दुनिया भर में कोरोनावायरस एक बड़ी समस्या बनकर उभरा है, जिसने स्वास्थ्य के साथ-साथ आर्थिक क्षेत्र को भी प्रभावित किया है। इससे उबरने के लिए वैक्सीन एक ऐसा उपाय है जो दुनिया भर में ज्यादा से ज्यादा लोगों की जानें बचा सकता है। लेकिन जिस तरह से संपन्न देश वैक्सीन को साझा करने की जगह अपने लोगों के लिए उसकी जमाखोरी करने में लगे हैं, उससे संक्रमण के फैलने और नए वैरिएंट के पैदा होने का खतरा बढ़ सकता है। यह जानकारी हाल ही में प्रिंसटन और मैकगिल विश्वविद्यालय द्वारा किए एक शोध में सामने आई है जोकि अंतराष्ट्रीय जर्नल साइंस में प्रकाशित हुआ है।
दुनिया भर में कोविड वैक्सीन को लेकर जो असमानता मौजूद है उस बारे में जानकारी देते हुए इस शोध से जुड़ी शोधकर्ता कैरोलिन वैगनर ने बताया कि एक तरफ पेरू और दक्षिण अफ्रीका जैसे देश हैं जो कोविड-19 से गंभीर रूप से ग्रस्त हैं, जबकि उन्हें थोड़ी ही वैक्सीन मिल पाई है। वहीं तुलनात्मक रूप से कई देश ऐसे हैं जहां महामारी ने उतना कहर नहीं ढाया है, इसके बावजूद उनके पास बड़ी मात्रा में वैक्सीन उपलब्ध हैं।
यदि कोविड-19 से जुड़े आंकड़ों को देखें तो दुनिया भर में अब तक करीब 21 करोड़ लोग इस वायरस से संक्रमित हो चुके हैं, करीब 44 लाख लोगों की जान इस बीमारी के कारण जा चुकी है। वहीं यदि टीकों की बात करें तो दुनिया की 31.8 फीसदी आबादी को पहली खुराक दी जा चुकी है जबकि 23.9 लोगों का पूरी तरह टीकाकरण हो चुका है। यदि इन आंकड़ों को कमजोर देशों से तुलना करें तो वहां केवल 1.3 फीसदी आबादी को टीके की पहली खुराक ही मिल पाई है। जो एक बार फिर दुनियाभर में फैली असमानता को प्रदर्शित करता है।
वहीं एक अन्य शोधकर्ता चाड साद-रॉय ने बताया कि जैसा कि अपेक्षित था, जिन क्षेत्रों में काफी मात्रा में वैक्सीन उपलब्ध थी वहां कोविड-19 के मामलों में कमी दर्ज की गई है, जबकि वैक्सीन की सीमित उपलब्धता वाले देशों में संक्रमण फिर से बढ़ रहा है। उन्होंने बताया कि हमने दुनिया भर में कोविड संक्रमण के प्रसार और वैक्सीन-साझाकरण योजनाओं के सम्बन्ध का पता लगाने के लिए गणितीय मॉडल का उपयोग किया है। साथ ही हमारा लक्ष्य नए वैरिएंट के विकास की सम्भावना को जांचना था।
इसे समझने के लिए शोधकर्ताओं ने दुनिया को दो हिस्सों में बांटकर देखा है पहला वह क्षेत्र है जहां टीकों की पर्याप्त उपलब्धता (एचएआर) है, जबकि दूसरा वो क्षेत्र है जहां टीकों की बहुत कम पहुंच (एलएआर) है। जब मॉडल की मदद से वैक्सीन की उपलब्धता और प्रसार का विश्लेषण किया गया तो यह सामने आया कि जब वैक्सीन साझा करने से टीकों की बहुत कम पहुंच वाले क्षेत्रों में वैक्सीन की उपलब्धता बढ़ी तो वहां कोरोना के मामलों में कमी आई थी। इस बारे में हार्वर्ड टी एच चैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में प्रोफेसर और इस शोध से जुड़े शोधकर्ता माइकल मीना ने बताया कि "ऐसा इसलिए हैं क्योंकि संक्रमण की गंभीरता को कम करने में टीके अत्यधिक प्रभावी हैं, ऐसे में सार्वजनिक स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से संक्रमण की गंभीरता में आने वाली कमी बहुत मायने रखती है।
टीकों की असमानता नए वैरिएंट को भी दे सकती है जन्म
वहीं इस शोध से जुड़ी एक अन्य शोधकर्ता सी जेसिका ई मेटकाफ ने जानकारी दी है कि जिन क्षेत्रों में टीकाकरण की दर बहुत कम है वहां इस महामारी के कारण हॉस्पिटल में भर्ती होने वालों की संख्या कहीं ज्यादा है जोकि स्वास्थ्य सेवाओं पर कहीं ज्यादा बोझ डाल रहा है।
इसके साथ ही शोधकर्ताओं ने अपने पिछले अध्ययनों के आधार पर टीकाकरण और नए वैरिएंट के प्रसार को भी समझने का प्रयास किया है। अध्ययन से पता चला है कि जिन लोगों में इम्म्यूनिटी की कमी वाले लोगों में एक से ज्यादा बार संक्रमण हो सकता है तो उनमें पिछले संक्रमण या टीकों की कमी के चलते नए वैरिएंट का विकास हो सकता है।
इस बारे में कैथरीन ब्रिगर, सारा फेंटन और ब्रायन ग्रेनफेल ने बताया कि कुल मिलाकर अध्ययन से पता चला है कि जिन क्षेत्रों में टीकों की सीमित पहुंच है उन एलएआर क्षेत्रों में टीकों की सीमित उपलब्धता के कारण मामलों के बढ़ने की सम्भवना कहीं अधिक है जिससे उन क्षेत्रों में नए वैरिएंटस के पैदा होने का खतरा भी सबसे ज्यादा है।
क्या कहती है नैतिकता की परिभाषा
ग्रेनफेल के अनुसार ऐसे में यह स्पष्ट है कि न्यायसंगत तरीके से जितना जल्द से जल्द हो सके वैश्विक स्तर पर टीकों का वितरण कितना महत्वपूर्ण है। वहीं शोधकर्ताओं का मानना है कि नए वैरिएंटस का उद्भव अपने आप में एक बड़ी समस्या है जिससे इस महामारी के फैलने का खतरा बढ़ जाएगा, क्योंकि नए वैरिएंट तेजी से फ़ैल सकते हैं साथ ही वो हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली से बचने के साथ ही वैक्सीन के असर को भी कम कर सकते हैं। ऐसे में यह वैश्विक टीकाकरण के प्रयासों के लिए भी खतरा पैदा कर सकते हैं।
साद-रॉय ने बताया कि इस तरह, वैश्विक स्तर पर वैक्सीन की उपलब्धता न केवल स्वास्थ्य सेवाओं पर बढ़ते दबाव को कम करेगी साथ ही इससे नए वेरिएंटस के उभरने की संभावना भी घट जाएगी।
वहीं एजीकियल इमानुएल और अन्य शोधकर्ताओं ने वैक्सीन इक्विटी की बात कही है। उनके अनुसार नैतिकता उन देशों के खिलाफ भी तर्क देती है जो टीके जमा कर रहे हैं या फिर बूस्टर के लिए खुराक आवंटित कर रहे हैं। उनके अनुसार शोध स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि टीकों की जमाखोरी वैश्विक स्वास्थ्य पर व्यापक असर डालेगी और उसे कमजोर कर देगी। वहीं शोधकर्ता जेरेमी फरार ने कहा कि टीके कब साझा किए जा रहे हैं, उसका समय भी बहुत मायने रखता है।