"हमारे अस्पताल में कोविड मरीजों के लिए जबरदस्त ऑक्सीजन संकट है। आपकी ओर से प्रतिदिन 400 ऑक्सीजन सिलेंडर देने का आश्वासन था। लेकिन पर्याप्त आपूर्ति नहीं हो रही है। यहां हमारे पास मरीजों को ऑक्सीजन का 15 मिनट से ज्यादा का बैक-अप नहीं दे सकते है। पूरे लखनऊ में ऑक्सीजन की कमी है। कोविड मरीजों का इलाज नहीं हो पा रहा है। कृपया यहां के कोविड मरीजों को बेहतर इलाज के लिए किसी दूसरे बड़े सेंटर्स में भर्ती करें।"
यह स्थिति उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में है। वहां के प्रतिष्ठित निजी असप्ताल मायो मेडिकल सेंटर प्राइवेट लिमिटेड की तरफ से यह बातें मुख्य चिकित्सा अधिकारी को भेजे गए पत्र में लिखी गई हैं। सूत्रों के मुताबिक अस्पताल ने अपने गेट के बाहर भी एक नोटिस चस्पा करके मरीजों को कहीं और जाने के लिए कहा है।
अस्पताल भले ही 15 मिनट से ज्यादा का बैक-अप न होने की बात कर रहे हैं लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने अस्पतालों को 36 घंटे का बैक-अप रखने को कहा है। अब मुश्किल है कि ऑक्सीजन जब है ही नहीं तो बैक-अप कैसे होगा?
बहरहाल उत्तर प्रदेश सरकार ने सभी ऑक्सीजन प्लांट पर पुलिस सुरक्षा का आदेश दिया है। ऑक्सीजन वाले वाहनों की जीपीएस मॉनिटरिंग करने की हिदायत भी दी है। और खुद भारत सरकार से ऑक्सीजन की फरियाद लगाई है।
उत्तर प्रदेश में कोविड-मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। वहीं, सर्वाधिक दबाव राजधानी लखनऊ पर है। ऑक्सीजन की कमी का यह मामला बानगी भर है। राज्य के कई जिलों में ऑक्सीजन और रेमिडिसिवर इंजेक्शन की जबरदस्त मांग है। इस मांग के चलते झारखंड के बोकारो प्लांट से करीब 400 मिट्रिक टन ऑक्सीजन मंगाई जानी है। कई अधिकारी इसे बड़ी मुसीबत के तौर पर देख रहे हैं।
दरअसल सूत्रों के मुताबिक राज्य सरकार की ओर से केंद्र सरकार को ऑक्सीजन की मांग का जो आंकड़ा दिया गया था। वह काफी कम था। करीब 400 मिट्रिक टन। वहीं, केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश के भीतर ही मौजूद ऑक्सीजन की आपूर्ति वाले स्थानों से कोई व्यवस्था नहीं की है। बल्कि इतनी दूर से ऑक्सीजन लाने की अनुमति दी है। जिसके लिए स्पेशल ट्रेन 21 अप्रैल, 2021 को झारखंड रवाना होगी।
इससे पहले बैठक में उत्तर प्रदेश सरकार ने भारत सरकार को समय से ऑक्सीजन आपूर्ति की मांग की थी। साथ ही कहा था कि हमें मोदीनगर, पानीपत, रुड़की आदि उत्तर प्रदेश के निकटवर्ती शहरों से ही आपूर्ति हो।
उत्तर प्रदेश में आला अधिकारियों की ऑक्सीजन और रेमिडिसिवर दोनों मामले पर रोजाना बैठक हो रही है। सूत्रों के मुताबकि बीते तीन दिनों से बैठक में ऑक्सीजन की कमी और रेमिडिसिवर का मुद्दा उठाया जाता है। समूचे राज्य को रोजाना 850 मिट्रिक टन ऑक्सीजन की जरूरत है। जबकि अभी आपूर्ति 600 से 650 मिट्रिक टन ही है। करीब 250 मिट्रिक टन से ज्यादा ऑक्सीजन की कमी बनी हुई है।
फूड सेफ्टी एंड ड्रग की प्रिंसिपल सेक्रेटरी अनीता सिंह से डाउन टू अर्थ ने बातचीत करने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि वे अभी एक जरूरी वीडियो कांफ्रेसिंग वाली बैठक में हैं और संक्षिप्त टिप्पणी भी ऑक्सीजन संकट के बारे में नहीं दे सकती हैं।
वहीं, बरेली, मेरठ, कानपुर जैसे जिलों से लगातार ऑक्सीजन आपूर्ति की मांग उठ रही है।
कोरोना संक्रमण में इलाज के लिए इस्तेमाल होने वाले रेमिडिसिवर इंजेक्शन का संकट भी अभूतपूर्व है। मसलन 20 अप्रैल, 2021 को जुबिलिएंट लाइफ साइंस की ओर से रेमिडिसिवर के 3500 डोज उत्तर प्रदेश को दिए गए हैं। इनमें 500 डोज अकेले मेरठ के लिए हैं। वहीं, सिप्ला फार्मा की तरफ से रेमिडिसिवर डोज देने से मना कर दिया गया था।
20 अप्रैल, 2021 को उत्तर प्रदेश सरकार ने ऑक्सीजन की मांग और आपूर्ति के बीच बढ़ती खाई को देखते हुए आदेश भी जारी किए थे। इनमें कहा गया था कि कोविड संक्रमित मरीजों के लिए बनाए गए एल-1, एल-2 और एल-3 हॉस्पिटल की अलग-अलग मॉनिटरिंग करते हुए ऑक्सीजन उपलब्ध कराया जाएगा। वहीं, ऑक्सीजन की सुचारू आपूर्ति के लिए यह जरूरी है कि ऑक्सीजन की आपूर्ति संस्थागत रूप से हो। प्रत्येक अस्पताल में न्यूनतम 36 घंटों का ऑक्सीजन बैकअप जरूर रहे।