अंतिम चरण में एक बटन की तरह काम करता है, जो भ्रूण के हृदय को जन्म के बाद जीवन के लिए तैयार होने के लिए कहता है। इसके बिना, भ्रूण का हृदय अलग तरह से विकसित होता है।

वसा और चीनी से भरपूर आहार इंसुलिन सिग्नलिंग में शामिल आणविक मार्गों और भ्रूण के हृदय में ग्लूकोज के अवशोषण में शामिल महत्वपूर्ण प्रोटीन को बदल सकता है। इससे हृदय संबंधी इंसुलिन प्रतिरोध का खतरा बढ़ जाता है, जो अक्सर वयस्क होने पर मधुमेह का कारण बनता है।

बच्चे अपने हृदय की सभी कोशिकाओं के साथ पैदा होते हैं। जन्म के बाद हृदय किसी भी तरह के नुकसान की मरम्मत के लिए पर्याप्त नई हृदय मांसपेशी कोशिकाएं नहीं बनाता है, इसलिए जन्म से पहले इन कोशिकाओं पर बुरा प्रभाव डालने वाले बदलाव जीवन भर बने रह सकते हैं।

ये स्थायी बदलाव बच्चों के किशोरावस्था और वयस्कता में पहुंचने पर हृदय के स्वास्थ्य में और गिरावट का कारण बन सकते हैं, जब हृदय बूढ़ा होने लगता है।

शोधकर्ता ने कहा यह अध्ययन गर्भावस्था से पहले मां के अच्छे पोषण के महत्व को दिखता है, न केवल मां के लिए बल्कि बच्चे के स्वास्थ्य के लिए भी।

शोधकर्ता ने शोध के हवाले से कहा, जन्म के समय सामान्य वजन वाले शिशुओं में हृदय संबंधी खराब परिणाम देखे गए हैं, यह एक ऐसा संकेत है जो भविष्य में चिकित्सा में मार्गदर्शन करेगा। इस प्रकार की गर्भावस्था से पैदा हुए सभी बच्चों पर कार्डियोमेटाबोलिक स्वास्थ्य की जांच की जानी चाहिए, न कि केवल उन शिशुओं पर जो बहुत छोटे या बहुत बड़े पैदा हुए हैं, जिसका लक्ष्य हृदय रोग के खतरों का पहले से ही पता लगाना भी है।

अगर बहुत अधिक वसा वाले मीठे भोजन की बढ़ती दरों पर गौर नहीं दिया गया, तो अधिक लोगों में मधुमेह और हृदय रोग जैसी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं जन्म लेंगी, जिसके कारण आने वाले दशकों में जीवन अवधि कम हो सकती है।

शोधकर्ता ने उम्मीद जताई है कि मोटापे के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले बुरे प्रभावों के बारे में अब हमारे पास जो जानकारी है, उसे अपनाने की जरूरत है।

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