आईसीएमआर ने भारत में निर्मित दुनिया के पहले पुरुष गर्भनिरोधक टीके को पाया सुरक्षित
दुनिया भर में लगातार जनसंख्या बढ़ रही है, भविष्य में भी इसी तरह आबादी बढ़ती रही तो सभी की जरूरतों को पूरा करना कठिन हो जाएगा। इसलिए जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए गर्भनिरोधकों की भारी जरूरत है।
हालांकि, गर्भनिरोधक के विकल्प के रूप में पुरुष नसबंदी के काफी असरदार होने के बावजूद, इस तरीके से जुड़ी कई खामियों के कारण, अधिक कुशल तकनीकों को खोजने की जरूरत है।
कैसे हों पुरुष गर्भनिरोधक?
पुरुष गर्भनिरोधक के लिए एक सही विधि के रूप में टीका सहित कम से कम प्रयास वाले दवा वितरण प्रणाली की सुविधा होनी चाहिए, जिसके शरीर पर किसी तरह के कोई दुष्प्रभाव न हो। साथ ही यह लंबे समय तक असरदार हो और यह आबादी को नियंत्रित करने में कारगर हो।
इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने दुनिया के पहले पुरुषों को लगाई जाने वाली गर्भनिरोधक टीके, "रिवर्सेबल इनहिबिशन ऑफ स्पर्म अंडर गाइडेंस" (आरआईएसयूजी) पर अपना नैदानिक परीक्षण पूरा कर लिया है। इस टीके को पुरुष गर्भनिरोधक विधि के रूप में डिजाइन किया गया है।
अध्ययन ने अब साबित कर दिया है कि, यह नया पुरुष गर्भनिरोधक नजरिया बिना किसी गंभीर दुष्प्रभाव के सुरक्षित और अत्यधिक असरकारक है।
क्या है रिवर्सेबल इनहिबिशन ऑफ स्पर्म अंडर गाइडेंस (आरआईएसयूजी)?
आरआईएसयूजी एक नई पुरुष गर्भनिरोधक तकनीक है, कई सालों के अथक प्रयास के बाद इसे विकसित किया गया है। अध्ययन के मुताबिक, आरआईएसयूजी का विकास 1970 के दशक में हुआ जब एक भारतीय वैज्ञानिक डॉ. सुजॉय के. गुहा ने एक पुरुष गर्भनिरोधक विधि पर शोध करना शुरू किया।
डॉ. गुहा और उनकी टीम ने स्टाइरीन मैलिक एनहाइड्राइड (एसएमए) नामक एक पॉलिमर जेल विकसित किया है, जिसे वास डेफेरेंस में इंजेक्ट किया जाता है, जहां यह शुक्राणु को स्थिर और क्षतिग्रस्त करके गर्भनिरोधक के रूप में कार्य करता है।
भारत में आरआईएसयूजी पर नैदानिक परीक्षण और शोध कई दशकों से चल रहे हैं, लेकिन इसकी प्रगति धीमी रही है और इसे विभिन्न नियामक और वित्त संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।
क्लिनिकल परीक्षण
तीसरे चरण के क्लिनिकल परीक्षण में 25 से 40 वर्ष की आयु के 303 लोग शामिल थे, इसके निष्कर्ष अंतरराष्ट्रीय ओपन एक्सेस एंड्रोलॉजी जर्नल में प्रकाशित किए गए हैं।
खुले तौर पर तथा बिना-यादृच्छिक, अनेक केंद्रों में अस्पताल-आधारित तीसरे चरण के क्लिनिकल या नैदानिक परीक्षण पांच अलग-अलग केंद्रों, जिसमें नई दिल्ली, उधमपुर, लुधियाना, जयपुर और खड़गपुर शामिल थे, इसकी अगुवाई नई दिल्ली के आईसीएमआर द्वारा की गई।
तीसरे चरण के क्लिनिकल परीक्षण आयोजित करने की अनुमति ड्रग्स कंट्रोलर जनरल इंडिया (डीसीजीआई) द्वारा दी गई थी और संबंधित केंद्रों की संस्थागत नैतिक समितियों द्वारा अनुमोदित की गई थी।
अध्ययन में, 303 स्वस्थ, यौन रूप से सक्रिय, विवाहित पुरुषों और उनकी स्वस्थ, यौन रूप से सक्रिय पत्नियों को शामिल किया गया था, जो पुरुष नसबंदी या नो स्केलपेल पुरुष नसबंदी (एनएसवी) के लिए परिवार नियोजन क्लिनिक और यूरोलॉजी विभाग में आए थे।
पुरुषों को निगरानी के तहत 60 मिलीग्राम रिवर्सेबल इनहिबिशन ऑफ स्पर्म (आरआईएसयूजी) का इंजेक्शन लगाया गया।
अध्ययन में कहा गया है, बिना किसी गंभीर दुष्प्रभाव के एजुस्पर्मिया हासिल करने के संबंध में आरआईएसयूजी की समग्र प्रभावकारिता 97.3 प्रतिशत थी और गर्भावस्था की रोकथाम के आधार पर 99.02 प्रतिशत थी।
अध्ययन में आगे कहा गया है कि, गर्भनिरोधक विकास के इतिहास में, आरआईएसयूजी अन्य सभी गर्भ निरोधकों पुरुष और महिला दोनों की तुलना में सबसे अधिक प्रभावशाली है, तथा यह सामूहिक गर्भनिरोधक कार्यक्रम में शामिल होने की दहलीज पर है।
कैसे रहे रिवर्सेबल इनहिबिशन ऑफ स्पर्म अंडर गाइडेंस (आरआईएसयूजी) के परिणाम?
अध्ययन में कहा गया है कि, तीसरे चरण के क्लिनिकल परीक्षण में सभी भाग लेने वाले केंद्रों से एकत्र किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि, सभी प्रमुख धर्मों, यानी, हिंदू, मुस्लिम और सिख और सभी प्रमुख जाति के लोगों द्वारा आरआईएसयूजी नामक टीके को स्वीकार कर लिया गया है।
अध्ययन के मुताबिक, इन विषयों के नैदानिक मूल्यांकन पर कोई प्रतिकूल दुष्प्रभाव नहीं बताया गया या देखा गया, यहां तक कि रिसग इंजेक्शन के सात साल बाद तक भी नहीं देखा गया।
अध्ययन में कहा गया है कि, आरआईएसयूजी इंजेक्शन के सात साल बाद तक हेमोग्राम, लिवर फंक्शन टेस्ट, किडनी फंक्शन टेस्ट, ब्लड शुगर, विषयों की मूत्र जांच से संबंधित किसी भी पैरामीटर में कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं देखा गया।
आंकड़ों से पता चलता है कि 92.7 प्रतिशत प्रतिभागियों में इंजेक्शन के 2.5 महीने बाद एज़ोस्पर्मिया हो गया और छठे महीने में यह बढ़कर 97.2 प्रतिशत हो गया। इसके बाद रिसुग इंजेक्शन के बाद की अनुवर्ती यात्राओं के दौरान यह उच्चतम स्तर (97.3 प्रतिशत) पर पहुंच गया।
अध्ययन में आगे कहा गया है कि विधि की असफल होने की दर 1.2 प्रतिशत थी, जिसमें दवा आरआईएसयूजी की कुल विफलता 2.7 प्रतिशत थी। इसलिए, आरआईएसयूजी दवा की सम्पूर्ण गर्भनिरोधक प्रभावकारिता 97.3 प्रतिशत थी।
हालांकि, गर्भावस्था को रोकने के मामले में आरआईएसयूजी दवा की प्रभावकारिता 99.02 प्रतिशत है। परीक्षण के दौरान प्रत्येक वैस डेफेरेंस में आरआईएसयूजी की 120 म्यू की एक मानक खुराक दी जाती है, जो वैस डेफेरेंस के लुमेन व्यास और वैस डेफेरेंस के समग्र आकार में परिवर्तनशीलता को कवर करती है।
अध्ययन के निष्कर्षों से यह भी पता चलता है कि आरआईएसयूजी के असर के बाद चिकित्सा सहायता की आवश्यकता बहुत कम ही सामने आती है। टीके से पहले और टीके के तुरंत बाद उचित परामर्श के साथ, आने वाली किसी भी समस्या का स्वयं ही ध्यान रखा जा सकता है। इसलिए, आरआईएसयूजी की शुरूआत से परिवार कल्याण कार्यक्रम में जनशक्ति की आवश्यकताओं में बहुत अधिक वृद्धि नहीं होगी।
इसमें कहा गया है कि आखरी तीसरे चरण के क्लिनिकल परीक्षण के आंकड़ों की समीक्षा स्पष्ट रूप से पुष्टि करती है कि आरआईएसयूजी एक सुरक्षित और अत्यधिक प्रभावी गैर-हार्मोनल, पुरुषों में गर्भनिरोधक के लिए एक बार लगाया जाने वाला टीका है, जिसमें सामूहिक परिवार कल्याण कार्यक्रम में शामिल होने के लिए सभी जरूरी विशेषताएं हैं।