कोरोनोवायरस के संकट से कैसे निपट रहा है जर्मनी?

जर्मनी की अपेक्षाकृत कम मृत्यु दर के लिए ठोस और सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित जर्मन स्वास्थ्य प्रणाली को भी श्रेय दिया जाता है
Credit: Marco Verch/Flickr
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क्लॉस डब्ल्यू लॉरेस

काम के लिए की गई जर्मनी की एक हालिया यात्रा 1 सप्ताह से बढ़ कर 3 सप्ताह की हो गई और इन्हीं सप्ताहों में जर्मनी के साथ ही साथ पूरे यूरोप में कोरोनावायरस का प्रसार हुआ। इस प्रवास के दौरान मैंने देखा कि पूरी जर्मन आबादी सदमे की स्थिति में है और अभी भी यह समझ नहीं पाई है कि उनके जीवन में अचानक यह बदलाव कैसे आया।

करीब एक-दो सप्ताह पहले तक उस उभरते संकट, जो झूठ और काफी दूर मालूम होता था, के बावजूद जीवन सामान्य तरीके से आगे बढ़ रहा था। मैं अब संयुक्त राज्य में अपने घर वापस आ गया हूं। इतिहास और अंतर्राष्ट्रीय मामलों के विद्वान के रूप में मेरे नजरिए के मुताबिक अभी जर्मनी में जो हो रहा है, वह एक महामारी के लिए तैयारी और प्रबंधन के सबक के साथ ही जर्मनी और संयुक्त राज्य के बीच खराब स्थिति के प्रतिबिंब, दोनों के रूप में उल्लेखनीय है।

बढ़े हुए संक्रमण, कम मृत्यु दर

अब तक जर्मनी में COVID-19 के लगभग 65,000 मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें उत्तर-राइन वेस्टफेलिया की आबादी वाला राज्य और हैम्बर्ग शहर विशेष रूप से बुरी तरह से प्रभावित हैं। देश में अब तक कुल 600 मौतें वायरस से हुई हैं।

उदाहरण के लिए अगर इटली और स्पेन से तुलना करते हैं, जहां संक्रमण और मृत्यु दर बहुत अधिक है। हाल ही में इटली में 1 दिन में लगभग 1000 और स्पेन में 800 मौतें वायरस के कारण हुईं हैं (इटली में अब तक लगभग 11,000 और स्पेन में अब तक 7000 मौतें हो चुकी हैं)।

इसकी वजह काफी हद तक अलग-अलग संवेदनशीलता स्तर है। इन सभी देशों में आबादी की आयु संरचना जर्मनी से अलग है, खासकर सबसे बुरी तरह से प्रभावित इटली के लोम्बार्डी और बर्गामो जैसे क्षेत्रों से। इन इलाकों में ज्यादा उम्र वाले व्यक्तियों की संख्या अधिक है।

जर्मनी की अपेक्षाकृत कम मृत्यु दर के लिए ठोस और सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित जर्मन स्वास्थ्य प्रणाली को भी श्रेय दिया जाता है। जर्मन अस्पतालों में सांस देने के लिए 28,000 से अधिक गहन देखभाल वाले बिस्तर हैं, जो दुनिया के अधिकतर दूसरे हिस्सों की तुलना में कहीं अधिक हैं।

फिर भी, जर्मन सरकार इनकी संख्या बढ़ाने के लिए काम कर रही है, ताकि कोरोनावायरस के चलते बढ़ते मरीजों को इलाज मुहैया कराया जा सके। अगर जर्मनी में संक्रमण उस गति से फैलता है, जिस गति से चीन, इटली और अब स्पेन और फ्रांस में फैल रहा है, तो देश की चिकित्सा व्यवस्था भी चरमरा जाएगी। मेडिकल स्टाफ के लिए फेस मास्क और प्रोटेक्टिव कपड़ों की पहले से ही किल्लत चल रही है।

लोकतांत्रिक अधिकारों की चिंता

जर्मन नेताओं ने जनता को सामाजिक दूरी के नियम अपनाने, ख़ुद को अलग-थलग रखने और केवल जरूरी वजहों से घर से बाहर निकलने के लिए मनाने के लिए एक सशक्त मुहिम की शुरुआत की। सुपर मार्केट और फार्मेसियों को अपवाद के तौर पर छोड़ते हुए रेस्तरां, बार और अधिकतर स्टोर बंद कर दिए गए हैं।

जहां कुछ विशेष रूप से प्रभावित क्षेत्रों और शहरों में लगभग पूरी तरह से लॉकडाउन है, वहीं कुछ जगहों पर स्थानीय अधिकारी 2 से अधिक लोगों को एकसाथ बाहर जाने की अनुमति दे रहे हैं।

बाकी जगहों की तरह ही यहां भी ‘वक्र रेखा को समतल’ कर संक्रमण की दर को नियंत्रित करने के विचार पर काम किया जा रहा है।

संयुक्त राज्य की तरह ही यहां भी संकट के शुरुआती दिनों में संक्रमण के खतरे की अनदेखी करते हुए पार्कों और शहर के प्रमुख केंद्रों पर वसंत के गर्म मौसम का आनंद लेने और तथाकथित "कोरोना पार्टी" करने के लिए युवा एकत्र हुआ करते थे।

सरकार की गंभीर चेतावनियों और कठोर जुर्माना लगाने की शर्त की वजह से इस तरह के व्यवहार पर लगाम लगी है। अब अधिकतर जर्मन घर पर रह रहे हैं और उन्होंने भोजन व टॉयलेट पेपर जमा करना शुरू कर दिया है। हालांकि, जर्मन राजनेता और जनता इस तालाबंदी और प्रभावी कारावास की वजह से व्यक्तिगत स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक अधिकारों के उल्लंघन को ले कर गहन चिंता में हैं।

चांसलर एंजेला मर्केल ने राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए एक ईमानदार और स्पष्ट भाषण में जर्मन लोगों से इस स्थिति को समझने का आग्रह किया और दावा किया कि वर्तमान स्थिति द्वितीय विश्व युद्ध के अंत के बाद से जर्मनी के सामने आया सबसे गंभीर संकट है।

अल्पकालिक व्यवस्था

संक्रमण से प्रभावित दूसरे देशों की तरह यहां भी अधिकतर स्टोर और व्यवसायों को बंद कर दिया गया है, जिससे जर्मनी की अर्थव्यवस्था में बहुत ज्यादा गिरावट दर्ज की गई है। इसे ढहने से बचाने के लिए बहुत हरसंभव प्रयास किए जा रहे हैं। स्वरोजगार, छोटे नियोक्ताओं और बड़े निगमों के लिए 750 बिलियन यूरो (834 बिलियन अमेरिकी डॉलर) का एक विशाल स्टेट क्रेडिट एवं सब्सिडी कार्यक्रम शुरू किया गया है। कर्मचारियों के लिए किराए का भुगतान करने और उन्हें मिलने वाले अन्य लाभ मुहैया कराते रहने के लिए विशेष प्रोग्राम भी शुरू किए गए हैं।

यहां तक कि कई कंपनियों, जैसे कि एयरलाइंस में आंशिक तौर पर सरकारी स्वामित्व या फिर कहें कि प्रभावी तौर पर राष्ट्रीयकरण के बारे में भी विचार किया जा रहा है।2008-2012 की भीषण मंदी के दौरान अत्यधिक सफल साबित हुई एक अल्पकालिक व्यवस्था का इस्तेमाल भी बेरोजगारी की लहर को रोकने के लिए किया जा रहा है।

यह व्यवस्था कंपनियों को श्रमिकों के रोजगार को बनाए रखने की अनुमति देती है, जिसके तहत इन श्रमिकों को मिलने वाले वेतन का 67% हिस्सा सरकारी एजेंसियों की तरफ से किया जाता है। जब संकट खत्म हो जाएगा, तो ये कर्मचारी अपने पुराने वेतन पर वापस लौटने के हकदार होंगे। ऐसे में कंपनियां जल्दी से काम शुरू कर सकती हैं, क्योंकि वे अनुभवी कार्यबल पर भरोसा कर सकते हैं और नए कर्मचारियों को देखने और प्रशिक्षित करने की आवश्यकता नहीं होगी।

जर्मनी की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में हर कोई शामिल है, चाहे लोग नौकरी करते हों या नहीं। यह ऐक ऐसी ठोस, राज्य-वित्त पोषित सामाजिक सुरक्षा प्रणाली है, कुछ साल पहले से गंभीर कटौती के बावजूद, लोगों को भूखे रहने या बेघर होने से रोकने के लिए नियमित मासिक निर्वाह भुगतान प्रदान करती है।

बिगड़ते संबंध

लोकतांत्रिक स्वतंत्रता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता कोरोनोवायरस संकट के राजनीतिक शिकार रहे हैं। ऐसे में जर्मन-अमेरिकी संबंध भी प्रभावित हुए हैं। संकट के दौरान ट्रम्प के अनिश्चितता भरे नेतृत्व को यूरोप में तिरस्कार का सामना करना पड़ रहा है और जर्मनी का नजरिया भी इससे अलग नहीं है। वैश्विक स्वास्थ्य संकट को मिलकर नियंत्रित करने और दूर करने के लिए ट्रम्प ने कॉमन ट्रांस-अटलांटिक रणनीति बनाने का प्रयास करने की जगह हर देश को उसके भरोसे छोड़ दिया है।

अमेरिका में यात्रा करने वाले यूरोपीय लोगों पर मार्च 2020 के मध्य में प्रतिबंध लगाया गया और इसमें यूरोपीय संघ की सलाह भी नहीं ली गई, जिसने ट्रांस-अटलांटिक दरार को और गहरा कर दिया। अधिकतर यूरोपीय लोगों ने इसे ट्रम्प प्रशासन का अपने निकटतम सहयोगियों की अवमानना और तिरस्कार के तौर पर देखा।

आपसी संदेह और अविश्वास उस समय चरम पर पहुंच गया, जब 15 मार्च को पता चला कि ट्रम्प ने तुबिंगन स्थित जर्मन दवा कंपनी क्योरवाक में एक बड़ी हिस्सेदारी को खरीदने का प्रयास किया था। क्योरवाक वायरस के खिलाफ एक वैक्सीन पर गंभीरता से काम कर रही है। 

विश्वसनीय मीडिया सूत्रों ने बताया कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने व्हाइट हाउस में फार्मास्यूटिकल अधिकारियों के साथ हुई एक बैठक के दौरान क्योरवाक के बोस्टन स्थित सीईओ डैन मनिचेली को करदाताओं के पैसे से 1 बिलियन डॉलर की कीमत लगाई थी। यही नहीं, ट्रम्प प्रशासन ने क्योरवाक के वैज्ञानिकों को अपना शोध अमेरिका में आकर करने के लिए लुभाने का प्रयास भी किया था।

जर्मन अखबार डाई वेल्ट ने एक जर्मन सरकारी सूत्र के हवाले से कहा कि ट्रम्प प्रशासन "केवल संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए वैक्सीन" हासिल करने की कोशिश में जुटा था। 

जर्मनी के इकोनॉमी मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने एक जर्मन कानून का उल्लेख करते हुए यहां तक कहा कि "अगर राष्ट्रीय या यूरोपीय सुरक्षा हित दांव पर हैं", तो सरकार गैर-यूरोपीय संघ के देशों की ओर से लगाई गई अधिग्रहण बोलियों की जांच कर सकती है। बर्लिन ने स्पष्ट रूप से यह तक महसूस किया कि ट्रम्प क्योरवाक को दिए अपने प्रस्ताव के जरिए जर्मनी और यूरोपीय संघ की सुरक्षा को कमजोर कर रहे थे।

कोरोनो वायरस दुनिया भर के कई लोगों के स्वास्थ्य और लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए विनाशकारी साबित हो रहा है। यह अमेरिकी-जर्मन संबंधों के भी विनाशकारी साबित हो सकता है। हालांकि, जर्मनी अभी भी अमेरिका के साथ एकजुटता, उसके नेतृत्व और महामारी में उसके रचनात्मक सहयोग के लिए लालायित है, जिससे सभी को खतरा महसूस हो रहा है।

(यह लेख द कन्वरसेशन से विशेष अनुबंध के तहत प्रकाशित)

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