भविष्य में कितना प्रभावी रहेगा “राइट टू हैल्थ”

राजस्थान सरकार ने केंद्र सरकार को राइट टू हेल्थ को संविधान के मूल अधिकारों में शामिल करने का सुझाव दिया है
भविष्य में कितना प्रभावी रहेगा “राइट टू हैल्थ”
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“राईट टू हैल्थ” यानी हर नागरिक के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी सरकार की होगी। देश या राज्य के सभी नागरिकों के स्वास्थ्य के लिए पहली बार राजस्थान की राज्य सरकार ने यह महत्पूर्ण कदम उठाने का निर्णय लिया है। इस संबंध में राजस्थान के मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार को “राइट टू हेल्थ” को संविधान के मूल अधिकारों में शामिल करने का सुझाव दिया है।

वहीं राज्य सरकार ने कहा कि वे शीघ्र ही राज्य विधानसभा में राइट टू हेल्थ विधेयक लाने जा रहे हैं। मिली जानकारी के अनुसार इस विधेयक का प्रारंभिक ड्राफ्ट तैयार कर लिया गया है। इस विधेयक में स्वास्थ्य के अधिकार के साथ-साथ विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा सुझाए गए निवारक, प्राथमिक एवं उपचारात्मक देखभाल के उपाय भी शामिल किए गए हैं।

यदि नागरिकों के मौलिक अध‍िकार की बात करें तो भारत के संविधान का अनुच्छेद-21 में जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की गारंटी दी गई है, वहीं संविधान में स्वास्थ्य का अधिकार “गरिमायुक्त जीवन के अधिकार” के अंर्तगत रखा गया है। यहीं नहीं राज्य सरकार को भी संविधान के अनुच्छेद 38, 39, 42, 43 और 47 ने स्वास्थ्य के अधिकार की प्रभावपूर्ण पहुंच सुनिश्चित करने के लिए दिशा-निर्देश दिए गए हैं।  

हालांकि यदि राजस्थान सरकार के इस संबंध में विगत में दिए गए बयानों को देखें तो इस प्रकार का पहला बयान राज्य सरकार की तरफ से अक्टूबर, 2019 में राज्य के स्वास्थ्य मंत्री ने दिया था।

उनका कहना था कि राजस्थान देश का ऐसा पहला प्रदेश होगा जो राइट टू हेल्थ का कानून लेकर आ रहा है। तब कहा गया था कि विधानसभा के अगले सत्र में ही यह कानून पारित करवा लेंगे। इसके बाद प्रदेश किसी भी व्यक्ति को कोई भी गंभीर बीमारी हेाती है तो उसका अधिकार होगा कि उसे सारी स्वास्थ्य सुविधाएं सरकार की ओर से मिलें।

लेकिन उसके बाद से इस संबंध में राज्य सरकार की ओर से कोई कदम नहीं उठाया गया। अब एक बार फिर से राज्य के मुख्यमंत्री ने इस संबंध में दावा किया है कि हम “राइट टू हैल्थ” विधेयक लाएंगे। यदि राजस्थान राइट टू हेल्थ बिल विधेयक लाता है तो इस प्रकार का विधेयक लाने वाला वह देश का पहला राज्य बन जाएगा।

वर्तमान में राजस्थान राज्य सरकार सभी नागरिकों तक स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए “मुख्यमंत्री स्वास्थ्य चिरंजीवी योजना” योजना चला रही है। यह योजना सरकार के गठन के बाद ही शुरू कर दी गई थी। चालू योजना के अंतर्गत राज्य की ओर से प्रत्येक परिवार को पांच लाख रुपए तक का वार्षिक चिकित्सा बीमा प्रदान किया गया है।

इस संबंध में भारतीय स्वास्थ्य प्रबंधन अनुसंधान संस्थान ने मरीजों के अधिकारों के साथ-साथ सेवा प्रदाताओं के लिए भी राज्य में उपलब्ध संसाधनों के अनुसार मानकों की स्थापना की सिफारिश की है। यदि राजस्थान में राइट टू हेल्थ विधेयक पास होता तो निश्चिततौर पर बड़ी संख्या में लोगों को सुविधाएं मिलेंगी।

मिली जानकारी के अनुसार विधेयक में यह व्यवस्था की गई है कि राज्य के किसी भी ट्रामा सेंटर्स में इलाज मुफ्त होगा और इसके अलावा प्राइवेट अस्पतालों में ट्रामा सेंटर्स में भी नि:शुल्क इलाज हर नागरिक का होगा। साथ ही बुनियादी स्तर पर भी स्वास्थ्य सुविधाओं से किसी भी नागरिक को वंचित नहीं रखा जाएगा।

वर्तमान में देखा जाए तो देश में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं में भारी कमी देखी गई है। देश में मौजूदा सार्वजनिक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल का दायरा अभी भी बहुत अधिक सीमित है।

वर्तमान सुविधाओं पर यदि नजर दौड़ाई जाए तो देशभर में चल रहे सार्वजनिक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में वर्तमान में केवल गर्भावस्था देखभाल, चाइल्ड केयर और राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों से संबंधित कुछ सेवाएं ही प्रदान की जाती हैं। ध्यान रहे कि  भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य निधि पर व्यय सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 1.3 प्रतिशत है, जो कि काफी कम है।

यही नहीं चूंकि भारत संयुक्त राष्ट्र द्वारा सार्वभौमिक अधिकारों की घोषणा (1948) के अनुच्छेद-25 में हस्ताक्षर किया हुआ है। इस घोषणा के अनुसार भोजन, कपड़े, आवास, चिकित्सा देखभाल और अन्य आवश्यक सामाजिक सेवाओं के माध्यम से मनुष्यों को स्वास्थ्य कल्याण के लिये पर्याप्त जीवन स्तर का अधिकार देता है।

देश के अन्य राज्यों में नियमित स्वास्थ्य सेवाओं के अलावा विशेष स्वास्थ्य सुविधाओं के बारे में देखा जाए तो दिल्ली के स्वास्थ्य मॉडल की काफी चर्चा है। दिल्ली में नई सत्ता संभालने के बाद से आप सरकार ने दिल्ली में अब तक करीब 500 मोहल्ला क्लीनिक खोले हैं।

इससे लोगों को घर के नजदीक छोटी-छोटी बीमारियों का इलाज हो पा रहा है और नि:शुल्क दवाएं उपलब्ध हो रही हैं। यह दिल्ली सरकार की सबसे महत्वाकांक्षी परियोजना है। दिल्ली सरकार के इस मोहल्ला क्लीनिक ने प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं को नया माडल दिया है।

इन मोहल्ला क्लिनिक के संबंध में स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय ने वर्ष 2019-20 की अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा है कि करीब 500 मोहल्ला क्लीनिकों की ओपीडी में प्रति माह करीब 8 लाख 22 हजार मरीजों को देखा जाता है। इन मरीज को नि:शुल्क दवाएं उपलब्ध कराई जाती हैं।

इस हिसाब से एक मोहल्ला क्लीनिक में प्रतिदिन 54 से 55 मरीज व 500 मोहल्ला क्लीनिक में प्रतिदिन करीब 27,400 मरीज देखे जाते हैं। इसके अलावा इन मोहल्ला क्लीनिक में 212 तरह की नि:शुल्क जांच की सुविधाएं भी उपलब्ध हैं। इस स्वास्थ्य सेवा को संयुक्त राष्ट संघ के पूर्व महासचिव कोफी अन्नान से लेकर मेडिकल जर्नल लांसेंट ने भी तारीफ की है।

इसकी सफलता देखकर दिल्ली सरकार अब एक हजार मोहल्ला क्लीनिक खोलने की योजना बना रही है। ध्यान रहे कि केंद्र सरकार की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में कहा गया है कि स्वास्थ्य पर सार्वजनिक वित्त को जीडीपी के कम-से-कम 2.5 प्रतिशत तक बढ़ाया जाने की जरूरत है। 

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