देश के 15 जिलों की जमीनी पड़ताल-8: केरल, आंध्र व ओडिशा में कैसे थे हालात

कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान ग्रामीण इलाकों में हालात बहुत बिगड़ गए थे
कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान ओडिशा में जांच कराते लोग।
कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान ओडिशा में जांच कराते लोग।
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डाउन टू अर्थ ने कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान देश के सबसे अधिक प्रभावित 15 जिलों की जमीनी पड़ताल की और लंबी रिपोर्ट तैयार की। इस रिपोर्ट को अलग-अलग कड़ियों में प्रकाशित किया जा रहा है। पहली कड़ी में आपने पढ़ा कि कैसे 15 जिले के गांव दूसरी लहर की चपेट में आए। दूसरी लहर में आपने पढ़ा अरुणाचल प्रदेश के सबसे प्रभावित जिले का हाल। तीसरी कड़ी में आपने पढ़ा, हिमाचल के लाहौल स्पीति की जमीनी पड़ताल।  चौथी कड़ी में आपने पढ़ा, दूसरी लहर के दौरान गुजरात में कैसे रहे हालात । इसके बाद आपने उत्तराखंड से अरविंद मुदगिल व दीपांकर ढोंढियाल और मध्य प्रदेश से राकेश कुमार मालवीय की रिपोर्ट पढ़ी। इसके बाद आपने पढ़ा, दूसरी लहर के दौरान बिहार और झारखंड में कैसे थे हालात । इसके आगे आपने पढ़ा, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान के सबसे अधिक प्रभावित जिलों की हालत। आज पढ़ें, अंतिम कड़ी-

 केरल

पूर्व की ओर बहने वाली भवानी नदी मई के तीसरे सप्ताह के दौरान ताउते चक्रवात की वजह से हुई भारी बारिश के कारण उफान पर थी। लेकिन यह परेशानी 40 वर्षीय चिकित्सा अधिकारी के ए सुकन्या को पलक्कड़ जिले के आदिवासी बहुल क्षेत्र अट्टापडी में एक कोविड-19 प्रभावित वन गांव तक पहुंचने के लिए नदी पार करने और लगभग 17 किमी तक ट्रेकिंग करने से नहीं रोक पाई। सुकन्या के साथ स्वास्थ्य निरीक्षक सुनील वासु, कनिष्ठ स्वास्थ्य निरीक्षक शाजू और उसका चालक सजेश भी था। उनका गंतव्य पूरे केरल और तमिलनाडु में फैले पश्चिमी घाट के जंगलों के अंदर स्थित मुरुगला आदिवासी बस्ती था। बारिश और नदी में आई बाढ़ के कारण अलग थलग पड़े 40 परिवारों के इस गांव में लोग डरे हुए हैं। उनमें से कई में कोविड के लक्षण देखे गए हैं।

डाउन टू अर्थ को सुकन्या ने बताया, “पूरी यात्रा थकाऊ थी क्योंकि गांव तक कोई सड़क नहीं थी और इलाका बीहड़ था। हमारी एम्बुलेंस कुल 30 किमी दूरी में से केवल 13 किमी ही जा पाई। बस्ती के निवासियों में से सात लोगों में कोविड के लक्षण देखे जा सकते थे और हमने बड़ी मुश्किल से उन्हें इलाज के लिए तैयार किया। वे बाद में पॉजिटिव पाए गए और अभी उनकी मोनिटरींग चल रही है।

32,956 की आबादी के साथ अट्टापडी केरल के सबसे पिछड़े क्षेत्रों में से एक है। हालांकि, तमिलनाडु के कोयंबटूर जिले के साथ सीमा साझा करने वाला ग्रामीण इलाका उन ग्रामीण क्षेत्रों में से एक है, जहां दूसरी लहर में महामारी का तेजी से प्रसार देखा गया। अट्टापडी के नोडल स्वास्थ्य अधिकारी आर प्रभुदास का कहना है कि स्वास्थ्य विभाग दूसरी लहर को ध्यान में रखते हुए दूरस्थ आदिवासी बस्तियों तक पहुंचने के लिए अतिरिक्त प्रयास कर रहा है। फिर भी, उनमें से कई ऐसे हैं जो दुर्गम हैं। प्रभुदास बताते हैं, “इन दूरस्थ वन गांवों में कोविड से संबंधित जागरूकता पहुंचने की सीमाएं हैं। अधिकांश लोग कोविड-19 प्रोटोकॉल का पालन करने से इनकार करते हैं। चूंकि इन गांवों में कोयंबटूर के लिए कई वन मार्ग हैं, इसलिए वे अन्य क्षेत्रों में लोगों के साथ स्वतंत्र रूप से घुलमिल जाते हैं जहां पहले से ही संक्रमण अधिक है।” पलक्कड़ में नेल्लियमपथी और परम्बिकुलम जैसे अन्य आदिवासी बस्तियों का भी यही हाल है।

हालांकि सुकन्या और उनकी टीम द्वारा किया यह जोखिम भरा काम सोशल मीडिया पर चर्चा का एक प्रमुख विषय बना और केरल की नई स्वास्थ्य मंत्री वीना जॉर्ज ने उन्हें टेलीफोन पर बधाई दी, लेकिन पलक्कड़ की तैयारी कोविड-19 की दूसरी लहर के सामने निराशाजनक बनी हुई है। 30 मई को, कोट्टाथारा में सरकारी जनजातीय विशेषता अस्पताल के कोविड -19 नोडल अधिकारी एसआर रजनीश ने अस्पताल के अधीक्षक को एक पत्र लिखकर बताया कि मानव संसाधन और उपकरणों की भारी कमी है। जिले भर में अकेले 30 मई को 60 आदिवासी कोविड पॉजिटिव पाए गए।

रजनीश ने बताया, “अक्सर, हमें 11 रोगियों की क्षमता वाली पूरी गहन चिकित्सा इकाई (आईसीयू) केवल एक नर्स के सहारे चलानी पड़ती है। ऐसी स्थिति देखभाल की गुणवत्ता को गंभीरता से प्रभावित करेगी। हमें ड्यूटी पर कम से कम चार स्टाफ नर्स और इतने ही सपोर्ट स्टाफ की जरूरत है।” उन्होंने वेंटिलेटर बेड को मौजूदा चार से बढ़ाकर 10 करने की भी मांग की है। वह कहते हैं, “जब हम वेंटिलेटर बेड को 10 तक बढ़ाते हैं, तो आईसीयू के सुचारू कामकाज के लिए एक समय में कम से कम आठ स्टाफ नर्स और संबंधित सहायक कर्मचारी होने चाहिए।”

रजनीश ने ऑक्सीजन क्षमता बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर डाला। वह कहते हैं, “वर्तमान में हमारे पास पांच मल्टीपारा मॉनिटर हैं। हमें आठ और चाहिए। जैसा कि जिला कलेक्टर के साथ एक बैठक में हमने बताया, हमें तत्काल 1 टन क्षमता के तरल चिकित्सा ऑक्सीजन संयंत्र की आवश्यकता है। इतनी आक्सिजन एक बार में तीन से चार वेंटिलेटर चलाने के लिए भी पर्याप्त नहीं है।”

पर्याप्त स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे के अभाव में, जिला प्रशासन ने लोगों को महामारी की आगामी लहरों से अवगत कराने के लिए 500 प्रशिक्षित स्वयंसेवकों की प्रतिनियुक्ति की है।

जिला कलेक्टर मृण्मई जोशी कहती हैं, “एक सरकारी मेडिकल कॉलेज अस्पताल और एक जिला अस्पताल में कोविड उपचार सुविधाएं स्थापित की गई हैं। सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं के लाभार्थियों, विशेष रूप से आदिवासी समुदायों और ग्रामीण गरीबों का इलाज सुनिश्चित करने के लिए अधिकारियों ने कई निजी अस्पतालों को सूचीबद्ध किया है।”

राज्य सरकार ने पहले ही सभी को कोविड -19 टीके मुफ्त उपलब्ध कराने की घोषणा की है और वैक्सीन खरीद के लिए 1,000 करोड़ रुपए मंजूर किए हैं। राज्य के सामाजिक सुरक्षा मिशन निदेशक मोहम्मद अशील के अनुसार सरकार दूसरी लहर से निपटने के लिए ग्रामीण अस्पतालों की क्षमता बढ़ाने के साथ-साथ आईसीयू बेड, वेंटिलेटर ऑक्सीजन आपूर्ति पर ध्यान दे रही है। अशील बताते हैं, “राज्य में 0.38 मिलियन सामुदायिक स्वयंसेवक हैं जो कोविड -19 के खिलाफ इस लड़ाई में सरकार की मदद कर रहे हैं। महामारी की शुरुआत में एक परीक्षण केंद्र था और अब ऐसे 2,667 केंद्र हैं। विभिन्न अस्पतालों में इलाज की लागत में निष्पक्षता लाने के लिए निजी अस्पतालों में कोविड -19 रोगियों के लिए एक उपचार पैकेज भी घोषित किया गया था।”

हालांकि राज्य में अब तक कोविड -19 के 2.3 मिलियन से अधिक मामले सामने आए हैं, लेकिन केरल ने मौतों की संख्या को 6,000 तक रोकने में कामयाबी हासिल की है। 30 मई को, मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने कहा कि पिछले तीन हफ्तों के दौरान सक्रिय मामलों की संख्या में काफी गिरावट आई है। लेकिन साथ ही साथ उन्होंने यह भी कहा कि संक्रमण दर और नीचे लाने के लिए लॉकडाउन की आवश्यकता है।

आंध्र प्रदेश

अनंतपुर के राप्टाडु मंडल के गोंगिरेड्डीपल्ले गांव के एक फल किसान सी राम मोहन रेड्डी के चेहरे पर अनिश्चितता और चिंता व्याप्त है। अपने 3.2 हेक्टेयर के खेत में, वह 1.2 हेक्टेयर में केले, 0.4 हेक्टेयर में अंगूर और शेष पर अनार और नींबू उगाते हैं। कोविड-19 की वजह से बार-बार लगाए गए लॉकडाउन के कारण पिछले दो वर्षों से वह अपनी फसलों से कमाई नहीं कर पा रहे हैं। इस साल मई में बेमौसम बारिश और तेज हवाओं ने उनकी हालात और खराब कर दी।

उनका कहना है कि आंध्र प्रदेश में दोपहर 12 बजे से सुबह 6 बजे तक के 18 घंटे के लॉकडाउन के कारण उनकी केले की फसल की दर अत्यधिक गिर गई है। वे बताते हैं, “व्यापारी अब किसी भी कीमत पर फसल लेने को तैयार नहीं हैं। चूंकि दुकानें काफी कम समय के लिए खुलती हैं इसलिए वे ऐसे जल्दी खराब होने वाली फसलें नहीं खरीदना चाहते। मुझे एक टन केले के लिए केवल 2000 रुपए मिल रहे हैं जबकि इसकी सही कीमत 15 से 16 हजार होनी चाहिए।” पिछले साल लॉकडाउन के दौरान इसी तरह के नुकसान का सामना करने के बाद, रेड्डी ने अपने खर्चों को पूरा करने के लिए 2 लाख रुपए उधार लिए थे। इस बार उन्होंने अकेले केले की फसल पर 3 लाख रुपए का निवेश किया है और अब तक 1 लाख रुपए ही कमा पाए हैं। रेड्डी बताते हैं कि वे अपनी पूरी फसल को नष्ट करने की सोच रहे हैं।

ऐसा ही मामला कनागनपल्ली गांव के मिर्च किसान वी चेन्नप्पा का है। वह बताते हैं, “हरी मिर्च की अच्छी फसल के लिए भारी निवेश की आवश्यकता होती है। चूंकि व्यापारी इसकी आधी कीमत दे रहे हैं, इसलिए मैंने कुछ समय के लिए जमीन को परती छोड़ने का फैसला किया है। इसके बजाय, मैं कर्नाटक में उगाई जाने वाली लाल मिर्च की एक नई किस्म की खेती करने की योजना बना रहा हूं, जिसे सुखाया और संग्रहीत किया जा सकता है और इस तरह जब भी बाजार उपयुक्त हो, बेचा जा सकता है।” उनके शब्द आशा की उस अदम्य भावना को दर्शाते हैं जो किसानों को विपरीत परिस्थितियों का सामना करने के लिए प्रेरित करती है।

महामारी के दौरान किसानों को अच्छी कीमत दिलाने वाली एकमात्र फसल मौसम्बी है, जो 1,10,000 रुपये प्रति टन के हिसाब से बिकती है। गरलादिने मंडल के मुकुंदपुरम गांव के एम बी रामुडु कहते हैं, “मुझे अपने जीवन में मौसम्बी की इतनी अच्छी कीमत कभी नहीं मिली।” “मैंने शुरू में अपनी फसल की पहली किश्त 62,000 रुपये प्रति टन के हिसाब से बेची। फिर यह दर दर तेजी से बढ़कर 1,10,000 रुपये हो गई। मेरे पास अभी भी 30 टन फसल कटाई के लिए तैयार है।” हालांकि हाल ही में हुई भारी बारिश और आंधी के दौरान रामुडू के खेत के कुछ पौधे नष्ट हो गए हैं, लेकिन वह नुकसान की भरपाई के लिए आश्वस्त हैं। वे कहते हैं, “महामारी के दौरान खट्टे फल उच्च मांग में हैं क्योंकि वे प्रतिरक्षा को बढ़ावा देने में मदद करते हैं”।

यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोविड-19 नियंत्रण में रहे, जिला प्रशासन हर तीन दिन में बुखार का सर्वेक्षण कर रहा है। जिला चिकित्सा स्वास्थ्य अधिकारी वाई कामेश्वर प्रसाद कहते हैं, “लक्षणों वाले व्यक्तियों के लिए संस्थागत अलगाव केंद्र स्थापित किए गए हैं।” प्रसाद कहते हैं, “होम आइसोलेशन में लोगों की निगरानी के लिए हमारी एएनएम कार्यकर्ताओं को थर्मामीटर, पल्स ऑक्सीमीटर और होम आइसोलेशन किट दिए गए हैं। अस्पतालों में हमने ऑक्सीजन बेड की संख्या तीन से चार गुना बढ़ा दी है, 150 वेंटिलेटर और बेड बढ़ाए हैं। हम अब किसी भी घटना के लिए तैयार हैं।”

ओडिशा 

अंगुल एक ऐसा जिला है जहां खनन, औद्योगिक और कृषि गतिविधियां एक साथ चलती हैं, वहां महामारी की दूसरी लहर की शुरुआत में 1 अप्रैल को कोविड-19 के 23 मामले दर्ज किए गए थे। मई के अंतिम सप्ताह तक जिले में 778 मामले दर्ज किए गए थे, जो राज्य में सबसे अधिक थे। इस तरह की तेज वृद्धि उस राज्य के लिए अभूतपूर्व है जो पहली लहर के समय रहे कोविड-19 महामारी के खिलाफ भारत की लड़ाई में सबसे आगे था।

जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी त्रिलोचन प्रधान कहते हैं, “सभी कोविड-19 प्रोटोकॉल को ताक पर रखकर किए जा रहे सामाजिक समारोह ग्रामीण अंगुल में संक्रमण के बढ़ने का मुख्य कारण हैं।” अंगुल प्रखंड का तैंसी गांव, जहां संकमान काफी अधिक हैं, वहां के निवासी पूर्ण चंद्र साहू कहते हैं,“पिछले साल के विपरीत, इस बार ग्राम पंचायतों द्वारा कोई सख्त संगरोध उपाय नहीं किए गए थे। पंचायतों द्वारा कोविड केयर सेंटर भी स्थापित नहीं किए गए। इसलिए दूसरी लहर के कारण या व्यवसाय बंद होने के कारण घर लौटे अनौपचारिक श्रमिकों को आइसोलेट होकर रहने के लिए नहीं कहा गया। इससे संक्रमण फैल गया।”

गैर-लाभकारी संस्था फाउंडेशन ऑफ इकोलॉजिकल सिक्योरिटी की टीम लीडर स्वप्ना सारंगी कहती हैं, ग्रामीण इलाकों में होम आइसोलेशन सिस्टम पूरी तरह से विफल हो गया है, क्योंकि परिवार अपेक्षाकृत बड़े हैं और घरों में कुछ ही कमरे हैं।

आधिकारिक क्वारंटाइन सेंटर संक्रमित मरीजों को अलग-थलग करके संक्रमण की शृंखला तोड़ने का सबसे अच्छा तरीका है। लेकिन इस बार माइक्रो कंटेनमेंट पर्याप्त रूप से नहीं किया गया। सारंगी कहती हैं कि यह औद्योगिक रूप से समृद्ध इलाका संक्रमण दर में आई उछाल को संभालने में अक्षम है। सेवाओं में लापरवाही के विरोध में कोविड-19 मरीजों को तालचर अस्पताल में धरने पर भी बैठना पड़ा ।

ग्रामीण अंगुल में कोविड-19 प्रबंधन और भी मुश्किल हो गया क्योंकि जिले में प्रखंड विकास अधिकारियों के आठ स्वीकृत पदों में से आधे पद खाली हैं। प्रशासन ने संक्रमण दर में आई उछाल को काबू करने के लिए अपने प्रयास तेज तो किये लेकिन दूसरी लहर के लगभग दो महीने बाद। मई के अंत में जिला मुख्यालयों में कोविड टेस्ट हेतु आरटी-पीसीआर प्रयोगशालाएँ स्थापित की गईं। तालचर में 10 वेंटिलेटर, 20 उच्च निर्भरता इकाइयों और 90 सामान्य बिस्तरों के साथ 120-बेड वाले डेडिकेटेड कोविड अस्पताल को 30 अप्रैल को ही चालू किया जा सका था। 3 मई को कर्मचारी राज्य बीमा (ईएसआई) अस्पताल, बनारपाल के परिसर में 66 बेड का डीसीएच स्थापित किया गया है। आशा और आंगनबाडी कार्यकर्ताओं ने भी घर-घर जाकर सर्वे करना शुरू कर दिया है। जिला कलेक्टर सिद्धार्थ शंकर स्वैन कहते हैं, “हमने सभी ब्लॉकों में अपनी तरह की पहली आपातकालीन कोविड-19 ऑटो एम्बुलेंस सेवा शुरू की है, ताकि गंभीर लक्षण वाले व्यक्ति जल्द से जल्द चिकित्सा सुविधाओं तक पहुंच सकें।”

राज्य भर में, सरकार ने महामारी के प्रबंधन में उनके योगदान के लिए आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के लिए प्रोत्साहन की घोषणा करने का निर्णय लिया है। इसके अलावा 786 डॉक्टरों और 5,137 पैरामेडिक्स और ग्राम कल्याण समितियों की भी स्थापना की है। मनरेगा कार्यों का दायरा भी बढ़ाया गया है। लेकिन असामयिक भुगतान ने अनौपचारिक श्रमिकों की सभी आशाओं को धराशायी कर दिया है और वे शहरों और कस्बों में लौटने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं। 

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