लॉकडाउन में ऑनलाइन पढ़ाई कितनी असरदार?

एक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, 74 प्रतिशत छात्रों ने ऑनलाइन एग्जाम के खिलाफ वोटिंग की है
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कोविड-19 महामारी ने दुनियाभर में ठहराव ला दिया है। इस दौर में छात्रों की पढ़ाई बाधित न हो, इसके मद्देनजर दुनियाभर में ऑनलाइन क्लासेज के सिद्धांत को अपनाया गया हैं जिसमें छात्र वीडियो कॉल के माध्यम से अपनी शिक्षा जारी रख रहे हैं। अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर के शिक्षा अधिकारियों ने अपने छात्रों को लगभग 5,00,000 लैपटॉप और टैबलेट वितरित किए ताकि वहां के छात्रों को ऑनलाइन क्लासेज में दिक्कत का सामना न करना पड़े। इसके साथ ही सुदूर इलाकों में इंटरनेट की सुविधा बेहतर की गई।

भारत में मार्च के मध्य ही लॉकडाउन से एक सप्ताह पहले ही सभी स्कूलों/कॉलेजों को बंद कर दिया गया। लॉकडाउन की अनिश्चितता को देखते हुए भारत में भी ऑनलाइन शिक्षा की हलचल शुरू हुई। लेकिन यह महज शहरों तक ही सीमित है। भारत में 52 प्रतिशत आबादी इंटरनेट का इस्तेमाल करती है। लेकिन क्या इस आंकड़े से ऑनलाइन क्लासेज के स्थिति के बारे में अनुमान लगाया जा सकता है?

दिल्ली विश्वविद्यालय और कुछ अन्य संस्थानों के कॉलेजों के करीब 1,600 छात्रों के बीच छात्र किए गए संगठन “ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा) के सर्वे ने इस प्रश्न पर रोशनी डाली है। सर्वे में रिपोर्ट में ऑनलाइन शिक्षा से जुड़े कई प्रश्न किए गए। पहले सवाल पूछा गया कि क्या छात्रों तक पर्याप्त तकनीकी साधन जैसे- लैपटॉप, कंप्यूटर, स्मार्टफोन की उपलब्धता है? 67.6 प्रतिशत लोगों ने ‘हां’ में जवाब दिया, जबकि 32.4 प्रतिशत लोगों ने ‘नहीं’ में। अगला सवाल उन छात्रों के लिए था, जिनके पास पर्याप्त तकनीकी साधन हैं। उनसे पूछा गया था कि क्या आप सभी ऑनलाइन कक्षाओं में भाग लेने में समर्थ हैं? इसके जवाब में सिर्फ 22.4 प्रतिशत लोगों ने ‘हां’ में उत्तर दिया जबकि ‘नहीं’ वाले 41.2 प्रतिशत हैं। वहीं 42.4 प्रतिशत ऐसे छात्र हैं, जिन्होंने ‘कुछ ही कक्षा’ में शामिल होने की बात की। 

महज 28.4 प्रतिशत छात्रों ने ऑनलाइन स्टडी मटेरियल और ई-नोट्स उपलब्ध होने की बात कही तो वहीं 29.4 प्रतिशत ऐसे छात्र भी हैं, जिन तक न तो ऑनलाइन स्टडी मटेरियल पहुंच पा रही हैं और न ही ई-नोट्स। जबकि 42.2 प्रतिशत लोगों ने आंशिक रूप से दोनों की उपलब्धता को स्वीकार किया।

दिल्ली विश्वविद्याल के विभिन्न कॉलेजों तथा विभागों को लेकर जब यह प्रश्न पूछा गया कि क्या उनका कॉलेज या विभाग ऑनलाइन कक्षाओं का संचालन करवा रहा हैं तो 44.4 प्रतिशत छात्रों ने ‘हां’ में जवाब दिया तो वहीं 37.7 प्रतिशत छात्रों ने कुछ विषयों की संचालन की बात कही। जबकि 17.9 प्रतिशत ने किसी भी तरह की क्लास चलने से इनकार किया। छात्रों से जब सभी ऑनलाइन कक्षाओं में शामिल न होने की असमर्थता का कारण पूछा गया तो 72.2 प्रतिशत लोगों ने इंटरनेट की खराब कनेक्टिविटी को वजह बताया। 11.6 प्रतिशत ने आर्थिक असमर्थता तथा 7.6 प्रतिशत ने घरेलू कार्य को इसके लिए जिम्मेदार माना।

कई विश्वविद्यालय ऑनलाइन एग्जाम लेने के पक्ष में है। बिहार के मोतिहारी शहर में ऐसा ही एक विश्वविद्यालय है- महात्मा गांधी केंदीय विश्वविद्यालय। यहां की छात्रा अंशिका ने बताया कि उनके विभाग में मिड-सेमेस्टर एग्जाम व्हाट्सएप्प के माध्यम से ऑनलाइन लिया गया है। अगर सब सामान्य नहीं हुआ तो फाइनल एग्जाम भी ऑनलाइन ही लिया जाएगा जिसकी तिथि की भी घोषणा कर दी गई है। वहीं डीयू के ज्यादातर छात्र ऑनलाइन एग्जाम के खिलाफ हैं। आइसा द्वारा जारी सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, 74 प्रतिशत छात्रों ने ऑनलाइन एग्जाम के खिलाफ वोटिंग की है, अगर एग्जाम तीन घंटों में होता है।

डीयू के एसपीएम कॉलेज की छात्रा खुशबू कहती हैं कि ऑनलाइन क्लासेज में हमसे ये उम्मीद की जाती है कि हम दिए गए नोट्स को पढ़कर आएं या असाइनमेंट टाइप करके दें। इसके लिए हमें फोन का इस्तेमाल करना पड़ता है। इससे हमारी आंखों और सिर में बहुत दर्द महसूस होता हैं। चूंकि क्लासेज भी ऑनलाइन है और असाइनमेंट भी करने हैं इसलिए नोट्स या गूगल से इसके लिए भी फोन का ही यूज करना पड़ता है। अगर हमें ई-नोट्स मिल भी जाता है तो फोन से पढ़ने में बहुत दिक्कत होता है।

कई अन्य छात्रों ने ऑनलाइन क्लासेज को नियमित कक्षाओं की तुलना में अधिक तनावपूर्ण होने की सूचना दी। इसके पीछे का तर्क देते हुए कहा कि सामान्य कक्षाएं कठिन हो सकती हैं, लेकिन दोस्तों के होने से यह बहुत अधिक आसान और कम तनावपूर्ण हो जाता है।

एक देशव्यापी लॉकडाउन के कारण स्कूल बंद हैं। जिन छात्रों के पास डिवाइस या इंटरनेट कनेक्शन तक की पहुंच नहीं है, उनकी शिक्षा को बनाए रखना मुश्किल हैं। इस स्थिति में सरकार को शिक्षा के क्षेत्र में सहायता के लिए अतिरिक्त प्रयास करने चाहिए।

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